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औषधीय गुणों से भरपूर 5 मसाले जो करें स्वास्थ्य की रक्षा और बढ़ाये भोजन का स्वाद |
स्वाद, सुगंध एवं सेहत के लिए लाभकारी है इलाइची
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मसालों की रानी इलाइची (कार्डेमम) दो प्रकार की होती है- हरी या छोटी इलायची (Elettaria cardamomum) तथा बड़ी इलायची (Amomum subulatum)। बड़ी इलायची व्यंजनों को स्वादिष्ट एवं सुवासित बनाने के लिए एक मसाले के रूप में प्रयुक्त होती है, वहीं हरी इलायची खुशबू या माउथ फ्रेशनर का काम करती है। आयुर्वेदिक में इलाचयी शीतल, तीक्ष्ण, मुख को शुद्ध करनेवाली, पित्तजनक और वात, श्वांस, खांसी, बवासीर, क्षय, सुजाक, पथरी, खुजली, मूत्र रोग, अपच तथा हृदयरोग में लाभदायक माना जाता है। इलायची के बीजों में एक प्रकार का उड़नशील तेल होता है।
आज का महत्वपूर्ण औषधिय पेड़ (आरोही लता): पहचानिये एवं बताइये इसका नाम एवं उपयोग
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उत्तर : यह कालिमिर्च, लोकप्रिय मसाला एवं औषधिय बेल है।
काली मिर्च (ब्लैक पीपर) एक बहुवर्षीय लता है, जो पोल, दिवाल अथवा पेड़ो के सहारे बढ़ती है। अर्ध छाया में इसके पौधे तेजी से विकसित होते है। नारियल व सुपाड़ी के बागानों के अलावा आम, सागौन आदि वृक्षों के साथ काली मिर्च की बेहद कर आकर्षक मुनाफा अर्जित किया जा सकता है। काली मिर्च को मुख्यतः बीज से लगाया जाता है। बेल की कटिंग से भी इसके पौधे तैयार किये जा सकते है।
भारत ही नहीं पूरी दुनिया में सबसे लोकप्रिय मसालों में से एक है. यह केवल भोजन में जायका बढ़ाने के ही काम नहीं आती,बल्कि सेहत के लिये भी अत्यन्त लाभदायक है। सर्दियों में काली मिर्च का सेवन विशेषरूप से फायदेमंद होता है. इसके सेवन से खांसी, जुकाम, गले में खराश जैसी समस्याओं से निज़ात मिल सकती है। इसमें एंटीबैक्टीरियल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं, जो न दर्द से छुटकारा दिलाते हैं, बल्कि इंफेक्शन से भी सुरक्षित रखने में भी सहायक होते हैं. भारत में ही नही
यूरोप में खाना पकाने में सबसे आम मसालों में सूखी और पिसी हुई काली मिर्च का बहुत इस्तेमाल किया जाता है।काली मिर्च में पेपराइन नामक रसायन होता है जिसकी वजह से इसका स्वाद तीखा होता है। पेपराइन को जठर तंत्र ही लिए फायदेमंद माना जाता है। पाचन में सुधार के अलावा काली मिर्च में शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट भी मौजूद होते है, जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक होते है।
औषधिय गुणों से युक्त मसालों का सरताज है चक्रफूल
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चक्र फूल को चकरी फूल, स्टार ऐनिस (इलिसियम वेरम) नामक इलीसिएसी कुल के पेड़ का फल है। चक्र फूल का पेड़ मध्यम आकार का सदाबहार पेड़ है, जिस पर सफेद गुलाबी अथवा लाल-हरे पुष्प आते है। इसके फल 0.25 से 0.5 सेमी आकार के चमकीले हरे-सफेद रंग के होते है, जो सूखने पर सख्त, खुरदुरे एवं लालामी लिए धूसर रंग के हो जाते है।
इसके फल पर 5-8 पंखुड़ी सितारेनुमा आकार में व्यवस्थित होती है। प्रत्येक पंखुड़ी में एक-एक बीज पाए जाते है। इसके बीज हल्के धूसर रंग के चिकने और चमकदार होते है, जिनमें तेल की मात्रा अधिक होती है। इसके पेड़ चीन एवं भारत के अरुणाचल प्रदेश में पाए जाते है। चक्र फूल का स्वाद कुछ-कुछ मोटी सौंफजैसा परन्तु थोडा कड़वा होता है। लोकप्रिय मसाले के रूप में प्रसिद्ध चक्रफूल में औषधिय गुण विद्यमान होते है। इसमें पाए जाने वाले एंटी माइक्रोबियल गुण बैक्टीरिया के साथ-साथ वायरस, फंगस और परजीवी संक्रमण से बचाव करने में सहायक माने जाते है। इसके अलावा इसमें हैंएंटी-इन्फ्लेमेटरी (सूजन कम करने वाला), कीमोप्रिवेंटिव (कैंसर से बचाव) गुण भी पाए जाते है।
