पौधों के औषधीय तत्व Medicinal Part of Plant
प्रत्येक औषधि में कोई न कोई ऐसा तत्व होता है जिसके के कारण औषधि लाभ या हानि पहुंचाती है। इस तत्व को अलग-अलग पैथी में अलग-अलग नाम दिया गया है। यूनानी पैथी में इस तत्व को "जहर" कहा गया है, आयुर्वेद में इसे तत्व को "सत्" कहा है।
होम्योपैथी में इस तत्व को "वाइटल फोर्स" कहा है इलेक्ट्रो होम्योपैथी में इस तत्व को "ओड फोर्स" कहा गया है। इस तत्व को देखा नहीं जा सकता केवल अनुभव किया जा सकता है यह तत्व एक शक्ति के रूप में होता है। इलेक्ट्रो होम्योपैथी में इसका बड़ा सटीक नाम दिया गया है । ओड फोर्स (Od force / Odd force) यहां हम एक बात स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि दोनों ओड का अर्थ एक ही है केवल भाषांतर है ।
ओड (Od , Odd ) का अर्थ अकेला या अयुग्म ( जिसका कोई जोड़ा न हो होता है ) होता है । संसार में केवल परमात्मा ही है जिसका कोई जोड़ा नहीं वही आयुग्म है और उसकी शक्ति ही ओड फोर्स है। यह शक्ति संसार की समस्त चीजों में व्याप्त है। जब तक यह शक्ति रहती है तब तक वस्तु संसार में रहती है। जब यह शक्ति वस्तु से समाप्त हो जाती है तब वस्तु विलीन हो जाती है।
जैसा कि माना जाता कि एक पेड़ के अंदर यह शक्ति जब तक विद्यमान रहती है तब तक वह पेड़ सजीव रहता है लेकिन यदि उसे काट दिया जाए तब भी यह शक्ति उसके अंदर मौजूद रहती है । उस की छाल, पत्ती ,फूल जड़ ,सब में यह शक्ति मौजूद रहती है। जब तक यह शक्ति मौजूद रहती है तब तक उन्हें औषधि के रूप में प्रयोग किया जा सकता है । कभी-कभी हम देखते हैं कि वस्तु ओड फोर्स से विहीन लगती है तब भी उसमें शक्ति विद्यमान रहती है अर्थात जब तक यह शक्ति रहती है वस्तु का अस्तित्व कुछ न कुछ बना रहता है।
अब यहां सवाल उठता है कि वह फोर्स परमात्मा की शक्ति है उसे देखा नहीं जा सकता केवल अनुभव किया जा सकता है। इसलिए मेडिकल साइंस इसे नहीं मानती है । किसके लिए हमें उन चीजों का विवरण देना पड़ेगा जिनको मेडिकल साइंस मानती हो।
हम जानते हैं कि पेड़ पौधे भी हमारी तरह से जीवन जीते हैं। उनके जीने के लिए भी आवश्यक तत्वों की आवश्यकता होती है। बिना उनके उनका जीवन नहीं चलता है । हमारी तरह से वे भी एक्टिविटी करते हैं । इसके बिना उनका जीवन संभव नहीं है । हां यह बात अलग है कि हमारी और उनकी अलग अलग तरह की गतिविधियां हो सकती हैं । जैसे हमारे शरीर में अस्थि , मांस ,मज्जा,रक्त आदि होते हैं वैसे उनके शरीर में कुछ अलग तरह की ऐसी ही व्यवस्था होती है। इन सब को चलाने के लिए हमारे शरीर में विटामिंस, एंजाइम्स, हारमोंस आदि होते हैं वैसे उनके शरीर में भी यह सब चीजें पाई जाती है।
जब हमारे शरीर का कोई अंग कटता है तो इसमें वही चीजें पाई जाती हैं जिन चीजों से शरीर पोषित होता है। जैसे एंजाइम्स विटामिंस हारमोंस अस्थि मज्जा रक्त मांस तथा खनिज आदि । इसी तरह से जब पेड़ पौधों से कोई भाग लिया जाता है तो उसमें भी वही सारे तत्व मौजूद होते हैं जिनसे पौधा पोषित होता है । उनके अंगों में इन तत्वों के अलावा रंग, तेल ,गंध, गोद, विटामिन, एंजाइम ,हार्मोन ,लकडी ,खनिज लेटेक्स आदि अनेक तत्व शामिल होते हैं।
