फार्मोकॉपिया (Pharmacopeia) वह मानक ग्रंथ है। जिसमें औषधियों के स्रोत , औषधियों के निर्माण करने का निर्देश ,औषधियों के भौतिक एवं रासायनिक गुण आदि समस्त फार्मेसी सम्बंधी ज्ञान होता है।
फार्माकोपिया मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है :-----
(1) विश्वसनीय फार्मोकोपिया
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इस फार्माकोपिया के अंतर्गत विश्व के वे प्राचीन औषधि ग्रंथ आते हैं। जिन पर लोगों का अटूट विश्वास था । प्राचीन काल में औषधि निर्माण इन्हीं ग्रंथों के निर्देशानुसार आम जनता से राजवैद्य तक उपचार करते थे। ऐसे ग्रंथों में भारत का आयुर्वेद विश्व का सबसे प्राचीन ग्रंथ है। उसे विश्व का प्राचीन विश्वसनीय फार्माकोपिया कहा जा सकता है ।
आपसे लगभग 60 साल पहले आज कल की तरह गांव में डॉक्टर उपलब्ध नहीं थे। उस समय जब कोई रोगी होता था। तो उसका उपचार सुने सुनाएं आधार पर जड़ी बूटियों के द्वारा लोग स्वयं करते थे या कुछ पढ़े लिखे लोग अपने पास एक पुस्तक रखते थे । जिसे "वैदक" कहते थे । उस में लिखे हुए नुस्खो के आधार पर ही लोग इलाज करते थे । इनमें कभी कुकरौंधा का रस , कभी बारह सिंघे का सींंघ , कभी मोरपंखी भस्म लेना , कभी भ्रंग राज की पत्ती लगा लेना , कभी नीम के अंगो का प्रयोग करना, कभी मेहंदी लगा लेना, कभी आम का गोद लगा लेना, कभी यूरिन लगा लेना ,कभी मिट्टी लगा लेना , कभी पत्तियों का रस लगाना या तेल में पकाकर लगा लेना । इसी तरह के उपचार होते थे। जिनका कोई प्रमाण नहीं होता था केवल सुने सुनाए आधार पर लोग स्वयं उपचार कर लेते थे। उस समय रोगियों की मृत्यु दर काफी अधिक थी लेकिन बहुत सारे रोगी स्वस्थ भी हो जाते थे।
इसके अलावा झाड़-फूंक में भी लोग विश्वास रखते थे । जिनमें भी कुछ लोग स्वस्थ भी हो जाते थे। यह उस समय की बात है । जब देश में अशिक्षा चरम सीमा पर थी। एक दिन की मजदूरी 50 या 48 पैसे हुआ करती थी।
सरल उपचार पाने के लिए लोगों ने एक कहावत बना रखी थी:-
"जेहिके होय अजार वह गोहरावै बीच बजार"
यदि किसी को बीमारी है तो बाजार में सब को बताएं, कोई न कोई उसकी दवा बता ही देगा और वह स्वास्थ्य लाभ पा जाएगा।
(2)प्रमाणित फार्माकोपिया
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धीमे धीमे जागरूकता बढ़ी । सरकार ने स्वास्थ्य की ओर ध्यान दिया। औषधियो के क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम उठाने शुरू किए । तो सबसे पहले उन्होंने प्राचीन विश्वसनीय फार्माकोपिया मे जो औषधियां अधिक प्रभावशाली थी और विज्ञान की कसौटी पर खरी उतरी उन्हें स्वास्थ्य लाभ के लिए प्रमाणित फार्माकोपिया में शामिल कर लिया गया। अत: प्रमाणित फार्माकोपिया वैज्ञानिक तौर तरीके से जांच परखी औषधियों का संग्रह होता है।
प्रमाणित फार्मोकॉपिया की सबसे पहली शुरुआत 1542 ई0 में वैलेरियन सरडस (Valerian Cerdus) नामक चिकित्सक ने की थी । इसी कड़ी में 1618 ई0 में कुछ काम हुआ । सन 18 25 ई0 में डॉक्टर डी. सी. कास्पेरी ने पहला होम्योपैथिक फार्माकोपिया डॉक्टर हनीमैन की जीवन काल में लिपिजिग (जर्मनी ) नामक स्थान पर लिखा । इसका नाम Homoeopathisch Dispansatorium Fur Acrzte and Apotheker था ।
इसके बाद 1870 ई0 में ब्रिटिश होम्योपैथिक सोसाइटी ऑफ लंदन द्वारा ब्रिटिश होम्योपैथिक फार्माकोपिया प्रकाशित किया गया ।
सन 1897 ई0 में अमेरिकन इंस्टिट्यूट ऑफ होम्योपैथी द्वारा अमेरिकन होम्योपैथिक फार्मोकॉपिया प्रकाशित किया गया ।
सन 1810 ई0 में जर्मन के लिपिजिन नगर में डॉ विलमार श्वाबे ने फार्माकोपिया होम्योपैथीका पालीगाटा नामक दूसरा फार्माकोपिया लिखा था ।
इस समय प्रत्येक देश ने अपना फार्मोकॉपिया बना लिया है।
(A)भारत का फार्माकोपिया
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(1) इंडियन फार्माकोपिया ( l . P . )
(2) इंडियन होम्योपैथिक फार्मोकोपिया (H.P.I.)
(B) जर्मन का फार्मोकोपिया
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(1) जर्मन होम्योपैथिक फार्मोकोपिया
(C) इंग्लैंड का फार्माकोपिया
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(1) ब्रिटिश फार्माकोपोयिया ( B.P. )
(2) ब्रिटिश होम्योपैथिक फार्मोकोपिया
(B.H.P.)
(D) यूनाइटेड स्टेट आफ अमेरिका का फार्माकोपिया
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(1) यूनाइटेड स्टेट्स फार्मोकोपिया (USP)
(2) होम्योपैथिक फार्मोकॉपिया आफ यूनाइटेड स्टेट्स (H.P.U.S )
इसके अतिरिक्त और भी फार्माकोपिया है हमने केवल मुख्य मुख्य देशों के फार्माकोपिया की सूची दी है । प्रत्येक देश का अपना फार्माकोपिया होता है। विदेशों में जिस समय फार्माकोपिया नहीं था उस समय आयुर्वेद के निर्देशानुसार औषधियां तैयार की जाती थी । भारत में जिस समय फार्मोकोपिया नहीं था उस समय अमेरिकन फार्माकोपिया के अनुसार औषधियां तैयार की जाती थी ।
इलेक्ट्रो होम्यो पैथी का फार्माकोपिया अभी तक स्वतंत्र रूप से विश्व में कहीं भी नहीं लिखा गया है लेकिन इस पैथी की ड्रग्स दूसरे फार्माकोपिया में उल्लेखित है।
इनमें इंडियन फार्माकोपिया, इंडियन होम्योपैथिक फार्मोकोपिया, ब्रिटिश होम्योपैथिक फार्माकोपिया, ब्रिटिश फार्माकोपिया, यूनानी फार्माकोपिया, जर्मन फार्माकोपिया , आयुर्वेदिक फार्माकोपोयिया आदि के नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है।