भोजन में इसके इस्तेमाल से गैस और अपच की समस्या से निजात मिल सकती हैं। चक्र फूल का उपयोग मुख्यतः मसाले के रूप में विभिन्न प्रकार के व्यंजनों को स्वादिष्ट बनाने के लिए किया जाता है. इसमें एनेथोल नामक तेज सुगंध वाला आवश्यक तेल पाया जाता है। इसलिए इसका स्तेमाल अरोमाथेरेपी, इत्र, टूथपेस्ट और सौंदर्य प्रसाधन सामग्री तैयार करने में भी किया जाता है। भोजन के बाद इसकी थोड़ी मात्रा चबाने से पाचन क्रिया में सुधार होता है।दक्षिण भारत में चकरी फूल का उपयोग रसम और सांबर बनाने के लिए किया जाता है। चक्र फूल का सेवन चाय, सूप के रूप में अथवा पुलाव के खास मसाले के रूप में भी किया जा सकता है। चक्र फूल के तेल का उपयोग अरोमोथेरेपी के लिए किया जा सकता है।
यह बहुत महत्वपूर्ण पेड़ है। यदि पहचानते है, तो नाम बताइये
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लौंग को अंग्रेजी में क्लोव कहते है जो मटेंसी कुल के 'यूजीनिया कैरियोफ़ाइलेटा' नामक मध्यम कद वाले सदाबहार वृक्ष की सूखी हुई पुष्प कलिका है। पुष्प खिलने के पूर्व कलियों को चुनकर तोड़ कर सुखा लिया जाता है। हर घर में मसाले एवं मुख स्वाद के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली लौंग का उपयोग औषधि के रूप में भी होता है।
स्वाद में कड़वा होने के कारण इसका उपयोग कीटाणुनाशक और दर्द के दवाओं में होता है। इसकी खेती बेहद लाभकारी होती है। एक बार इसके पेड़ लगाने पर कई वर्ष तक उत्पादन मिलता रहता है। यह् गर्म नम जलवायू एवं अर्ध छाया पसंद पेड़ है।
मुलहठी को मुलेठी, संस्कृत में यष्टिमधु अंग्रेजी में लिकोरिस एवं वनस्पति शास्त्र में ग्ली्सीर्रहीजा ग्लाब्र कहते है जो बहुवर्षीय एक झाड़ीनुमा 1.5 से 2 मीटर ऊंचा पौधा है. इसकी पत्तियां संयुक्त व अंडाकार होती है. इसमें गुलाबी अथवा जामुनी रंग के पुष्प असीमाक्ष पर लगते है. फल छोटे, लंबे एवं चपटे होते है जिनमें 2-5 बीज पाए जाते है.इसकी जड़े लंबी-गोल व झुर्रीदार होती है. असली मुलहठी अंदर से पीली, रेशेदार व हल्की गंधयुक्त होती है. इसकी जड़ एवं भूमिगत तना मधुर होता है जिनका औषधिय के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. इसमें उपस्थित ग्लिसराइज़िन (ग्लिसराइज़िक एसिड) के कारण इसका स्वाद मीठा होता है । इसकी जड़ों एवं भूमिगत तनों को सुखाकर औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है.
मुलेठी में एंटीबायोटिक, एंटीबैक्टीरियल, एंटी कार्सिनोजेन, एंटी-ऑक्सीडेंट और हाइपरग्लाइसेमिक गुण पाए जाते है. आयुर्वेद में मुलेठी खांसी, गले की खराश, श्वांस नली की सूजन, उदरशूल, मधुमेह, लिवर रोग, सूजन, क्षयरोग तथा मिर्गी रोग के उपचार में किया जाता है. कड़वी दवाओं का कड़वापन दूर करने के लिए किया जाता है. मुलेठी की चाय का सेवन करने से स्वास्थ्य संबंधी अनेको समस्याओं से छुटकारा मिलता है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढती है.
मुलेठी का उपयोग आजकल चटनी तथा शरबत बनाने में भी किया जाता है. स्पेन व इटली में तो स्कूली बच्चे टॉफी –चोकलेट की जगह मुलेठी की ताजा जड़ चूसना अधिक पसंद करते है.