शुगर, मधुमेह या डायबिटीज, कारण, प्रबंधन और उपचार
हिंदी में डायबिटीज (Diabetes) को मधुमेह कहते हैं। यह मुख्यत: दो तरीके का होता है :---
टाइप--- 2
इसमें पैंक्रियाज कम काम करता है यानी इंसुलिन पर्याप्त नहीं बनाता जिससे शर्करा का पाचन ठीक से नहीं हो पाता है।
टाइप----1
इसमें पैंक्रियाज इंसुलिन बिल्कुल नहीं बनाता या ना के बराबर बनाता है।
जब शरीर में शर्करा का मेटाबॉलिज्म (कभी कम कभी अधिक) यानी ठीक नहीं हो पाता अर्थात उसका संतुलित पाचन नहीं पाचन नहीं हो पाता है तो ब्लड में शुगर की मात्रा मानक से कम या अधिक हो जाती है
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Diabetes Electro Homeopathy Treatment |
जब रक्त में शुगर की मात्रा मानक से अधिक हो जाती है तो उसे हाईपर ग्लाइसीमिया ( Hyper Glycemia ) कहते है। कभी-कभी शुगर का मेटाबॉलिज्म अधिक हो जाता है और ब्लड में शुगर की मात्रा कम हो जाती है ऐसी स्टेज को हाइपो ग्लाइसीमिया ( Hypoglycemia ) कहते हैं। अर्थात पैंक्रियाज दो स्थितियों में काम करता है। पैंक्रियाज कभी इंसुलिन ज्यादा बनाता है। कभी कम बनाता है अभी नहीं बनाता है । अर्थात पैंक्रियाज का काम एब्नॉर्मल हो जाता दोनों स्थितियां शरीर के लिए हानिकारक होती है।
(१) हाईपर ग्लाईसीमियां
इस इसके अंतर्गत रक्त में शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है जिससे शरीर में बैक्टीरिया जल्दी पनपता है इसलिए कटे हुए जख्म जल्दी नहीं भरते अर्थात ऐसी स्थिति में ऐसी स्थिति में ऐसे भोजन से परहेज करना चाहिए जिनसे शरीर को शर्करा की मात्रा ज्यादा मिल रही हो। एक्सरसाइज और दूसरे ऐसे उपक्रम करना चाहिए जिससे मेटाबॉलिज्म ठीक हो और कैलोरी बर्न हो जिससे शरीर में अतिरिक्त शुगर भी कम होगी और मोटापा भी कम होगा।
(२) हाइपो ग्लाईसीमियां
इसके अंतर्गत रक्त में शर्करा की मात्रा मानक से कम हो जाती है। ऐसी स्थिति में शर्करा को पूरा करने के लिए मीठा (मिठाई , मीठे फल आदि) खाना पड़ता है। हाईपर ग्लाइसीमिया की अपेक्षा हाइपो ग्लाइसीमिया ज्यादा खतरनाक होती है।
टाइप---2
इस डायबिटीज में एलोपैथी के हिसाब से दवाइयां देकर इंसुलिन का सहयोग किया जाता है। आयुर्वेद के हिसाब से भी ऐसी कुछ दवाइयां दी जाती हैं कि रक्त में शुगर की मात्रा कम बनी रहे। तथा भोजन प्रबंधन इस तरीके जाता है कि रक्त में शुगर की मात्रा बढ़ने न पाए।
टाइप---1
इस डायबिटीज में इंसुलिन बिल्कुल नहीं बनता या बहुत थोड़ा बनता है। इसलिए खाना खाने से पहले इंसुलिन की मात्रा नाप कर इंजेक्शन द्वारा इंजेक्ट किया जाता है। उसके बाद खाना खाते हैं। यह एक डॉक्टर के द्वारा निर्धारित मात्रा होती है कम या अधिक होने पर जानलेवा साबित हो सकती है।
डायबिटीज के कारण
(१) मेहनत के अनुपात में भोजन अधिक करना ।
(२) तले भुने व मीठे पदार्थों का अधिक सेवन करना ।
(३) रात को देर तक जागना और सुबह देर तक सोना ।
(४) सेहत व वजन बनाने वाली औषधियों का सेवन करना।
(५) हार्मोंस का असंतुलित होना।
(६) चिंता होना
(७) पैंक्रियाज का किसी बीमारी से ग्रसित होना
(८) हेरिडिटी में डायबिटीज का होना।
(९) कुछ आयुर्वेदिक और एलोपैथिक औषधियों के सेवन करने से भी किसी किसी को डायबिटीज हो जाती है।
