स्वप्नदोष के फायदे और नुकसान | स्वनदोष का इलाज कैसे करें | Nightfall treatment in Hindi

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स्वप्नदोष या वीर्यपात की होम्योपैथी चिकित्सा | Homeopathy me Nightfall ka ilaj 

nightfall treatment in homeopathy
  Nightfall treatment in homeopathy

दोस्तों आज पोस्ट में हम सभी एक बहुत ही विचित्र समस्या के बारे में जानेंगे। जैसा कि आप टाइटल नाम से ही समझ गए होंगे कि हम किस विषय पर बात करेंगे आज हम बात करेंगे वीर्य स्खलन के बारे में स्वप्नदोष में वीर्य स्खलन (वीर्य निकलना) हम हाथ से या मैथुन करके नही करते।वीर्य अपने ही आप बाहर निकल जाता है। ऐसा तब होता है जब रात को सोते है तो सोते समय ही कोई कामुक या अश्लील सपना देखते है तो वीर्य न चाहते हुए में अपने आप बाहर निकल जाता है। तो दोस्तों है ना ये एक विचित्र समस्या। इसी को स्वप्नदोष कहा जाता है।


वैज्ञानिकों के अनुसार यह कोई गंभीर बीमारी नही है। ऐसा सभी के साथ होता है वीर्य कोष जहाँ पर वीर्य इकठ्ठा होता है जब वह पूरा भर जाता है। तो तो ऐसे ही बाहर निकलने लगता है इसलिए इसका कोई नुकसान नही है। लेकिन लोगों के अलग अलग मत है। आज की पोस्ट में इसपर बहस न करते हुए हम जानेंगे कि स्वप्नदोष को कैसे रोकें और night fail hone ki dava क्या है

स्वप्नदोष या वीर्यपात होने के कारण

स्वप्नदोष ऐसे लोगों में अधिक होता है जो अविवाहित होते हैं। और हमेशा कामवासना के विचारों में लिप्त रहते हैं, अश्लील कहानियां पढ़ते रहते है, कामुक वीडियो देखते हैं।

इसके अतिरिक्त स्वप्नदोष होने में निम्न कारण होते हैं।
  • बराबर घुड़सवारी करना
  • बवासीर में कीड़े होना
  • सुजाक रोग होने
  • तनाव
  • फिजिकल एक्टिविटी न होना

स्वप्नदोष के लक्षण क्या है?

स्वनदोष होने की को तय सीमा या संख्या नही होती कि कब कब होगा किसी स्वस्थ मनुष्य को महीने में एक दो बार होने से उसे कोई भी प्रभाव नही पड़ता है लेकिन कब यह बहुत ज्यादा होने लगता है तो इसके कई नुकसान होते है जो अलग अलग लक्षणों से साथ उभरने लगते है।

स्वप्नदोष या सपने में वीर्य स्खलन में निम्न लक्षण दिखाई देते हैं-
  • स्मरण शक्ति का कमजोर होना
  • शरीर में थकावट व सुस्ती आना
  • मन उदास रहना
  • चेहरे पर चमक व हंसी की कमी
  • लज्जाहीन होना
  • धड़कन का बढ़ जाना
  • सिरदर्द होना
  • चक्करआना
शरीर में खून की कमी होना आदि इस रोग के लक्षण हैं।

स्वप्नदोष व वीर्यपात को दूर करने के लिए होम्योपैथी औषधियों से उपचार

एग्नस-कैक्टस Agnus Castus- शरीर और मन की सुस्ती, भारी आवाज, शरीर कमजोर होना, जननेन्द्रिय की कमजोरी एवं काम शक्ति का कम होना आदि लक्षण स्वप्नदोष से पीड़ित रोगी में हों तो उसके रोग को ठीक करने के लिए एग्नस-कैक्टस औषधि की 6x शक्ति का प्रयोग किया जाता है।

ओरिगैनम Origanum- कामवासना की ऐसी तीब्र इच्छा की रोगी हस्तमैथुन करने पर मजबूर हो जाएं। रोगी अपने कामवासना पर नियन्त्रण न रख पाता हो, हमेशा अश्लील बाते सोचता रहता हो, उसे जननेन्द्रिय में ऐसा महसूस होता है जैसे कुछ चल रहा है। ऐसे कामुक लक्षणों से पीड़ित रोगी को ओरिगैनम औषधि की 3 शक्ति का सेवन कराना चाहिए। इस औषधि का स्नायु संस्थान पर प्रभाव पड़ता है जिससे हस्तमैथुन की इच्छा शान्ति होती है। इस औषधि के सेवन से स्त्री की कामुक इच्छा भी शांत होती है।

