डेंगू (अज्ञानता का भय )और उसका उपचार
डेंगू ज्वर से जितना लोग परेशान नहीं होते हैं उससे ज्यादा उसके भय से परेशान होते हैं। हालांकि कभी-कभी भय रोगी लिए वरदान साबित हो जाता है। इसलिए रोगी को चाहिए हिम्मत से काम ले और डेंगू के विषय में पूरी जानकारी रखें । आज हम डेंगू ज्वर के विषय में कुछ महत्वपूर्ण बातों पर प्रकाश डालने का प्रयास कर रहे है :----
(1) डेंगू ज्वर का कारण
हर मच्छर के काटने से डेंगू नहीं होता है। डेंगू फैलाने वाला एक विशेष प्रकार का मच्छर होता है उसकी मादा एडीज़ से यह वायरस फैलता है। यह वायरस हर उम्र के लोगों को प्रभावित कर सकता है। यह मच्छर रुके हुए साफ पानी में अंडे देता है। 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापक्रम इसके लिए सबसे अनुकूल होता है सूर्योदय के एक घंटा बाद और सूर्यास्त के कुछ घंटे पहले तक यह मच्छर बहुत सक्रिय रहते हैं इस मच्छर की मादा एडीज़ जब काटती है तो डेंगू वायरस ब्लड में चला जाता है और बॉडी में सर्कुलेट होने लगता है और धीरे-धीरे अपनी वंश वृद्धि करने लगता है ।(2) इन्क्यूबेशन पीरियड
जब कोई बैक्टीरिया या वायरस शरीर में प्रवेश करता है तो तुरंत कोई प्रभाव नहीं दिखाता है । उसको वंश वृद्धि कर शारिरीक लक्षण आने में कुछ समय लगता है। इसी समय को इनक्यूबेशन पीरियड (Incubation Period) कहते हैं। डेंगू में यह पीरियड 3 से 15 दिन तक होता है। इसका मतलब यह है कि जिस दिन मच्छर काटता है उस दिन कोई लक्षण नहीं दिखाई देता प्रभाव आगे 3 दिन से 15 दिन के अंदर दिखाई देता है।
(3) डेंगू ज्वर के लक्षण
शरीर में जब डेंगू पूरी तरीके से सक्रिय हो जाता है तब शरीर में लक्षण आना शुरू होते हैं। यह लक्षण निम्न प्रकार से होते हैं :-----
अचानक तेज बुखार
इनक्यूबेशन पीरियड समाप्त होते ही पहले हल्का ज्वर आता है धीमे धीमे तेज होता जाता है और यह 103 से 10 4 फारेनहाइट तक जा सकता है कभी-कभी इससे भी आगे बढ़ जाता है।
सिर दर्द
ज्वर के साथ सिर दर्द होता है जो कभी फोररेंटल पेन होता है कभी टॉप में पेन होता है। ऐसी स्थिति में पेशेंट को साधारण बुखार व सिर दर्द का भ्रम होता है और साधारण घरेलू दवाइयां खा कर ठीक करने का प्रयास करता है ।
आंखों के पीछे दर्द
आंखों के पिछले भाग में दर्द महसूस होता है और रोगी चुपचाप आंख बंद करके लेटना पसंद करता है ।
थकान
सारे शरीर में थकान व शिथिलता महसूस होती है।
जोड़ों में दर्द
हाथ पैरों के जोड़ों में तकलीफ महसूस होती है चलने फिरने और हाथ से काम करने में तकलीफ होती है ।
मांसपेशियों में शिथिलता
मांस पेशियां शिथिल हो जाती है और थकी थकी सी लगती हैं शरीर में चेतन्यता नहीं आती है ।
मिचली होना
कई दिनो तक ऐसी स्थिति बनी रहने पर मिचली महसूस होने लगती है और बार-बार वमन करने का मन करता है ।
उल्टी होना
यदि मिचली का नियंत्रण न हुआ तो वमन शुरू हो जाते हैं जिससे शरीर में डिहाइड्रेशन होने लगता है फल स्वरूप स्थिति गंभीर होने लगती है।
शरीर पर चकत्ते पड़ जाना
यदि उपरोक्त लक्षण पर नियंत्रण नहीं पाया गया तो शरीर में आंतरिक ब्लीडिंग होने लगती है जिसके फलस्वरूप शरीर पर जगह - जगह चकत्ते पड़ने लगते हैं जो लाल या बैंगनी रंग के होते हैं
आंतरिक ब्लीडिंग होना
अंत में शरीर के अंदर ही ब्लीडिंग शुरू हो जाती है और मल- मूत्र मार्ग से , नाक मुंह से ब्लीडिंग होने लगती है । ब्लड कैपिलरीज के सिरे परफोरेट (छिद्रित) हो जाते हैं जिससे ब्लीडिंग होती है और शरीर पर चकत्ते के रूप में दिखाई देती है जिसके कारण शरीर का ब्लड प्रेशर गिर जाता है और स्थिति गंभीर होती चली जाती है।
(4) चिन्ह
त्वचा सिंक हो जाती है आंखें धंस जाती हैं ओठ सूख जाते हैं प्यास अधिक लगती है क्योंकि शरीर में पानी की कमी हो जाती है कैपिलरीज छिद्रयुक्त होने के कारण शरीर पर चकत्ते पड़ जाते हैं जो लाल और बैंगनी रंग के होते हैं ।
