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इलेक्ट्रो होम्यो पैथी- अमृत अधययन " |
ELECTRO HOMEOPATHY- "अमृत अधययन "
पूर्व में पोस्टेड दोनों लेखों "पौधा मंथन" और "पौधा विष भी अमृत भी" का संबंध "अमृत अधययन" से है, इस लिए उन दोनों लेखों का सारांश बतना आवश्यक है-
एक पौधा अनेक भिन्न-भिन्न रासायनिक यौगिकों का समूह है, जीसे दो वर्गों में रखा जा सकता है। -एक वर्ग में वे रासायनिक यौगिक जो आदमी शरीर के साथ प्रतिक्रिया करते हैं, और दूसरे वर्ग में वे रासायनिक यौगिक हैं, जो आदमी के शरीर के साथ प्रतिक्रिया नही करते हैं।
वर्ग एक के रासायनिक यौगिक आदमी के लिए विष है, क्योंकि वे कम या अधिक हानि पहुंचाते हैं। भयंकर वानस्पतिक विष इसी वर्ग के रासायनिक हैं। इलेक्ट्रो होम्यो पैथी को छोड़कर अन्य सभी चिकित्सा पद्धतियाँ अपनी औषधियों का आधार इसी वर्ग के रासायनिक यौगिकों को माना है। यहाँ स्मरण रखना चाहिए कि विश्व की अकेली चिकित्सा पद्धति केवल इलेक्ट्रो होम्यो पैथी की औषधियों के स्रोत पादप हैं। जब कि अन्य चिकित्सा पद्धतियों में दवाईयां पौधों के अलावा सजीव, नीर्जीव वस्तुओं के अलावा रोगों के जीवाणुओं से भी तैयार की जाती है। ऐसी दवाईयां भी लाभ-हानि के गुणों से युक्त हैं।
रासायनिक यौगिक हैं, जो मनुष्य के शरीर के साथ प्रतिक्रिया करते हैं। वास्तविक औषधि वही है, जो शरीर को हानि पहुंचाए बिना रोग को अच्छा करे। जो रोग में कुछ लाभ पंहुचा कर रोगी शरीर को हानि पहुंचाए, वस्तुत: वे औषधि नहीं है, विष है।
इस लिए वर्ग दो कै रासायनिक यौगिकों को औषधि का आधार मानना भूल और भ्रांति है। भले ही विष से प्रत्यक्ष लाभ दिखाई देता हो, और हानि प्रत्यक्ष दिखाई न देता हो, फिर भी विष, विष ही है। हानि पहुंचाना उसका स्वभाव है, इस बात को भुलाया नहीं जा सकता है कि विष से हानि और हानि से रोग का जन्म होगा हीं। औषधि के रूप में पहचाने जाने वाले संपूर्ण पौधों के कुछ भाग अथवा कुछ अंग से काढ़ा या चूर्ण अथवा गोली तैयार कर के उनकी कुछ हीं अल्प मात्रा के अनुपान से रोग cure होता हुआ पाया गया है, और इस अल्प मात्रा से हानि भी बहुत कम देखा गया है। रोगोपचार के लिए यह विधि अर्थात अल्पतम मात्रा का सेवन विश्वास के साथ आज भी संपूर्ण विश्व में किया जाता है।
पूर्व की कंडिका में अंकित तथ्यों पर मनन करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि पौधों से प्राप्त रासायनिक यौगिकों की मात्रा ज्यों-ज्यों कम की जाती है, पौधों के सभी प्रकार के रासायनिक यौगिकों की मात्रा के ही अनुरूप उनकी क्रिया भी त्यों-त्यों कम होती चली जाती है। लेकिन पौधों के रासायनिक यौगिकों में कुछ रासायनिक यौगिक ऐसे भी है, जो अति मात्रा अथवा सांद्रता में रह कर भी अति सक्रिय क्रिया करते हैं या कराते हैं, जिन का रोग को ठीक करने में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
