आज मनुष्य का बॉडी रेजिस्टेंस बढ़ गया है Weak Immunity Power

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आज के समय में मनुष्य का रजिस्टेंस  बढ़ गया है इसका अर्थ क्या है?

पहले हमें इस बात को समझ लेना चाहिए :----

रजिस्टेंस का अर्थ होता है प्रतिरोध /  रुकावट शरीर में इसका अर्थ है कि पहले जब हम कोई औषधि लेते थे तो औषधि की निम्न मात्रा ही शरीर में  पहुंचकर शीघ्र ही अपना प्रभाव दिखा देती थी  परंतु अब ऐसा नहीं होता है या बहुत कम होता है ।

हमें याद है कि आज से लगभग 60 साल पहले जब गांवों में चिकित्सक नहीं होते थे लोग कुछ पत्तियों व आम की गाद आदि से ही सर्दी , जुकाम, बुखार, खांसी, फोड़ा फुंसी आदि ठीक कर लिया करते थे। शरीर की हड्डियां टूटने पर छोटी मोटी हड्डियों को बांस की फर्च व पत्ते बांधकर जोड़ लिया करते थे । जब बहुत गंभीर होते थे तो लखनऊ मेडिकल कॉलेज में जाते थे । चिकित्सक नाम की कोई चीज गांव में नहीं होती थी 8 -10 गांवों के बीच में कभी कभी कोई छोटा मोटा चिकित्सक मिल जाता था।
कभी-कभी देसी जड़ी बूटियों से लोग नहीं ठीक होते थे तो चिकित्सक के पास जाते थे उस समय गांव में वैद्य , होम्योपैथिक डॉक्टर ,अंग्रेजी दवा के डॉक्टर होते थे । अंग्रेजी डॉक्टर एल्कोसीन, ओरीसूल, सल्फाडाईजीन, सल्फागोनोडीन, क्लोरोडाइन, एनासिन, वेदना निग्रह रस, डाइजीन आदि कुछ दवाई देते थे जो आज के समय से मामूली दवाई थी।
इंजेक्शन के नाम पर टेरामाइसिन व कुछ अन्य इंजेक्शन हुआ करते थे । होम्योपैथिक डॉक्टर कुछ मदर टिंचर के साथ में बेलाडोना ब्रारानिया बेलाडोना   जल्सैनियम, एकोनाइट, नक्स , हीपर मर्क, साल ,आर्सेनिक आदि कुछ दवाएं   4X ,7X ,12X,व 3, 6, 30, 60, 200 नंबर की दवाई देते थे सबसे बड़ी पोटेंसी 1M मानी जाती थी जो महीने में और कोई 6 महीने में रिपीट करते थे ।

इसी तरह गांव के वैद्य भी  साधारण दवाओं का इस्तेमाल करते थे।
उस समय स्वच्छ वातावरण और बिल्कुल  साधारण भोजन था दाल चावल रोटी सब्जी मुख्य भोजन था । शादी विवाह  में अच्छे भोजन मिलने की चाह बनी रहती थी । चना मटर जौ सावां काकुन कोदो मुख्य भोजन था मीठा के नाम पर गुड और राब थी सरकारी कोटे से मुख्य त्योहारों पर एक राशन कार्ड पर ढाई सौ ग्राम चीनी मिलती थी । गेहूं का ऐसा हाल था कि कोई रिश्तेदार जब आता था तब गेहूं की रोटी बनती थी और एक आदमी उसके साथ बैठकर खाना खाता था बाकी रोज का खाना बाद में खाते थे ।
काम के मामले में फिजिकल वर्क बहुत था । सुबह 3:00 बजे उठकर जानवरों का चारा बनाना जानवरों के नीचे सफाई करना उसके बाद खेत की जुताई के लिए खेत पर जाना 9:00 बजे के आसपास घर से एक पाव गुड नाश्ते के लिए जाता था या शाम की बनी हुई रोटी जाती थी उसे ही खाकर ही लोग रह जाते थे । उस समय आज कल की तरह सिंचाई के साधन नहीं थे लोग बेड़ी आदि से खेत सिंचाई करते थे जो बहुत कठिन कार्य था।