(5) निदान
निदान या डायग्नोसिस दो प्रकार से की जा सकती है----
(1) लक्षणों व चिन्हो को देखकर
इसमें बहुत कुछ त्रुटि की संभावना रहती है।
(2) प्रयोग शाला निदान
इसमें Haemoglobin ,TLC , DLC , ESR और Platelet Count , LFT , C.R.P., Elisa test for Dengue कराना चाहिए । इससे शरीर की पूरी स्थिति लगभग पता चल जाती है ।
(6) उपचार
रोगी का सिंम्टोमेटिक उपचार करना चाहिए फीवर की दवा देकर फीवर समाप्त करने का प्रयास करना चाहिए । यदि शरीर में पानी की कमी हो तो उसे दूर करना चाहिए।
औषधि के रूप में F1, F 2 या जिस औषधि से फीवर डाउन हो उसका प्रयोग करना चाहिए साथ में बिजलियो के प्रयोग से फीवर शीध्र उतारा जा सकता है जब फीवर डाउन होगा तो प्लेटलेट्स बढ़ने लगेंगे । चिकित्सकों को चाहिए प्लेटलेट्स बढ़ाने का भी उचित प्रबंध किया जाए और फीवर समाप्त के लिए भी औषधि का प्रयोग किया जाए । ऐसा करने से पेशेंट जल्दी ठीक होता है
(7) प्रबंधन
शरीर में पानी की मात्रा को बैलेंस रखना चाहिए , ब्लड प्रेशर पर नजर बनाए रखना चाहिए। समय-समय पर शरीर का तापक्रम देखते रहना चाहिए बढ़ने पर औषधि का प्रयोग करना चाहिए ।
प्लेटलेट्स की संख्या पर नजर बनाए रखना चाहिए जैसे ही 20000 से नीचे प्लेटलेट्स जाने लगे तुरंत प्लेटलेट्स चढ़ाने की व्यवस्था की जानी चाहिए । यदि ऐसा नहीं किया गया तो गंभीर परिणाम हो सकते हैं। यदि 20000 के नीचे प्लेटलेट्स आने पर ब्लीडिंग जैसे परिणाम नहीं आ रहे हैं कोई विशेष परेशानी नहीं हो रही है तो तुरंत प्लेटलेट्स जांच दोबारा करानी चाहिए । हो सकता है पहली रिपोर्ट गलत आई हो।
फीवर आने के 3 दिन बाद प्लेटलेट की संख्या गिरने लगती है । जब प्लेटलेट्स डेंगू से संक्रमित होती हैं तो यह संक्रमित प्लेटलेट्स भी एक दूसरे को संक्रमित करने लगती है जिसके कारण इनकी संख्या बहुत तेजी से गिरती है । प्लेटलेट्स का जीवनकाल 8 से 12 दिन तक होता है । इसलिए यह जरूरी है की प्लेटलेट्स जितनी खराब हो उतनी पैदा भी होती रहे।
इसके लिए हम ऐसी चीजों का प्रयोग करते हैं जिससे प्लेटलेट्स की संख्या कुछ न कुछ बढ़ती रहे । ऐसे में हम साइट्रिक जूस नारियल पानी कीवी , पपीता और गिलोय की पत्ती का रस बकरी का दूध आदि लेते रहते हैं। जिससे प्लेटलेट्स की संख्या बढ़ती रहती रहे । जिसके कारण प्लेटलेट्स गिरने का प्रभाव शरीर पर कम पड़ता है और शरीर अपेक्षाकृत ज्यादा सफर कर जाता है।
(8) गम्भीर स्थिति
कभी-कभी जाने अनजाने में स्थिति कंट्रोल नहीं हो पाती है ब्लीडिंग होने लगती है जिससे ब्लड प्रेशर गिरने लगता है शरीर में पानी की कमी हो जाती है फलस्वरूप पेशेंट की मृत्यु हो जाती इसलिए इस बीमारी को हल्के में नहीं लेना चाहिए ।
नोट:-----
(1) फीवर ठीक करने और प्लेटलेट बढ़ाने की व्यवस्था एक साथ करनी चाहिए इससे गंभीर स्थिति आने में लंबा समय लग जाता है।
(2) फीवर आने के बाद व्यर्थ में समय गवाना ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है।
(3) प्लेटलेट काउंट पर हमेशा नजर बनाए रखना चाहिए इसकी संख्या को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए ।
(4) स्वस्थ शरीर में प्लेटलेट्स की संख्या डेढ़ लाख से साढे चार लाख तक होती है।
(5) गिरती हुई प्लेटलेट्स की संख्या के आधार पर डेंगू की पुष्टि नहीं करनी चाहिए । क्योंकि प्लेसेट्स कई कारणों से नीचे गिर जाते है जब तक पैथोलॉजिकल टेस्ट में डेंगू पॉजिटिव न आए तब तक डेंगू पेशेंट नहीं माना जा सकता है।
(6) प्लेटलेट चढ़ाने की अनुमति इलेक्ट्रो होम्योपैथिक डॉक्टरों को नहीं है । अत: प्लेटलेट्स चढ़ाने में प्रशिक्षित व अनुमति वाले चिकित्सकों से यह कार्य करवा सकते हैं ।