इटली निवासी कौंट सीजर मैटी पौधों के रासयनिक यौगिकों की मात्रा अथवा सांद्रता कम करते-करते एक विशेष स्तर पर एक ऐसे रासायनिक यौगिक खोज निकाली, जिस में न रंग था, न स्वाद था, न गंध था और न मनुष्य के शरीर पर होने वाली चिरपरिचित शारीरिक प्रतिक्रिया थी। फिर भी पौधों की रासायनिक यौगिकों की अल्पतम मात्रा में रह कर रोग को शीघ्र और स्थायी रूप से ठीक करने की अद्भुत और विलक्षण विशेषता देखी। पौधों की रासायनिक यौगिकों की उस अल्पतम मात्रा (सांद्रता 1: 10000= D4) प्राप्त करने की विधि और अल्पतम मात्रा पर आधारित दवाओं से रोगोपचार की विधि इलेक्ट्रो होम्यो पैथी मानवता के लिए बहुत बड़ी देन है। साथ ही यह चिकित्सा जगत के लिए एक नई और क्रांतिकारी दिशा है। वैज्ञानिक तर्कों से, बायो केमिस्ट्री के अध्ययनों से, मैटी के प्रयोगों से, और इलेक्ट्रो होम्यो पैथी के चिकित्सकों के प्राप्त व्यवहारिक अनुभवों से, पौधों में विष से सर्वथा बिलकुल अलग प्रथम वर्ग के रासायनिक यौगिकों में कुछ ऐसे रासायनिक यौगिक का होना प्रमाणित होता है, जो----
(ख) - मनुष्य के शरीर से कोई प्रति क्रिया नहीं करते हैं।
(ग) - इ. हो. पै. को छोड़कर अन्य किसी भी चिकित्सा पद्धति द्वारा रोगोपचार के दौरान इस बात पर विचार नहीं किया गया है।
वेद, पुराण, उपनिषद आदि आर्ष ग्रंथों में वर्णित अमृत के बारे में भी कुछ इसी तरह की बात कही गई है। जीवन देने के लिए अमृत की एक बूंद ही काफी है।
मौत (रोग) को दूर कर के जीवन (स्वास्थ्य) प्रदान करती है। पौधों के इन रासायनिक यौगिकों को आधुनिक विज्ञान एंजाइम (Enzymes) कहता है। संभवतः आर्ष ग्रंथों में वर्णित अमृत का तात्पर्य एंजाइम हीं हो।
विगत वर्षों में विज्ञान के क्षेत्र में की गई खोजों से अमृत (एंजाइम) पर और अधिक प्रकाश डाला जा सकता है। सभी जीव कुछ कार्य एक समान करते हैं या होतें है। बात रह जाती है पौधों से एंजाइम लेकर रोगी को देने की। पौधों से एंजाइम प्राप्त कर के रोगी अथवा बीमार व्यक्ति को आपूर्ति करने का कार्य इलेक्ट्रो होम्यो पैथी व्यवहारिक रूप से करती है। यद्यपि कि यह ज्ञात नहीं है कि एक जीव की कोशिकाओं द्वारा कितना और कितने प्रकार के एंजाइम बनाये जाते हैं, फिर भी, एंजाइम का अध्ययन दिन-प्रतिदिन विकसित होता रहा है। एंजाइम के अधययन के आधार पर एंजाइम के निम्नलिखित प्रोपर्टीज बताए गए हैं-
- एंजाइम प्रोटीन योगिक हैं, जिनका निर्माण केवल सजीव कोशिकाएं करती हैं।
- सभी एंजाइम का अध्ययन और कृत्रिम संरचना प्रयोगशाला में संभव नहीं हुआ है।
- ये जल और अल्कोहल में घुलनशील होते हैं।
- एंजाइम द्वारा उत्प्रेरित अभिक्रिया के कारण उत्पादित रसायन के साथ एंजाइम भी उपस्थित रहते हैं।
- ये प्रोटीन पदार्थ हैं, जो सजीवों के परीचायक है, प्रत्येक जीव कुछ कार्य विशेष रूप से करते हैं,
