आज की परिस्थितियों में यूनीवर्सल रिमेडी ???
इलेक्ट्रो होम्योपैथी - आज की परिस्थितियों में यूनीवर्सल रिमेडी |
इलेक्ट्रो होम्योपैथिक मेडिसिन में सर्व भौमिक औषधि के प्रश्न पर अनेक लोगों ने उत्तर दिये है। कुछ लोगों ने फोन पर डिस्कस किए, कुछ कमेंट पर डिस्कस किए , कुछ मैसेंजर पर डिस्कस किए और अन्य साधनों पर भी डिस्कस किया है । कुछ लोगों ने S1 को यूनिवर्सल रिमेडी बताया कुछ लोगों ने L2 को यूनिवर्सल रिमेडी बताया ।
तो कुछ लोगों ने कहा दोनों यूनिवर्सल है। लेकिन 2 - 3 लोगों को छोड़, किसी ने नहीं बताया कि दोनों यूनिवर्सल क्यों है एक सज्जन तो यहां तक कह दिया कि जो आप जो बतायेगें वह प्रमाणित पुस्तक से होना चाहिए। तो हम आपको प्रमाणित पुस्तक से ही बताएंगे । जिसे विश्व मे प्रमाणित माना जाता है। आप उसे प्रमाणित मानते हो या न मानते हो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है । अपने सवाल का जवाब देने से पहले मैं उस पुस्तक के विषय में थोड़ी जानकारी ले लेते हैं
प्रमाणित पुस्तक
सन् 1914 में जब प्रथम विश्व युद्ध हो रहा था उस समय इटली से बाहर दवाई जाना बंद हो गई थी । तब इलेक्ट्रो होम्योपैथी की दवाओं की सप्लाई करने के लिए काउंट सीजर मैटी के दामाद एमबी मैटी ने औषधि बनाने का सम्पूर्ण अधिकार व फार्मूले जर्मन की ISO कंपनी को सौंप दिया था। उस समय तो कंपनी केवल दवा बनाकर सप्लाई करती थी। कोई फार्मूले ओपन नहीं किए थे लेकिन जब कई लोग यह कहने लगे कि सीजर मैटी ने फार्मूले हमें दे गए थे और हमारी दवाई ही मैटी की दवाएं हैं। तो 3 नवंबर 1952 को ISO ने इलेक्ट्रो होम्योपैथिक औषधियों के फार्मूले ओपन कर दिए थे।
एम बी मैटी ने आधिकारिक रूप से फार्मूले और औषधि बनाने का कार्य कंपनी को दिया था । इसलिए कंपनी जो बात कहेगी उसे ही प्रमाणित माना जाएगा । चाहे वह गलत ही क्यों न कह रही हो ।
हम यूनिवर्सल रिमेडी की जो बात कर रहे हैं । उसी कम्पनी के फार्मूले के आधार पर कर रहे हैं जो एक छोटी बुक के रूप में हमारे पास उपलब्ध है।
जर्मन की बनी S1 यूनिवर्सल है
जर्मन की पुस्तक में पेज नंबर 26 पर S1 का वर्णन करते हुए Indication में लिखा है :----Universal remedy for the entire metabolism .
डॉ एन. एल. सिन्हा कानपुर ने भी अपनी बुक में S1 को यूनिवर्सल रिमेडी कहा है। अब सवाल यह उठता है कि S1 को यूनिवर्सल रिमेडी क्यों कहा गया है छोटी सी पुस्तक में ISO ने इस बात का कहीं जिक्र नहीं किया है। न कानपुर के एन. एल. सिन्हा ने जिक्र किया। हमें लगता है कि एन.एल सिन्हा ने जर्मन की बुक देखकर यूनिवर्सल रिमेडी केवल लिख दिया है
लेकिन उनका निजी अनुभव नहीं था क्योंकि एन .एल. सिन्हा अपनी बुक में लिखते हैं :---
जब किसी रोगी को S1 सूट न करें तो उसे S2 या A3 मिला कर देना चाहिए। यहां प्रश्न यह उठता है कि एन. एल. सिन्हा जब कह रहे हैं कि S1 यूनिवर्सल है तो फिर सबको सूट क्यों नहीं कर रही है। इसका मतलब है कि भारत और जर्मनी की दवाइयों में फर्क है। इसी फर्क होने के कारण भारतीय S1 सूट नहीं करती हैं। जब जर्मन कंपनी की S1 सबको सूट करती है क्योंकि जर्मनी की दवा कोहोबेशन मैथड से बनी होती है। वहीं यूनिवर्सल रिमेडी है लेकिन भारत में दवा फर्मेंटेशन के तरीके से दवाएं बनती है इसलिए यहाँ की S1 यूनिवर्सल नहीं है।
भारत की बनी L2 यूनिवर्सल है
L2 के विषय मे जर्मन कंपनी ने कुछ विशेष नहीं लिखा है न एन.एल. सिन्हा ने लिखा है लेकिन S1 के सूट न करने पर एन.एल. सिन्हा ने लिखा है कि ऐसी स्थिति में S1के साथ A3 मिलाकर देना चाहिए अब L2 मे S1, A3 और L1 तीन औषधियां मिली हुई है।
जब हम किसी रोगी को L2 देते हैं तो मेडिसिन मे 24 इनग्रेडिएंट एक साथ रोगी को प्राप्त होते हैं L1 पूरे लिंफेटिक सिस्टेम ,नर्वस सिस्टेम ,ब्लड सिस्टेम सिस्टम काम करता है । A3 पूरे ब्लड सिस्टम और हार्ट, पर काम करता है। S1 मेटाबॉलिक सिस्टम पर काम करता है । यह शरीर के मोटे मोटे सिस्टेम है जिन पर L2 को काम करता है। वैसे इसका प्रभाव संपूर्ण शरीर पर होता है । इसलिए इसे भारतीय इलेक्ट्रो होम्योपैथिक यूनिवर्सल रिमेडी कहा जा सकता है।
नोट:-----
(1) मैं जब प्रैक्टिस करता था तो अपने साथ L2 रखता था । मेरा L2 पर अनुभव यह है कि यह मौत के मुंह से लोगों को निकाल लेती है ।
यहां आपको यह बताना आवश्यक है कि जब तक हमारे पास अपनी बनाई हुई दवाइयां नहीं थी तब तक हम बाहर से ही दवाइयां खरीद कर ही प्रैक्टिस करते था ।
(2) कोहोबेशन द्वारा अपने तैयार की गई अपनी औषधि S1 का कभी दुष्प्रभाव नहीं देखा है ।