ग्रैटिओला Gratiola- यह औषधि स्त्रियों में हस्तमैथुन की तीव्र इच्छा को शांत करती है। यदि किसी स्त्री में कामवासना की तीव्र इच्छा हो तो उसे ग्रैटिओला औषधि की 2x से 3x शक्ति का सेवन कराना चाहिए।

बेलिस-पेरेनिस Bellis Perennis- स्वप्नदोष या वीर्य पात के रोग से पीड़ित रोगी को बेलिस-पेरेनिस औषधि देनी चाहिए। यह औषधि विशेष रूप से उसके लिए लाभकारी है जिसमें यह रोग अधिक हस्तमैथुन के कारण उत्पन्न हुआ हो। इस रोग में बेलिस-पेरेनिस- मदर टिंचर Q औषधि 5 बूंद की मात्रा में दिन में 2 बार सेवन करना चाहिए।

कैलेडियम Caladium- यह औषधि जननांगों पर विशेष क्रिया करती है। अत: इसका प्रयोग जननांगों से सम्बंधित रोगों को दूर करने के लिए किया जाता है। यदि रोगी को नींद में लिंग उत्तेजित हो और जागने पर ढीला पड़ जाए। रोगी में नपुंसकता के लक्षण दिखाई दें। कभी-कभी नींद में बिना किसी अश्लील सपने के ही वीर्यपात हो जाए। ऐसे रोगी के इन कष्टों को दूर करने के लिए कैलेडियम औषधि की 3x या 6x शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।

ब्यूफो Bufo Rana- बचपन में जननेन्द्रिय से छेड़-छाड़ करने की इच्छा होती है और इसके लिए वह एकान्त ढूंढता है। ऐसे लक्षणों में ब्यूफो औषधि का प्रयोग करना हितकारी होता है। स्वप्नदोष होने एवं हस्तमैथुन के कारण उत्पन्न अन्य लक्षणों को दूर करने के लिए भी इस औषधि का प्रयोग किया जाता है।

थूजा Thuja- यदि अधिक वीर्यपात होने के लक्षण दिखाई दें तो थूजा- मदर टिंचर औषधि 5 बूंद की मात्रा में सेवन करना चाहिए।

पिकरिक ऐसिड Picric Acid- जननेन्द्रिय की जबर्दस्त उत्तेजना तथा विषय भोग की अधिक इच्छा होना आदि लक्षणों में रोगी को पिकरिक ऐसिड औषधि की 6x शक्ति का सेवन कराना चाहिए।

बैराइटा-कार्ब Baryta Carb- रात को नींद में उत्तेजक स्वप्न आने के कारण वीर्यपात होने के बाद अत्यंत कमजोरी अनुभव होने के लक्षणों में बैराइटा-कार्ब औषधि की 6x शक्ति का प्रयोग करना अत्यंत लाभकारी होता है।

एसिड-फास Acid Phos - अधिक संभोग क्रिया या हस्तमैथुन के कारण स्मरण शक्ति समाप्त हो गई हो तो एसिड-फास औषधि की 3x या 30CH शक्ति लें। इस औषधि के प्रयोग से स्मरण शक्ति लौटती है और वीर्यदोष भी दूर होता है।

चायना China- यदि जननेन्द्रिय में बराबर उत्तेजना पैदा हो, कानों में भों-भों की आवाजें सुनाई दें, चेहरा लाल हो जाए और सिर चकराता हो तो ऐसे लक्षणों में उपचार के लिए चायना औषधि की 6x या 30CH शक्ति का प्रयोग करना हितकारी होता है। यदि वीर्यपात होने के बाद अधिक कमजोरी का अनुभव हो तो चायना औषधि की 30CH शक्ति लेनी चाहिए।

स्टैफिसैग्रिया Staphisagria- अधिक हस्तमैथुन करने के कारण रोगी को कमजोरी आ जाती है। रोगी व्यक्ति हमेशा अश्लील बातें सोचता रहता है। रात को स्वप्नदोष हो जाता है। चेहरा उदास व मुर्झाया रहता है। आंखों के चारों ओर काले निशान बन जाते हैं। पीठ कमजोर हो जाती है एवं उसमें दर्द होता है। मैथुन के बाद रोगी हांफने लगता है और कभी-कभी सेक्स सम्बंधी मानसिक पागलपन भी उत्पन्न होता है। ऐसे लक्षणों में रोगी को स्टैफिसैग्रिया औषधि की 30CH शक्ति का सेवन करना चाहिए।