डायबिटीज के लक्षण और बचाव
(1) Symptoms of Hypoglycemia
जब रक्त में शुगर की मात्रा मानक से कम हो जाती है तो निम्नलिखित लक्षणों में से कोई भी लक्षण प्रकट कर सकते हैं
(१)भ्रम
(२) चक्कर आना
(३) भूख अधिक महसूस होना
(४) सिरदर्द होना
(५) शरीर में सिहरन होना
(६) शरीर में थरथराहट होना
(७) शरीर में पसीना आना
(८) चिड़चिड़ापन होना
(९) कमजोरी महसूस होना
(१०) चिंता होना
(११) त्वचा में पीलापन हो जाना
(१२) प्यास लगना
(१३) बेहोशी आना
हाइपोग्लाइसीमिया के पेशेंट को अपने साथ हमेशा खाने की कुछ चीजें जैसे बिस्कुट ,चीनी, आदि साथ रखनी चाहिए । अपना पता लिखकर जेब में रखना चाहिए। कहीं दूर घूमने के लिए जाए तो मोबाइल साथ रखें । क्योंकि कभी-कभी भ्रम के कारण अपना मकान ढूंढने में दिक्कत हो सकती है।
(2) Symptoms of Hyperglycemia
जब रक्त में शुगर की मात्रा मानक से ज्यादा हो जाती है तो निम्नलिखित लक्षण प्रकट हो सकते हैं
(१) सांस में फलों जैसी खुशबू आना ।
(२) पेट दर्द महसूस होना
(३) ओठ सूखे होना
(४) कमजोरी महसूस होना
(५) भ्रम की स्थिति पैदा होना
(६) बेहोशी आना।
(७) शरीर में जख्म जल्दी ठीक न होना।
(८) खाज खुजली व चर्म रोग ठीक न होना।
(९) शरीर का वजन बढ़ना।
(१०) पेशाब बार बार होना।
(११) पेशाब में चीटियां आ जाना।
(१२) खुजलाने मात्र से निशान पक जाना।
हाइपर ग्लाइसीमिया के पेशेंट को शुगर की मानीटरिग बराबर करते रहना चाहिए क्योंकि बढ़ी हुई शुगर को जल्दी से निकाला नहीं जा सकता है।
बचाव
शुगर के पेशेंट को हमेशा योग्य चिकित्सक की देखरेख में रहना चाहिए। अपनी डाइट को हमेशा कंट्रोल में रखना चाहिए । सुविधा के लिए हमने ऊपर डाइट चार्ट पोस्ट किए हैं लेकिन यह मात्र सैंपल है आपको अपने लिए डाइट डाइटिशियन से बनवानी चाहिए ।
नोट:-----दोनों प्रकार की शुगर का शरीर पर भारी कम्पलीकेशन होता है जिसके कारण हार्ट, ब्रेन, आंखें, किडनी खराब होने की भारी संभावना रहती है इसके अतिरिक्त इम्यूनिटी डाउन होने से बहुत सारे रोग लग सकते हैं आत: शुगर की बीमारी को हल्के में नहीं लेना चाहिए।
डायबिटीज का प्रबंधन
(१) डायबिटीज के रोगी का सही प्रबंधन से वह पूरी जिंदगी जी सकता है। उसे कभी निराश नहीं होना चाहिए। "आशा ही जीवन है" का फार्मूला अपनाना चाहिए।
(२) इतनी मेहनत करनी चाहिए कि शरीर में पसीना निकल आए।
(३) तले भुने और अधिक मीठे पदार्थों का सेवन आवश्यकतानुसार कम करना चाहिए।
(४) औषधियों का प्रयोग चिकित्सक की देखरेख में करना चाहिए।
(५) नियमित व्यायाम कुशल प्रशिक्षक की देखरेख में करना चाहिए।
(६) चिंता से मुक्त रहने के लिए आध्यात्मिक साहित्य का अध्ययन करना चाहिए।
(७) संतुलित भोजन व हरी सब्जी का प्रयोग करना चाहिए।
(८) मांसाहार ,शराब व धूम्रपान से बचना चाहिए।
(९) भोजन में ऐसे पदार्थ को शामिल करना चाहिए जो शुगर स्तर को नियंत्रित करते हैं।
(१०) नियमित शुगर स्तर की जांच की जानी चाहिए ताकि हम उसे नियंत्रित कर सके।
(११) सुगर के कम्पलीशन से बचने के लिए हार्ट , आंख, किडनी, यूरिन, की जांच समय-समय पर की जानी चाहिए।
डायबिटीज के कंप्लीशन
अधिक समय तक रक्त में शुगर की मात्रा अधिक / कम बनी रहने से कई प्रकार की अन्य बीमारियां लग जाती हैं इनसे बचाव करना आवश्यक है जैसे:------