उदाहरण के लिए अमीवा एक कोशिका वाला जीव है, और मनुष्य में लगभग तीन खरब से भी अधिक कोशिकाएं है। कोशिकाओं का प्रत्येक कार्य क्रमागत कई रासायनिक अभिक्रियाओं का प्रतिफल है, जिन्हें बायो केमिकल रियेक्शन कहते हैं। क्योंकि वे जीव के अंदर होते हैं, प्रयोगशाला में नहीं होते। प्रत्येक बायो केमिकल रियेक्शन को कैटेलाईज करने के लिए एक विशेष प्रकार के कैटालिस्ट की निश्चित मात्रा चाहिए। उस उत्प्रेरक को जीव की कोशिकाएं बनाती है। इस लिए उन्हें जैव - उत्प्रेरक अथवा एंजाइम कहते हैं। प्रत्येक बायो केमिकल रियेक्शन के लिए भी अलग- अलग एंजाइम चाहिए। कब, कौन सा और कितना एंजाइम कोशिका उत्पादन करे, इस क्रिया पर जीव के कंट्रोल सिस्टम का नियंत्रण रहता है।
पूर्व की कंडिका से स्पष्ट हूआ है कि जीव के सभी कार्यो कि अथवा जीवन का आधार ही एंजाइम है। एक हरे-भरे, फूलते-फलते पौधा का तात्पर्य है कि उसकी कोशिकाओं द्वारा उनमें, उन्ही के लिए इच्छित अथवा बांछित एंजाइम का उत्पादन और संचार हो रहा है। एंजाइम का उत्पादन यदि ठप हो जाए तो, मृत्यु निश्चित है। एंजाइम के कम उत्पादन होने पर जीव की गतिविधियां धीमी पड़ जाएंगी, जो वास्तव में रोग है। एक कोशिका को क्षति पहुंचाने पर और उसके वातावरण में अंतर पड़ने पर अथवा कंट्रोल सिस्टम में ढिलाई आने पर कोशिका के एंजाइम के उत्पादन की क्षमता में कमी हो जाती है। इस लिए इस परिस्थिति को दूर करके एंजाइम ही रोग को दूर कर सकता है।
एक पौधा की कोशिका और आदमी की कोशिका के कार्यों में मौलिक रूप से समानता है। हालांकि पादप कोशिकाओं के कुछ कार्य अधिक है। इस लिए पादप की कोशिकाओं में पाए जाने वाले एंजाइम में वे सभी एंजाइम होते हैं, जो आदमी की कोशिकाओं में पाए जाते हैं। एक बीमार और रोगी आदमी में एंजाइम की कमी होती है, परंतु एक ताजे और स्वस्थ 🌱 में वे सभी एंजाइम प्रचुर मात्रा में उपस्थित रहते हैं, जिसे पृथिकिकरण विधि द्वारा अन्य रसायन से इन्हें पृथक किया जा सकता है।
ऊपर की कंडिका की पंक्तियों में वर्णित अभिलक्षणों वाला एंजाइम की अति अल्प मात्रा ही रोग के संवेग को हरण कर के पूर्ण स्वास्थ्य का लाभ देता है। जीवों में जब तक एंजाइम का कुशल निर्माण और नियंत्रित संचार होता रहता है, तब तक जीव जीवित, स्वस्थ, निरोग, और तरोताजा रहता है और जब एंजाइम का निर्माण कम होता है, तब रोग और निर्माण बंद या रूक जाता है, तब मृत्यु हो जाती है। Enzymes are active principles of life.
इस प्रकार भारतीय आर्ष ग्रंथों में जिस अमृत (NECTAR) की कल्पना की गई है, वह एंजाइम ही है। एंजाइम का अध्ययन अमृत अध्ययन है। इलेक्ट्रो होम्यो पैथी ने पौधों से प्राप्त एंजाइम से सभी रोगों को, अपरिहार्य शल्य क्रियाओं को छोड़कर क्योर करने की विधि बताकर मानव को अमृत से साक्षात्कार कराया है।
लेखक : डॉ सुदामा प्रसाद सिंह
वरिष्ठ इलेक्ट्रो होम्यो पैथ ऑफ इंडिया एवं फाउंडर मेम्बर ऑफ इहपरसी
एन. वाइ. -डी./135, न्यू यार पुर, जनता रोड नंबर - 3. (देवी स्थान)
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