इलेक्ट्रो होम्यो पैथी अकेली चिकित्सा पद्धति जो निर्भर पौधों पर | Electro homeopathy 100% plant base pathy

इलेक्ट्रो होम्यो पैथी अकेली चिकित्सा पद्धति जो निर्भर पौधों पर | Electro homeopathy 100% plant base pathy
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इलेक्ट्रो होम्यो पैथी अकेली चिकित्सा पद्धति जो निर्भर पौधों पर | Electro homeopathy 100% plant base pathy

Electro homeopathy 100% Plant Base
  Electro homeopathy 100% Plant Base

इलेक्ट्रो होम्यो पैथी अकेली चिकित्सा पद्धति है, जो औषधियों के  लिए केवल और केवल पौधों पर निर्भर करती हैं। इसलिए आप सब जिज्ञासु बंधुओ एवं बहनो के लिए पौधा मंथन किया जाए, कैसा रहेगा?  इस लिए मैं आप सब के लिए और इलेक्ट्रो होम्यो पैथी के विकास के लिए पौधों का कर हा मंथन। 
"पौधा मंथन "

         देव पुस्तक वेद,  पुराण, उपनिषद अथवा आर्ष ग्रथों में सागर मंथन की चर्चा है। सागर मंथन का कार्य सुरों और असुरों ने मिलकर किया था। सागर मंथन से अनेक बहू मूल्य हीरा, जवाहरात, रत्न, जीव आदि अनेकों उपयोगी वस्तुओं की प्राप्ति हुई थी। उन वस्तुओं अथवा पदार्थो में विष मिला था और अमृत भी। अमृत कलश के लिए देवासुर संग्राम हुआ। असुरों की हार हुईं, और देवताओं ने अमृत पान करके अमरता प्राप्त की। 

         सागर मंथन में पाए जाने वाले अनेकानेक बहुमूल्य पदार्थों की भांति एक पौधा भी अनेक बहुमूल्य रासायनिक यौगिकों का अतुल भंडार के साथ प्राप्त हुआ है। एक अनुमान के अनुसार एक सायेदार और फलदार पौधा के जीवन काल के दौरान पादप से प्राप्त सभी सेवाओं और वस्तुओं का मूल्यांकन लगभग पचास लाख रूपये आंका जाता है। पौधों से प्राप्त सभी रासायनिक यौगिकों का शोधपरक अधययन,  विश्लेषण, खोज, उनकी उपयोगिता आदि का अध्ययन किया जाने वाला कार्य भी सागर मंथन की भांति पादप मंथन हीं कहा जाना उचित और यथार्थ नाम होगा। 

         पौधा मंथन के कार्य में अनेकों विज्ञानी सृष्टि के आरंभ से ही कार्य रत हैं। पौधा मंथन में कईं प्रकार के विष मिले हैं, इसकी चर्चा वनस्पति विज्ञान के ग्रंथों में है। परंतु पौधों में अमृत पाने की बात नहीं सुनी जाती है। मेरे द्वारा रचित इलेक्ट्रो होम्यो पैथी की पुस्तकों को छोड़कर अन्य किसी पुस्तक में या ग्रंथों में पौधों में अमृत पाए जाने की चर्चा नही है। पौधों में अमृत होने अथवा नहीं होने पर विचार करने में और उसके विद्यमान होने पर, खोजने के मार्ग में एक बहुत बड़ी बाधा है। वह बाधा है, अब तक आविष्कृत सभी चिकित्सा ( इलेक्ट्रो होम्यो पैथी को छोड़कर) पद्धतियों द्वारा रोगोपचार के लिए पौधों में उपस्थित विषों को ही औषधियों का आधार मान लेना। 

इलेक्ट्रो होम्यो पैथी को छोड़कर अन्य सभी चिकित्सा पद्धतियों की साहित्यों में कहा गया है कि 

(क) - विषम् विषस्य औषधि- Like cures like.  Every poison has a healing blasm, it is physician duty to separate that. आदि आदि।
 