(१) रक्त में शुगर की मात्रा, मानक मात्रा से कम होने पर दिमागी संतुलन खराब हो जाता है व्यक्ति डिप्रेशन में जा सकता है।
(२) रक्त में शुगर की मात्रा मानक मात्रा से अधिक होने पर हॉट, किडनी, आंख ,चर्म रोग, शरीर के जख्म आदि को क्षति हो सकती है। और भी कई तरीके की बीमारियां हो सकती है।
इन्वेस्टिगेशन
F----
इसे फास्टिंग Fasting (खाली पेट) कहते हैं और ये हाई ब्लड शुगर की स्थिति को समझने के लिए किया जाता है। इसका सैंपल कम से कम 12 घंटे की फास्टिंग के बाद लिया जाता है।
PP----
फुल फॉर्म Post Prandial होता है इसके अंतर्गत 80 ग्राम ग्लूकोस पिलाने के 2 घंटे बाद सैंपल लेते (ग्लूकोज लेने से बाद सैंपल लेने तक बीच में कुछ नहीं लेते हैं ) हैं और देखते हैं कि 2 घंटे में कितनी शुगर ब्लड में गई है।
HbA1c
पी पी और फास्टिंग से ब्लड शुगर का सही अंदाज नहीं लगता इसलिए इस टेस्ट की आवश्यकता होती है यह ३ महीने की एवरेज टेस्टिंग होती है और इसे 3 महीने में ही 1 बार कराना चाहिए ।
रेन्डम टेस्ट
कभी कभी अति शीघ्र ब्लड में शुगर की स्थिति का पता करना होता है तो किसी भी समय उसे ब्लड से जांच कर लेते हैं इसी को रेन्डम टेस्ट कहते हैं।
उपचार
डायबिटीज़ का उपचार 2 तरह से किया जा सकता है।
(१) इंसुलिन की मात्रा को बढा कर या उसके कार्य में सहयोग कर आयुर्वेद, एलोपैथी, होम्योपैथी और इलेक्ट्रो होम्योपैथी में अधिकतर इसी तरह के उपचार का प्रयोग किया जाता है। और इसी विचार से लोगों को तुरंत लाभ दिखाई देता है इसलिए इसी का प्रयोग वर्तमान समय में किया जा रहा है।
डायबिटीज़ में प्रयोग होने वाली इलेक्ट्रो होम्योपैथिक औषधियाँ
इलेक्ट्रो होम्योपैथी में बहुत सारी दवाएं हैं जिन से डायबिटीज को कंट्रोल किया जा सकता है बशर्ते उनका उचित डायमेंशन सिलेक्ट हो जाए जैसे:---
S1, S2, S3 ,S5, P4 ,Ver1, Ver2 , C5 , C10 , C15 , C17, Ven1 , L1 , L2 , BE ,WE आदि बहुत सी है।
इन औषधियों में कोई एक या दो हीं काफी है लेकिन उचित शब्द का चुनाव करना कठिन होता है। इसीलिए लाभ कम होता है दूसरे पेशेंट डायबिटीज का उचित प्रबंधन नहीं कर पाता है। उसे तुरंत आराम की आवश्यकता होती है। इलेक्ट्रो होम्योपैथी की औषधियों से नहीं हो पाती है। इसमें धीमे धीमे आराम मिलता है जो फील्ड में दिखता नहीं है।
(२) पैंक्रियाज की एब्नॉर्मल्टी को ठीक कर।
इस तरह के उपचार का तुरंत कोई लाभ नहीं दिखाई देता इसलिए इस उपचार पर अभी तक किसी ने विचार नहीं किया लेकिन मेरा विचार है कि इससे डायबिटीज को पूरी तरीके से ठीक किया जा सकता है लेकिन न कोई इतनी जहमत उठा सकता है न कोई इतने समय का इंतजार कर सकता है। आज के समय में हर कोई शॉर्टकट चलना चाहता है।
यदि इलेक्ट्रो होम्योपैथी की हाई पोटेंसी की दवाई चलाई जाए और शुगर को दूसरी दवाओं से कंट्रोल रखा जाए तो पैंक्रियाज की बीटा सेल जनरेट हो सकती हैं! पैंक्रियाज अपनी नॉर्मल स्थिति में काम कर सकता है! लेकिन यह शोध का विषय है। जिसमें लंबा समय लगेगा शायद इस पर कभी कोई विचार करें और आगे काम हो !
Writer: Dr. Ashok Kumar Maurya
Electro Homeopathic Practionar and Owner of Spagyric Research Laboratories (Since-1991), Lucknow
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