पौधा -" विष भी और अमृत भी " | इलेक्ट्रो होम्योपैथी

पौधा -" विष भी और अमृत भी "
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पौधा -" विष भी और अमृत भी "

पौधा -
पौधा -" विष भी और अमृत भी "

विष से तात्पर्य यहाँ पौधों के वैसे रासायनिक पदार्थों से है, जो शरीर में प्रवेश करके उसे हानि पंहुचाते हैं।  यह  हानि तत्काल मृत्यु का रूप ले सकती है, अथवा किसी रोग का रूप धारण करके धीरे-धीरे जीवन को मृत्यु के निकट ला सकती है। इस परिभाषा के आलोक में ड्रग कहलाने वाले पदार्थ भी विष हैं, यदि उन से शरीर को हानि होने की संभावना है। उदाहरण स्वरूप पैथोजन विष माने जाते हैं। क्योंकि पैथोजन शरीर को हानि पंहुचा कर रोग पैदा करते हैं,  या कर सकते हैं। 

अमृत का मतलब पौधों में पाए जाने वाले वैसे रासायनिक पदार्थों से है, जो मृत्यु की संभावना को अतिशीघ्र दूर कर के स्वास्थ्य और जीवन देते हैं। इस प्रकार एक पादप में विष है और अमृत भी है। एक पौधा के विभिन्न अंगों में अति अल्प मात्रा में विभिन्न गुण,  धर्म और क्रिया वाले अनेकों तत्व यौगिक के रूप में पाए जाते हैं। वास्तव में विभिन्न प्रकार के अनेकों रासायनिक यौगिकों का पौधा समूह है।

मनुष्य के शरीर पर उनकी हौने वाली प्रतिक्रियाओं के आधार पर सभी रासायनिक यौगिकों को दो वर्गों में बांटा जा सकता है।

  1. प्रथम वर्ग में उन सभी रासायनिक यौगिकों को रखा जा सकता है, जो मनुष्य के शरीर के शरीर की प्रकृति से कोई प्रतिक्रिया नही पाई जाती है। अर्थात शरीर को वे हानि नहीं पंहुचाते हैं।
  2. दूसरे वर्ग में पौधों के वैसे रासायनिक यौगिकों को रखा जा सकता है, जो मनुष्य के शरीर के प्रतिकूल होने के  कारण उनकी शरीर अथवा शरीर के अंगों या तंत्रों के साथ प्रतिक्रिया करते हैं। अर्थात वे मनुष्य के शरीर को हानि पहुंचाते हैं। 

सरलता और सुविधा के लिए यहाँ प्रथम वर्ग के रासायनिक यौगिकों के लिए Natural Chemical Compound= NCC और दूसरे वर्ग के रासायनिक यौगिकों के लिए Unnatural Chemical Compounds= UNCC ,  कहा जा रहा है। कुछ पौधों के रासायनिक यौगिक अति भयंकर विषैले होते हैं। विषैलापन का कारण उनमें पाए जाने वाले  UNCC है। दुर्भाग्य वश आज तक इन्ही UNCC, को औषधि का आधार माना जाता रहा है। 

औषधि के लिए उपयोग होने के कारण कुछ पौधों को मेडिसिनल प्लांट कहा गया है। आयूर्वेद, यूनानी एलोपैथी, होमियोपैथी आदि मेडिकल साहित्यों में इन पौधों के औषधीय गुणों का सविस्तार में वर्णन मिलता है। साथ ही साथ उसी विस्तार में इन पौधों से होने वाली हानियों का तथा उन हानियों के रोक थाम और बचाव का भी वर्णन किया गया है। इस प्रकार के वर्णन से प्रमाणित होता है कि,  इन चिकित्सा पद्धतियों ने UNCC को ही औषधि का आधार माना है। इससे यह भी प्रमाणित होता है कि मेडिसिनल प्लांट में कुछ ऐसे भी UNCC पदार्थ हैं जो मनुष्य के शरीर को हानि पंहुचाने के साथ साथ उसके रोग में भी कहीं-न-कही लाभ भी पंहुचाते हैं। ऐलोपैथी में फार्मैसी की सहायता से मेडिसिनल प्लांट के औषधीय गुण रखने वाले UNCC को अथवा उसी के आधार पर 