जब कोई औषधि तैयार की जाती है तब पौधे के उन उन तत्वों व भागों का का उपयोग किया जाता है जिनका औषधि निर्देश होता है ।
उदाहरण के लिए जब कोई होम्योपैथिक औषधि तैयार की जाती है तो सबसे पहले उसका मदर टिंचर तैयार किया जाता है। इस मदर टिंचर में लकड़ी , एन्जाइम , विटामिन ,हार्मोनस , रंग , गोंद, तेल, लैटिक्स खनिज आदि सभी सूक्ष्म मात्रा में प्रयोग किए जाते हैं । जबकि आयुर्वेद में इन्हें भारी मात्रा में प्रयोग किया जाता है।
आप बात आती है कि इलेक्ट्रो होम्योपैथी में किस तत्व का प्रयोग किया जाता है ? तो आपको बता दें इलेक्ट्रो होम्योपैथी में पौधों के उन तत्वों को दवा के रूप में प्रयोग किया जाता है जो " डिस्टिल्ड वाटर में घुल सकते है और 37 डिग्री सेंटीग्रेड पर भाप बनकर उड़ सकते है । इसके अलावा दूसरे तत्वों का इलेक्ट्रो होम्योपैथी में प्रयोग नहीं किया जाता है।
इसकी पुष्टि निम्न प्रकार से की जा सकती है:------
(1) किसी पौधे में सुगंध उसके तेल में होती है जब हम किसी पौधे को डिस्टिल वाटर में डालते हैं तो तेल पानी में नहीं घुलता है। जो थोड़ा बहुत घुल भी जाता है तो भाप बनकर कोहोबेशन मे नहीं उड सकता है क्योंकि तेल का Boiling प्वाइंट डिस्टिल्ड वाटर के Boiling प्वाइंट से अधिक होता है फिर हम 37 डिग्री सेंटीग्रेड पर ही वाष्पीकरण करते हैं जिस पर सुगंधित तेल का वाष्पीकरण होना संभव नहीं है। इस प्रकार प्राप्त स्पेजिरिक एसेंस सुगंध रहित (Oder less) होगी।
(2) जब किसी पौधे को डिस्टल वाटर में डालते हैं तो पौधा डिस्टिल्ड वाटर में कलर छोड़ता है लेकिन जब हम कोहोबेशन करते हैं तब वह कलर वाष्पित होकर उड़ नहीं पाता है । इसलिए स्पेजिरिक एसेंस रंग रहित (Colour less) होती है।
(3) जब हम किसी पौधे को डिस्टिल वाटर में डालते हैं तो उसमें उपस्थित एल्केलाइडस डिस्टिल वाटर में नहीं घुलते हैं। यदि कुछ मात्रा में घुलते भी हैं तो वह 37 डिग्री सेंटीग्रेड पर वाष्पित नहीं हो पाते है । इसी तरह पौधों में उपस्थित शुगर डिस्टिल वाटर में घुल जाती है लेकिन जब हम 37 डिग्री सेंटीग्रेड पर कोहोबेशन करते हैं। तो इतने कम ताप पर शुगर भी वाष्पित नहीं हो पाती है इसलिए स्पेजिरिक एसेंस स्वाद रहित (Tasteless) होती है।
इस प्रकार हम देखते हैं इलेक्ट्रो होम्योपैथी में केवल वह पदार्थ औषधि तत्व के रूप में प्रयोग किए जाते हैं जो डिस्टिल वाटर में घुल सकते है और कोहोबेशन में भाप बनकर 37 डिग्री सेंटीग्रेड पर उड सकते है। यदि किसी इलेक्ट्रो होम्यो पैथिक औषधि मे इन तत्वों के अतिरिक्त कोई अन्य तत्व है तो उसे इलेक्ट्रो होम्योपैथिक औषधि नहीं कहा जा सकता है!
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