(ख) -पादपों में उपलब्ध रासायनिक पदार्थों का शरीर पर होने वाली प्रतिक्रियाओं ( जो हानि के द्योतक हैं, और हानि पंहुचाते हैं और हानि पहुंचाना विष  का स्वभाव है) के आधार पर पौधों का वर्गीकरण किया जाना,  जैसे- 
1. एडिबुल, 
2. एडिबुल कम मेडिसिनल, 
3. मेडिसिनल कम प्वायजन, 
4. प्वायजन।
 
(ग) - पौधों के केवल औषधीय प्रभाव रखने वाले विष को उपयोग करने के लिए,  और उसके अन्य विष, जिनका औषधीय प्रभाव नहीं है, का उपयोग नहीं करने के लिए पहले संपूर्ण पौधा का क्वाथ अथवा चूर्ण के स्थान पर पौधों के कुछ भाग (जड़, पता, तना, फूल, फल, बीज, मूल की छाल आदि) से तैयार क्वाथ अथवा चूर्ण का उपयोग किया गया। बाद में ज्ञात विष को अलग कर के उपयोग किया गया। अथवा उसके परिवर्तित स्वरूप की प्रतिकृति अथवा कृत्रिम स्वरूप के उपयोग करने का चलन आरंभ हुआ। 

(घ) -प्रत्येक औषधि के औषधीय प्रभावों के साथ-साथ उससे होने वाली हानियों की और औषधि उपयोग के लिए पालन की जाने वाली सावधानियों को भी प्रकाशित किया जाना नियम बनाया गया। 

         इलेक्ट्रो होम्यो पैथी अकेली चिकित्सा पद्धति है,  जो स्पष्ट करती है कि पौधों में विष के साथ-साथ अमृत भी है। अमृत का काम है रोग को और संभावित सन्निकट मृत्यु को दूर कर के स्वास्थ्य और जीवन देना।  विष का काम है, शरीर को हानि पहुंचाना, रोग को उत्पन्न करना और जीव को मृत्यु के निकट ले जाना। जनसाधारण के लिए औषधि वही है, जो शरीर को बिना हानि पहुंचाए उनके रोग को cure कर दे। इस परिस्थिति में विष अथवा विष आधारित पदार्थ औषधि कैसे हो सकती है? 

        आधुनिक विज्ञान सजीव या निर्जीव उन सभी पदार्थों को पैथोजन कहता है, जो रोग पैदा करता है। मानसिक कारणों से भी रोग होता है, इसलिए वह भी पैथोजन है। वास्तव में पैथोजन शरीर में (कोशिकाओं, ऊतकों, अंगों) को हानि पहुंचाते है, जिस के फलस्वरूप रोग होता है। चूंकि विष अथवा विष आधारित औषधियाँ अंततः शरीर को हानि पहुंचाते है, इसलिए वे भी पैथोजन है और पोटेंशिअल पैथोजन हैं। किसी ने सच कहा है-"रोग शुरू ही तब होता है, जब से व्यक्ति दवा खाना आरंभ करता है।

        "उच्च रक्तचाप जो शायद पूर्व में सेवन की गई दवा का परिणाम हो, उसे नियंत्रण में रखने के लिए (क्योंकि आधुनिक चिकित्सा पद्धति में आरोग्य मूलक औषधि नहीं है) व्यक्ति खाता है। उस चिकित्सा का अंत होता है, स्ट्रोक के रूप में। वह स्ट्रोक  हृदय का हो, चाहे किडनी का अथवा ब्रेन का। उन दवाओं से और अपेक्षा भी क्या किया जा सकता है, जो स्वयं पैथोजन है? विष आधारित दवाओं  से अस्थायी लाभ भले ही हो जाए, वे रोग को cure नहीं कर सकती है और न इसके बारे में किसी शास्त्र में लिखित में ऐसा दावा ही किया गया है। 