फास्फोरस Phosphorus- वीर्यपात के रोग से पीड़ित रोगी को यदि वीर्यपात शाम के समय अधिक होता हो और वीर्यपात के बाद उसे कमजोरी महसूस होती हो तो ऐसे लक्षणों में फास्फोरस औषधि की 6 या 30 शक्ति का सेवन करना चाहिए। यदि संभोग करने की शक्ति समाप्त हो गई हो, दिल की धड़कन बढ़ी हुई महसूस हो, अधिक वीर्यपात होता हो और हस्तमैथुन के कारण लिंग ढीला हो गया हो तो इस तरह के लक्षणों में फास्फोरस औषधि की 6x या 30 CH शक्ति का प्रयोग करना लाभकारी होता है।

डायोस्कोरिया Dioscorea- इस औषधि का प्रयोग अधिक वीर्यपात होने के लक्षणों में किया जाता है। जननांग शिथिल (ढ़ीला) हो जाने पर कभी-कभी रोगी को एक ही रात में 3-4 बार वीर्यपात हो जाता है। रात को अधिक पीर्यपात होने के कारण रोगी अपने आप को बहुत सुस्त व कमजोर महसूस करता है। रोगी को ऐसा महसूस होता है जैसेकि उसके घुटनों में जान ही नहीं है। ऐसे लक्षणों में रोगी को पहले डायोस्कोरिया औषधि की 12x शक्ति लेनी चाहिए। यदि इससे लाभ न हो तो इसकी 30 CH शक्ति का सेवन करें।

कैन्थरिस Cantharisसुजाक रोग के कारण वीर्यपात होना, पेशाब के साथ बूंद-बूंद कर धातु आना और जलन होना और संभोग की तीब्र इच्छा होना आदि ऐसे लक्षणों में कैन्थरिस औषधि का प्रयोग करने से लाभ मिलता है। इस औषधि का प्रयोग अधिक हस्तमैथुन के कारण उत्पन्न वीर्यपात रोग में किया जाता है। वीर्यपात होने पर इस औषधि की 6x शक्ति का सेवन करना चाहिए।

कैल्के-कार्ब Calcarea Carb- यदि मैथुन करने की बहुत अधिक इच्छा होती है परन्तु संभोग के समय लिंग में कड़ापन नहीं होता है। संभोग करते समय वीर्यपात हो जाता है और पूरे शरीर में दर्द व कमजोरी महसूस होती है। इस तरह के लक्षणों में कैल्के-कार्ब औषधि की 6x शक्ति का प्रयोग करना लाभदायक होता है।

यदि शीत प्रकृति वाले रोगी के हाथ-पैरों में ठण्डे पसीना आए और हस्तमैथुन की आदत हो तो उसे कैलकेरिया कार्ब औषधि की 30 CH शक्ति का सेवन 4 - 4 घंटे के अंतर पर करना चाहिए।

लाइकोपोडियम Lycopodium- अधिक कमजोरी उत्पन्न करने वाला स्वप्नदोष, बहुत अधिक वीर्यपात होना, जननेन्द्रिय छोटा होना, संभोग के समय लिंग का ढ़ीला और ठंडा हो जाना, कब्ज होना, बजहजमी, पेट का फूल जाना एवं दिल की धड़कन बढ़ जाना आदि। ऐसे लक्षणों में रोगी को लाइकोपोडियम औषधि की 200CH शक्ति का सेवन करना चाहिए।

कैलकेरिया फॉस Calcarea Phosphorica 6x- कामवासना की तीव्र इच्छा होने के लक्षणों में कैलकेरिया फॉस औषधि की 3x शक्ति को 0.30 ग्राम की मात्रा में 8-8 घंटे के अंतर पर सेवन करना चाहिए।

उस्टीलैगो Ustilago- हस्तमैथुन की ऐसी तीव्र इच्छा जिसको रोगी रोक न पाए उसे दूर करने के लिए उस्टीलैगो औषधि की 3x शक्ति दिन में 2 बार लेनी चाहिए।

बेल्लिस पेरेन्निस Bellis Perennis- हस्तमैथुन की आदत पड़ जाने के कारण शारीरिक व मानसिक रूप से बहुत कष्ट होता है। ऐसे में रोगी को बेल्लिस पेरेन्निस औषधि की 3x शक्ति दिन में 4 बार लेनी चाहिए।

डुरम - यदि किसी बच्चे को हस्तमैथुन की आदत पड़ गई हो तो उसे डुरम औषधि की 1M मात्रा का सेवन सप्ताह में एक बार करना चाहिए।

कोनायम Conium- कामवासना का बढ़ जाना, संभोग की शक्ति का कम होना, चाह कर भी अपने आप को कामवासना की इच्छा से न रोक पाना। कामवासना को रोकने से मन में अशान्ति महसूस होना। स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाना, सुस्ती आना, कार्य करने का मन न करना आदि। इस तरह के लक्षणों से पीड़ित रोगी को कोनायम औषधि की 30 CH या 200CH शक्ति का सेवन करना चाहिए। इस औषधि से इच्छा शक्ति बढ़ती है जिससे कामवासना को अपने मन से दूर रखने में मदद मिलती है और साथ इस रोग के कारण उत्पन्न लक्षण आदि भी दूर होते हैं।