कृत्रिम रासायनिक यौगिकों का निर्माण करके ऐलोपैथी ने बड़े पैमाने पर दवा का रूप देकर उपयोग के लिए बहुत बड़ा या कहें विशालतम बाजार प्रस्तुत किया है। ऐलोपैथी दवा निर्माण में लगभग 23 हजार कंपनियां भारत में कार्य रत हैं, जिनका चौरासी हजार फार्मूलेशन है। 

मेडिसिनल प्लांट अथवा उनमें पाए जाने वाले औषधीय UNCC पदार्थों के आधार पर निर्मित पदार्थों अथवा दवाओं के गुणों या प्रोपर्टीज के वर्णन में एंटी सेप्टिक, एंटी प्रूलेंट, एंटी एलर्जीक, एंटी फिजियोलॉजी,  एनाल्जेसिक, एंटी इंफ्लामेंट्री, मूत्रल,  नीद्रल एंटीबायोटिक, एंटीपायेरटिक, एंटीएमेटिक, हीप्नोटिक, आदि शब्दों का उपयोग किया गया है, अथवा किया जाता है। इस प्रकार के गुणों के वर्णन में  Curative शब्द का उपयोग किसी भी दवा के लिए नहीं किया गया है। इस प्रकार के औषधीय गुणों के वर्णन के आलोक में प्रश्न उठना स्वभाविक है कि क्या UNCC   रोग को Cure, नहीं करते हैं? 

क्या वे अनेकों हानियाँ पंहुचा कर रोगों में कहीं कहीं मात्र तात्कालिक लाभ पंहुचाते है? 

प्रायः देखा गया है कि, संपूर्ण मेडिसिनल प्लांट का काढ़ा अथवा चूर्ण, वटी, सावधानी से अथवा कम मात्रा में उपयोग करने पर कम से कम हानि पहुंचा कर रोगों को अच्छा भी करता है। यही वह कारण है कि विश्व में रोगोपचार के लिए आज भी लोगों की आस्था मेडिसिनल प्लांट पर बरकरार है, अथवा टिकी हुई है। 

पूर्व की कंडिका में कही गई बातों पर विचार करने पर विदित होता है कि पौधों में कोई ऐसा भी पदार्थ है, जो रोग को Cure करने में सर्वोपरि है। निश्चय हीं वह पदार्थ शरीर के साथ कोई प्रतिक्रिया नही करता है, जिसके कारण इस प्रकार के पदार्थों की शारीरिक प्रभाव क्रिया को परिलक्षित नहीं किया जा सका है। अतः वह पदार्थ अवश्य हीं नेचुरल कैमिकल कंपाउंड है।  पौधों का वही NCC   पदार्थ अमृत है। होना यह चाहिए था कि पौधों में पाये जाने वाले इस अमृत (NCC) को पहचाना जाता। इसे पौधों में पाये जाने वाले UNCC से पृथक किया जाता, और औषधि के रूप में यह अमृत (NCC)  उपयोग किया जाता। 

लेकिन औषधि का आज तक का इतिहास बताता है कि मानव पौधों में पाये जाने वाले अमृत को छोड़कर उसके विष के पीछे - पीछे भागता रहा है। पौधों में विष भी है और अमृत भी,  इसे केवल महात्मा कौंट सीजर मैटी ने देखा हीं नहीं अपितु इलेक्ट्रो होम्यो पैथी की फार्मेसी के द्वारा पौधों से अमृत को पृथक करने का और औषधि के रूप में उपयोग करने का मार्ग भी दिखाया। इलेक्ट्रो होम्यो पैथी की औषधि निर्माण में उसी फार्मेसी का उपयोग किया गया है।

लेखक : डॉ सुदामा प्रसाद सिंह

वरिष्ठ इलेक्ट्रो होम्यो पैथ ऑफ इंडिया एवं फाउंडर मेम्बर ऑफ इहपरसी एन. वाइ. -डी./135, न्यू यार पुर, जनता रोड नंबर - 3. (देवी स्थान)
पटना


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