इलेक्ट्रो होम्योपैथी की मूल औषधि क्या है स्पेजिरिक या डायलूशन | What is the basic medicine of electro homeopathy?

इलेक्ट्रो होम्योपैथी की मूल औषधि क्या है स्पेजिरिक या डायलूशन
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आज की इस पोस्ट के द्वारा हम एक महत्वपूर्ण बिंदु पर चर्चा करेंगे जिसमे हम समझेंगे कि इलेक्ट्रो होम्योपैथी पैथी की मूल औषधि क्या है स्पेजिरिक या डायलूशन

इलेक्ट्रो होम्योपैथी की मूल औषधि क्या है स्पेजिरिक या डायलूशन
इलेक्ट्रो होम्योपैथी की मूल औषधि क्या है स्पेजिरिक या डायलूशन

मूल औषधि किसे कहते हैं?

अलग-अलग औषधियो की मूल औषधि अलग-अलग होती है जिसे अंग्रेजी में ड्रग (Drug)  कहते हैं। इसके बाद हीं होम्योपैथी और इलेक्ट्रो होम्योपैथी में  डाइल्यूशन तैयार होते हैं जैसे:----
(१) होम्योपैथी की मूल औषधि मदर टिंचर कहलाती है जिसे Q नंबर से प्रदर्शित किया जाता है।

(२) इलेक्ट्रो होम्योपैथी की मूल औषधि मदर टिंचर से एक स्टेप आगे स्पेजिरिक कहलाती है।

अब सवाल यह उठता है कि स्पैजिरिक बनती कैसे हैं?

स्पैजिरिक तीन तरीके से तैयार होती है :----
(१) पौधों के रंगीन अर्क से

(२) 100 डिग्री सेंटीग्रेड पर डिस्टलेशन से

(३) 38 डिग्री सेंटीग्रेड पर रिडिस्टलेशन से

पौधों के रंगीन अर्क से स्पैजिरिक  तैयार करना

वर्तमान समय में ज्यादातर स्पैजिरिक इसी प्रकार से तैयार की जाती है इस तरह की स्पैजिरिक से तैयार औषधियां कभी-कभी एग्रावेशन कर जाती है। इस विधि के अंतर्गत वनस्पतियों का अर्क डिस्टिल वाटर में निकाल लेते हैं या बने बनाए अर्क (मदर टीचर) मार्केट से खरीद लेते हैं। उसके बाद उसे निश्चित अनुपात में मिलाकर के 1 : 9 या 1:47 या 1:49 में तीन बार डायलूट करते हैं ।
प्रथम अनुपात के अनुसार  1 ml एक्सट्रैक्ट के मिश्रण को , 999 ml व्हीकल में मिला देते हैं और फिर इसे स्पैजिरिक कहते हैं। इसी तरह 1:47 और 1:49 का भी अनुपात निकाल कर स्पैजिरिक बनाते हैं।

पौधे के रंगीन अर्क से तैयार स्पैजिरिक की विशेषताए

पौधे के रंगीन अर्क से तैयार स्पैजिरिक की निम्न विशेषताए होती हैं
(१) इसमें कलर पूर्णता मौजूद रहता है लेकिन सूक्ष्मता के कारण दिखता नहीं है।

(२) इसमें  पौधे के एल्केलाइड्स  व अन्य लाभकारी व हानिकारक तत्व मौजूद रहते हैं लेकिन सूक्ष्मता के कारण दिखते नहीं है।

(३) मदर टीचर में एल्केलाइड्स होते हैं इसलिए यह स्पैजिरिक एल्केलाइड्स युक्त होती है। यह स्वास्थ्य के लिए लाभकारी और हानिकारक दोनों होते हैं।

100 डिग्री सेंटीग्रेड के डिस्टिलेशन से

इस विधि के अंतर्गत  पहले डिस्टिल वाटर में पौधे का अर्क निकाल लेते हैं जो रंगीन एल्केलाइड्स  युक्त होता है। इसके बाद उसे 100 डिग्री सेंटीग्रेड पर डिस्टिलेशन  करते हैं डिस्टिलेशन से जो अर्क प्राप्त होता है उसे सिंगल प्लांट स्पैजिरिक (S.P.S.) कहते हैं जब कई S.P.S. को मिला देते हैं तो C.C.S. Concentrate Complex Spagiric बनता है।

100 डिग्री सेंटीग्रेट के डिस्टिलेशन से तैयार स्पैजिरिक की विशेषताए

100 डिग्री सेंटीग्रेट के डिस्टिलेशन से तैयार स्पैजिरिक की विशेषताए निम्नलिखित हैं

(१) यह पूर्णता रंगीन  होती है।

(२) एल्केलाइड्स और जहरीले तत्वो से कुछ मुक्त होती है।

(३) एग्रावेशन नहीं करती है।

(४) इसमें टेस्ट मौजूद रहता है

(५) इस स्पैजिरिक का पीएच मान लगभग नॉर्मल रहता है।

(६) पहले प्रकार की स्पैजिरिक से यह  कॉस्टली पड़ती है । इसे जिम्पिल मेथड भी कहते हैं होम्योपैथी में भी यह मेथड  है।

38 डिग्री सेंटीग्रेड के रिडिस्टिलेशन से

इस विधि से स्पैजिरिक काफी कास्टली पड़ती है इसमें पहले डिस्टिल वाटर में प्लांट का एक्सट्रैक्ट निकाल लिया जाता है उसके बाद उसका  38 से 40 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच  रिडिस्टिलेशन या कोहोबेशन करते है। 

38 डिग्री सेंटीग्रेड के रिडिस्टिलेशन से तैयार स्पैजिरिक की विशेषताए

38 डिग्री सेंटीग्रेड के रिडिस्टिलेशन से तैयार स्पैजिरिक की विशेषताए निम्नलिखित हैं

(१) स्पैजिरिक रंगहीन होती है

(२) स्पैजिरिक हल्की सुगंधित होती है

(३) स्पैजिरिक एल्केलाइड्स फ्री होती है

(४) यह स्पेसिफिक अपेक्षाकृत ज्यादा लाभकारी होती है।

(५) इस  स्पैजिरिक से तैयार औषधीयां एग्रीवेट नहीं करती है।

(६) इस स्पैजिरिक का पीएच मान लगभग नॉर्मल रहता है

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