साइना - कीड़े के कारण धातुदोष होने पर साइना औषधि की 3x मात्रा या 200 CH शक्ति का प्रयोग करना लाभदायक होता है।

सेलेनियम Selenium- स्वप्नदोष को दूर करने के लिए सेलेनियम औषधि का प्रयोग किया जाता है। वीर्यपात होने के बाद भी इसकी अनुभूति बनी रहती है। अधिक स्त्री संभोग करने एवं हस्तमैथुन करने के कारण उत्पन्न दोष आदि को दूर करने के लिए सेलेनियम औषधि की 6 या 30 शक्ति का प्रयोग करना अत्यंत लाभकारी होता है। वीर्यपात या धातुदोष के कारण आई कमजोरी आदि को दूर करने के लिए इस औषधि का प्रयोग किया जाता है। रोगी में कमजोरी की ऐसी स्थिति जिसमें रोगी शारीरिक और मानसिक कार्य बिल्कुल ही नहीं कर पाता है। ऐसे लक्षणों में भी इस औषधि का प्रयोग उचित होता है।

साइलीशिया Silicea- यदि दस्त के समय जोर लगाने से भी वीर्यपात हो जाता हो तो इस रोग को ठीक करने के लिए साइलीशिया औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

ऐसिड-फॉस Acid Phos- यदि रोगी को हस्तमैथुन करने की आदत पड़ गई हो या जननेन्द्रिय में ढीलापन के कारण नींद में वीर्यपात हो जाता हो। ऐसे में रोगी को ऐसिड-फॉस औषधि की 18 शक्ति का सेवन करना चाहिए। वीर्यपात के बाद यदि रोगी को अत्यधिक कमजोरी महसूस हो, टांगें कमजोर हो गई हो, रीढ़ में जलन होती हो, जननांग ढीली पड़ गई हो एवं वह उत्तेजित न होता हो, अंडकोष ढीला होकर लटक गया हो एवं मैथुन में जल्दी वीर्यपात हो जाता हो तो इस तरह के लक्षणों में एसिड-फास औषधि की 1x मात्रा को एक गिलास पानी में 5 बूंद मिलाकर खाना खाने के बाद लेने से कमजोरी दूर होती है एवं अन्य लक्षण भी समाप्त हो जाते हैं।


यदि इस तरह के लक्षणों में एसिड-फास औषधि के सेवन से लाभ न मिले तो डिजिटेलिस औषधि की 1x या 2x मात्रा का प्रयोग करना चाहिए। इस औषधि का सेवन सुबह के समय नाश्ता करने के बाद कुछ दिन लगातार करने से हस्तमैथुन से उत्पन्न लक्षण दूर होते हैं। इस औषधि का प्रयोग वीर्यपात के साथ हृदय की धड़कन बढ़ जाने पर किया जाता है।

ऊपर बताए गए लक्षणों को दूर करने के लिए औषधियों का उपयोग करने के अतिरिक्त जल्दी लाभ के लिए बीच-बीच में अन्य औषधि दी जा सकती है। बीच-बीच में प्रयोग होने वाली औषधियां 
आरम-मेट 3x मात्रा विचूर्ण या 200
CH शक्ति, प्लाटिला की 6x, नक्स-वोमिका की 6x या 30CH, ग्रैफाइटिस की 30CH, सल्फर की 30CH से 200CH के बीच की शक्ति, बैराइटा-कार्ब की 6x, इग्नेशिया की 6x, स्टैफिसेग्रिया की 6x, जेल्स की 30CH, आर्जेण्टम की 6x, ब्यूफो की 200CH, पिक्रिक-एसिड की 30CH, कैल्के-फास की 12x चूर्ण, सेलेनियम की 30CH, कैलेडियम की 30CH, लैकेसिस की 200CH, लाइको की 200, कोनायम की 30CH या नेट्रम की 30CH शक्ति आदि।

रोग को ठीक करने के लिए औषधियों के उपयोग के साथ कुछ अन्य उपचार :-

  • स्वप्नदोष होने या वीर्यपात होने के रोग में औषधि के सेवन के साथ रोगी को सुबह-शाम घूमना चाहिए।
  • रोगी को धर्म ग्रन्थ पढ़ना चाहिए।
  • पेशाब करने के बाद जननेन्द्रिय को धोना चाहिए।
  • उत्तेजना पैदा करने वाली चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • उत्तेजक फिल्म व उत्तेजक बातों से बचना चाहिए।
  • हस्तमैथुन नहीं करना चाहिए एवं उत्तेजक गाने सूनने से परहेज करना चाहिए।

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