         इस स्थिति में संदेह या भ्रम नहीं रह जाता है कि रोग  cure  करने के लिए अमृत की कल्पना मैटर के रूप में  गईं है। अब प्रश्न उठना स्वभाविक है कि पौधों का अथवा किसी अन्य जीव का वह कौन सा पदार्थ है जिसका संचार पादपों / सजीवों में होता रहता है? और जिनके कारण सजीवों/ पौधों में जीवन की गति विधियाँ हैं।? और प्रतिकूल वातावरण में भी सजीवों/पौधों को सुरक्षा प्रदान करता है। ऐसे पदार्थों की प्रकृति क्या है?  आज का विज्ञान इन प्रश्नों का उत्तर दे चुका है। एंजाइम वे पदार्थ है,  जिन्हें जीव की कोशिकाएं अपने लिए स्वयं बनातीं है। जीवों की सारी गति विधियों के लिए उत्तरदायी एंजाइम है और वे ही एंजाइम पौधों को हानि पहुंचाने वाले तत्वों से बचाती हैं या हानि हो जाने पर उसे ठीक भी करते हैं। एंजाइम के कम बनने पर रोग और न बनने पर मृत्यु निश्चित है। क्या यही एंजाइम कल तक की काल्पनिक अमृत नहीं है? 

         अमृत के बारे में जो कुछ भी मालूम है, उसका आधार दंत कथाएँ हैं,  जिसे प्रायः लोग न गंभीरता पूर्वक पढ़ते हैं और ना ही चिन्तन करते हैं। सच तो यह है कि जहाँ जीवन है, वहाँ ही अमृत है। जीवित वस्तु अथवा सजीव की विशेषताओं से सजीव और निर्जीव के अंतरों के वर्णन से ग्रंथ के ग्रंथ भरे पड़े हैं,। सरल और जनसाधारण की भाषा में यदि कहा जाए कि जीव वह है, जिस की कोशिकाओं द्वारा,  कोशिकाओं में, कोशिकाओ के लिए अमृत का संचार होता रहता है। और नीर्जीव वह है, जहाँ ऐसा नही होता है। जीवन के सारे चिन्हों को अपने में समेटे हुए हरे-भरे लहलहाते पौधों में अमृत का संचार होता रहता है। भले ही इस की पहचान और इसका ज्ञान अभी तक न किया जा सका हो,  लेकिन स्वस्थ जीवित पौधों में अमृत अवश्य है। जिन लोगों ने संपूर्ण मेडिसिनल प्लांट का क्वाथ अथवा चूर्ण से दी गई चिकित्सा में, और पौधों में उपस्थित औषधीय प्रभाव रखने वाले विष से दी गई चिकित्सा में अंतर को विवेक पूर्ण अवलोकन किया है,  वे लोग यही कहेंगे कि पौधों में विष भी है और अमृत भी है। इस वाक्य को इपरसी (EHPRCI) के वरीय वैज्ञानिक स्व. डा. रमाशंकर बाबू ने सबसे पहले कहा था। 

         अब निश्चय पूर्वक कहा जा सकता है कि रोग को Cure करने के लिए अमृत चाहिए। पौधों की कोशिकाओं में विष के साथ-साथ अमृत भी है। अब समस्या रह जाती है, पौधों से अमृत को अलग कर के रोगोपचार के लिए उपयोग करने की। इसके लिए एक सरल किन्तु बुद्धिमता पूर्ण विधि या 
तरीका इटली निवासी  कौंट सीजर मैटी ने प्रस्तुत करके चिकित्सा में मौलिक क्रांतिकारी और बांछनीय परिवर्तन की घोषणा की।  मैटी के उस विधि या तरीका का ही नाम इलेक्ट्रो होम्यो पैथी है। पैथी की मानक औषधि एस. पी. सूत्र को अपना कर ही प्राप्त की जा सकती है, जिस का पुनर्स्थापना वैज्ञानिक डा. एस.  पी. सिंह ने की है। इस लेख का समापन तीन कड़ियों में हुआ है। दूसरी कड़ी " पौधा विष भी आमृत भी " होगी। इंतज़ार करें।

प्रस्तुति : डॉ सुदामा प्रसाद सिंह

वरिष्ठ इलेक्ट्रो होम्यो पैथ ऑफ इंडिया एवं फाउंडर मेम्बर ऑफ इहपरसी
एन. वाइ. -डी./135, न्यू यार पुर, जनता रोड नंबर - 3. (देवी स्थान)
पटना


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