चिकित्सा कार्य और चिकित्सा फार्मूले
चिकित्सा का कार्य करने के लिए मुख्य रूप से 4 चीजों की आवश्यकता होती है।
(1) गुरु
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चिकित्सा के क्षेत्र में गुरु का सबसे बड़ा महत्व है क्योंकि उस के निर्देशन में जब कार्य होते हैं तो उस सफलता आसानी से मिलती है और अधिक कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता । हमने देखा है कि एम.डी. करने वाले चिकित्सक एक प्रोफ़ेसर के अंडर में होते हैं और चिकित्सा कार्य करते रहते हैं। जब कोई गंभीर बात आती है तो आपस में सलाह मशवरा भी करते हैं। यहाँ चिकित्सा करने की समस्या जिम्मेदारी उस प्रोफेसर की होती है जिसके अंडर में कंसल्टेट डॉक्टर काम करते है ।
(2) शिक्षा
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अनुभव कितना भी हो पर चिकित्सक के लिए शिक्षा की बहुत आवश्यकता होती है। जब तक मेडिकल फंडामेंटल नहीं पता होगा चिकित्सा करना बहुत कठिन होता है। एनाटॉमी फिजियोलॉजी पैथोलॉजी प्रैक्टिस आफ मेडिसिन आदि की जानकारी होना चिकित्सक को बहुत आवश्यक है क्योंकि उसके बिना चिकित्सा करना असंभव है ।
(3) प्रशिक्षा
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एक चिकित्सा को शिक्षा के ज्ञान से ही कुछ हासिल होने वाला नहीं है। उसे व्यावहारिक ज्ञान (प्रक्षिक्षा) भी आवश्यक है शिक्षा के साथ में यदि से प्रशिक्षा प्राप्त हुई है तो उसका काम आसान हो जाता है ।
(4) पुस्तकें
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चिकित्सक के पास गुरु भी हो , शिक्षा भी हो और व्यावहारिक ज्ञान हो लेकिन उसे पुस्तकों की अत्यंत आवश्यकता होती है क्योंकि जो नए नए अनुसंधान होते हैं पुस्तकों से ही प्राप्त होते हैं इसलिए सतत अध्ययन की आवश्यकता होती है ।
इसके अतिरिक्त आज बहुत से साधन है जिनके द्वारा ज्ञानार्जन किया जा सकता है लेकिन आज इलेक्ट्रो होम्योपैथिक चिकित्सको में इन सब चीजों का आभाव लगता है ।
आज चिकित्सक यह चाहता है कि हमें कहीं से कोई फार्मूला मिल जाए और उसी से हम ट्रीटमेंट कर दें रोगी ठीक हो जाए। हमें कुछ ना करना पड़े इसीलिए वे फार्मूले पूछते रहते है ।
लेकिन शायद उन्हें नहीं पता कि कोई भी फार्मूला सभी लोगों को कारगर नहीं होता जब कोई बताया हुआ फार्मूला किसी पर सफल नहीं होता तो वह बताने वाले को दोष देते हैं कि उसने गलत बताया या फिर औषधि बनाने वाले को दोष देते हैं की औषधि सही नहीं थी ।
होम्योपैथिक जगत में यदि फार्मूला बेचने की यदि एक दुकान खोल ली जाए तो हमारी समझ से इससे अच्छा धंधा कोई नहीं है । रोज 100 200 फार्मूले तो आसानी से दिख जाएंगे।
फार्मूले पूछने वाले लोग इस तरीके से फार्मूले पूछते हैं जैसे सब्जी का दाम पूछ रहे हो । पेशेंट के विषय में ज्यादातर लोग कुछ भी नहीं बताते और कह देते हैं बुखार का फार्मूला बताओ, खांसी का फार्मूला बताओ ,दस्त का फार्मूला बताओ आदि । न आयु बताएंगे , न डायग्नोसिस बताएंगे, बताएंगे , न पूर्व चिकित्सा का विवरण बताएंगे । फार्मूला पूछने का कमाल का नियम बना रखा है।
नई प्रैक्टिस में अक्सर ऐसी समस्या आती है कि हम सफल नहीं हो पाते लेकिन हम सफल होना चाहते हैं इसलिए हम एक दूसरे से फार्मूले पूछते हैं लेकिन फॉर्मूला तभी वह सही ढंग से बता पाएगा जब उसे डायग्नोसिस बताओगे आज बताओगे वर्ना फॉर्मूला सटीक नहीं बैठेगा ।
जैसे किसी व्यक्ति को खांसी आती हो तो खांसी के कई कारण हो सकते है फेफड़े में खराबी हो सकती है, गले में खराबी हो सकती है, इसके अतिरिक्त और भी खराब ना हो सकती है जब तक मुख्य कारण की औषध नहीं पहुंचेगी खांसी ठीक नहीं होगी ।
इसी तरह पेट दर्द की तमाम कारण हो सकते हैं जब तक मुख्य रुप की औसत नहीं पहुंचेगी पेट ठीक नहीं हो सकता इसी तरह सर दर्द का भी हाल है लेकिन चिकित्सा स्वास्थ्य का ध्यान न होने के कारण चिकित्सक बात को समझता ही नहीं और फार्मूले पूछो लगता है ऐसी स्थिति बताने वाले के सामने असमंजस की समस्या खड़ी हो जाती है लेकिन पूछने वाला यह समझता है कि बताना नहीं चाहते है ।