(एक बार मैं अपनी क्लीनिक पर बैठा था एक आदमी आया और कहने लगा देखो कुछ हरारत (हल्का बुखार) लग रहा है। मैंने थर्मामीटर लगा कर देखा तो उसे 104 डिग्री फीवर था मैंने कहा तुम हरारत कह रहे हो, तुम्हें 104 बुखार है । और वह प्रसन्नचित्त लग रहा था। उसका कहना था कोई हल्की दवा दे दो अभी मुझे हल लेकर खेत पर जाना है। सोचा आप चले जाओगे इसलिए दवा ले लेते हैं।)

अब सवाल यह उठता है कि उस समय रजिस्टेंस  कम क्यों था। "अधिक मेहनत , साधारण खाना मानसिक संतुलन के कारण हमारा रजिस्टेंस कम था क्योंकि शरीर में सारे पोषक तत्व संतुलित मात्रा में रहते थे परंतु आज ऐसा नहीं है हम हाई कैलोरी भोजन लेते हैं काम के नाम पर पसीना बहाऊ काम नहीं करते है । जिसके कारण हमारे शरीर में पोषक तत्व अनबैलेंस हो जाते हैं इसके साथ ही हमारे रक्त और रस कम्पोजीशन भी काफी बिगड़ जाता है।
यह ठीक उसी प्रकार से है जैसे किसी मकान की दीवारों में कहीं-कहीं पर थोड़ी बहुत गंदगी लगी हो तो उसे पोछ कर साफ किया जा सकता है। खर्च भी कम आएगा समय भी कम लगेगा मटेरियल भी कम लगेगा लेकिन यदि वही गंदगी भारी मात्रा में लगी हो तो मकान में पुन: रंगाई पुताई करनी पड़ेगी जिस पर भारी परिश्रम खर्चा भी आएगा ।

धीमे धीमे सुख सुविधाएं बढ़ती गई और लोगों का रुझान एलोपैथिक दवाओं की तरफ बढता गया चिकित्सकों द्वारा भारी मात्रा में दर्द नाशक दवाई , एंटीबायोटिक दवाई  खाने से शारीरिक प्रतिरोध  बढ़  गया । इधर व्यक्ति का जीवन स्तर ऊंचा होने के कारण विलासिता की चीजें (मसाला ,शराब आदि) के कारण भी रेजिस्टेंस बढ  गया है ।

लोगों का रुझान आयुर्वेद को छोड़कर एलोपैथिक की तरफ तेजी से बड़ा फल स्वरूप होम्योपैथिक दवाइयां निष्फल होने लगी लोग कहने लगे कि होम्योपैथिक दवाइयां बहुत देर में असर करती है। तब होम्योपैथी में अनुसंधान शुरू हुए और छोटी पुटेंसी को छोड़कर ऊंची पुटेंसी से चिकित्सा करना शुरू किया गया । आज होम्योपैथी में 30, 200 ,1M ,10M ,50M और इससे भी ऊंची पोटेंसी मौजूद है। आज होम्योपैथिक में एलोपैथी की तरह अच्छा रिजल्ट देने लगी क्योंकि ऊंची पुटेंसी से होम्योपैथी में अब चिकित्सा की जाती है।
हमारे यहां इलेक्ट्रो होम्योपैथी में पहले पहला, दूसरे, तीसरे , चौथे ,पांचवें,डायलूशन प्रयोग किये जाते थे । जो 1:47 से बनते थे । धीमे धीमे D डायलूशन का प्रचलन हुआ और लोग D4 से ट्रीटमेंट करने लगे  लेकिन ट्रीटमेंट आसान नहीं हुआ बल्कि जटिल होता गया।  छोटी पोटेंसी होने के कारण ( लोगों के भारी प्रतिरोध/ रजिस्टेंस  ) में दवाएं असर नहीं करती है  दूसरी तरफ अज्ञानता के कारण चिकित्सक आवश्यकता से अधिक औषधियां देते है जिसके कार लोगों का शारीरिक प्रतिरोध (रेजिस्टेंस) बढ़ता जा रहा है। कुल मिलाकर औषधियां  बेअसर होती जा रही है

Note: आज आवश्यकता इस बात की है कि इलेक्ट्रो-होम्योपैथिक औषधियों में अनुसंधान कर उनकी गुणवत्ता को सुधारा जाए । नये औषधीय पौधों को शामिल किया जाए । उच्च डायलूसन का निर्माण किया जाए  जो एक राष्ट्रीय पैमाना संगत हो । उचित डायग्नोसिस कर कम औषधियों का प्रयोग किया जाए!


1 comment

  1. Very nice
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