बैंगन का फल युक्त पौधा है. दक्षिण भारत की प्रसिद्ध सब्जी, सेहत के लिए रामवाण तथा अधिक उपज देने वाले बैंगन एवं टमाटर की किस्मों के विकास में अहम् किरदार .
औषधीय गुणों से भरपूर जंगली बैंगन
जंगली बैंगन को टर्की बेरी तथा वनस्पति शास्त्र में सोलेनम टोरवम कहते है, जो आलू (सोलेनेसी) कुल का सदाबहार झाड़ीनुमा (1.2 से 1.7 मीटर ऊंचा) पेड़ है. इसका तना एवं शाखाएं कंटीली होती है. इसकी पत्तियां 9-12 सेमी लंबी एवं 5-10 सेमी चौड़ी, रोमिल तथा मखमली होती है, जिनकी मध्य शिरा पर कांटे हो सकते है. पुष्प सफेद-पीले गुच्छो में लगते है. फल छोटे, गोल, हरे तथा पकने पर पीले हो जाते है.
घूरे के भी दिन फिरते है-यह कहावत जंगली बैगन के लिए बिलकुल फिट बैठती है. जंगली बैगन की आजकल खेती की जाने लगी है. एक तरफ इसके पौधों पर उन्नत किस्म के भटा, टमाटर एवं मिर्च के पौधों की ग्राफ्टिंग कर अधिक उत्पादन देने वाले पौधे तैयार किये जा रहे है, जिनकी खेती कर किसान बेहतर आमदनी अर्जित कर रहे है. जंगली भाटा पर विकसित पौषे कीट-रोग प्रकोप से मुक्त होने के साथ-साथ लंबे समय तक बेहतर उत्पादन देते है. बैंगन अथवा टमाटर के एक पेड़ से 10-15 किलों से भी अधिक फल उत्पादन लिया जा सकता है. यही कृषि विज्ञान का कमाल है.
उन्नत किस्म के बैंगन एवं टमाटर देने के अलावा जंगली भाटा के फल पौष्टिकता एवं सेहत के लिहाज से सर्वोत्तम माने जाते है. इसके 100 ग्राम फल में 15.26 ग्राम प्रोटीन, 11.57 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 5.07 ग्राम फाइबर, 4.54 ग्राम वसा के अलवा 1.6 ग्राम पोटैशियम, 601 मिग्रा सोडियम, 406 मिग्रा फॉस्फोरस, 61 मिग्रा मैग्नीशियम, 18.3 मिग्रा आयरन, 2.9 मिग्रा जिंक एवं 2.8 मिग्रा कॉपर पाया गया है.
जंगली बैंगन के सेवन से दर्द, सूजन, मधुमेह, एनीमिया, डायरिया, पेट दर्द, अपच जैसी स्वास्थजनक समस्याओं में लाभ मिलता है. इसमें पाए जाने वाले पोषक तत्व एवं एंटीओक्सिडेंट शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाने और कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को रोकने में सहायक माने जाते है. जंगली बैंगन के ताजे एवं सूखे फलो का उपयोग आयुर्वेद में बुखार, किडनी रोग, उदर रोग, रतौंधी आदि रोगों के उपचार में किया जाता है. दक्षिण भारत में जंगली बैंगन की खेती की जाती है तथा इसके फलों से विभिन्न प्रकार के व्यंजन तैयार कर खाए जाते है.
पिछले वर्ष मैने लक्ष्मीतरु -बहुमूल्य वृक्ष को अपने कालेज और फार्म पर रोपा है जो तेजी से आकाश छूने बेताब है । श्री श्री रविशशंकर जी ने भारत के सभी राज्यों में लक्ष्मीतरु के वृक्षारोपण एवं व्यवसायिक खेती करने की सिफारिस की है ।
औषधीय गुणों से भरपूर वृक्ष कल्प तरु |
लक्ष्मी तरु, कल्प तरु या सीमारुबा (Simarouba Glauca) एक बहूपयोगी वृक्ष है जिसके सभी भाग किसी न किसी उपयोग में आते हैं।
यह पौधा एक प्राकृतिक औषधि भी है। इसकी छाल मलेरिया व पेचिश के उपचार में कारगर मानी जाती है । अमेरिका में लक्ष्मीतरु की छाल का बुखार, मलेरिया, पेचिस को रोकने व रक्तचाप को रोकने में टॉनिक के रूप प्रयोग किया जाता है। इसकी पत्तियों और कोमल टहनियों को उबाल कर बनाए गए काढ़े से कैंसर, और अल्सर सहित कई प्रकार के असाध्य रोगों का का उपचार किया जाता है।इसके आस-पास साँप, मच्छर प्रायः नहीं आते।
इसकी पत्तियाँ कैंसर, उच्च रक्तचाप, मधुमेह सहित अनेक रोगों में उपयोगी पाई गई हैं। इसके फल से रस और मदिरा बनाई जाती है।
इसके बीज से लाभकारी खाद्य तेल निकाला जाता है। इससे बायोडीजल भी बनाया जा सकता है. तेल निकालने के बाद बची खली को खाद के रुप में उपयोग किया जाता है। यह वृक्ष पर्यावरण को शुद्ध करता है और जमीन की उर्वराशक्ति बढती है.
लक्ष्मी तरु की खेती आर्थिक दृष्टि से फायदेमंद है. इसे भारत के सभी राज्यों में उगाया जा सकता है. इसे जानवर नहीं खाते है. इसकी लकड़ी दीमक प्रतिरोधी है और पेड़ पर कीट रोगों का आक्रमण कम होता है. लक्ष्मी तरु का रोपण करने के बाद 7-8 वर्ष बाद 7-8 टन फल प्राप्त हो सकते है जिनसे 3-4 टन बीज प्राप्त किये जा सकते है. इसके बीजों में लगभग 60 प्रतिशत तेल पाया जाता है. इसका तेल वनस्पति घी बनाने एवं खाध्य तेल के रूप में प्रयोग होने के साथ ही अनेक प्रकार के उत्पाद तैयार करने में होता है.
लेखक- डॉ गजेन्द्र सिंह तोमर
इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय, राज मोहिनी देवी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र,
अंबिकापुरा