नये पौधों पर इलेक्ट्रो होम्योपैथिक अनुसंधान
(१) अकारिकी
इसके अंतर्गत पौधों की पत्तियां और उनके कटान , पेड़ की डाली और उनके निकलने का क्रम पतियों के कच्छीय कलिकिए । तना और तने के प्रकार जड़े और उनके प्रकार इसके अतिरिक्त फूल फल और बीजों का तथा फैमिली आदि का अध्ययन किया जाता है।
(२) रासायनिक संगठन
औषधीय भागों में कौन-कौन से रसायनिक तत्व, एंजाइम ,विटामिन हार्मोन आयन्स ,एल्केलाइइट्स, कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन खनिज लवण गोंद आदि का अध्ययन किया जाता है।
(३) औषधीय गुण
पौधों में कौन-कौन से औषधीय गुण पाए जाते हैं इसका अध्ययन मानव और पशुओं पर किया जाता है।
(४) औषधीय दोष
बहुत सारे पौधे ऐसे होते हैं जिनमें विषैले प्रभाव होते हैं अतः पौधों की स्टडी करते समय उनकी विषैले प्रभावों का भी अध्ययन किया जाना आवश्यक है।
इसके अतिरिक्त पौधे का वानस्पतिक नाम पौधे के लिए उपयुक्त जलवायु भूमि तापक्रम आदि का भी अध्ययन किया जाता है।
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इलेक्ट्रो होम्योपैथी नए पौधों पर अनुसंधान कैसे करें |
इलेक्ट्रो होम्योपैथी में शामिल करने योग्य पौधा पठानी लोध्र
बॉटेनिकल नाम Symplocos recemosa
यह पौधा भारतवर्ष में कुमायूं से लेकर आसाम तक अधिक पाया जाता है। इसके पौधे 12 फिट से 20 फिट तक ऊचे होते हैं। जो क्षेत्रीय भाषाओं में विभिन्न नामों से जाने जाते हैं। यह सदाबहार वृक्ष होते हैं। इसमें फूल और फल आते हैं यह पौधा आयुर्वेद, यूनानी, एलोपैथी, होम्योपैथी मैं प्रयोग किया जाता है।
रासायनिक संगठन
इसमें 33% एल्केलायड पाया जाता है इसके अतिरिक्त रेसिंग, एंजाइम्स, विटामिन, हार्मोन खनिज आदि अनेक तत्व पाए जाते हैं।
औषधीय गुण
इसके रस में कषाय गुण होता है तासीर ठंडी होती है इसको अधिकतर वाह्य प्रयोग किया जाता है। अन्य गुणों में यह रक्त का थक्का बनाता है श्वेत प्रदर ,व अन्य स्त्री। रोगों में इसका प्रयोग किया जाता है निम्न पोटेंसी में यह अधिक लाभकारी साबित होता है। पोटेंसी में पाचन क्रिया, नेत्र रोग, जख्म ,स्वसन रोग , डायबिटीज आदि अनेक रोगो में लाभकारी है।
औषधीय भाग
औषधि के रूप में इसकी छाल का प्रयोग किया जाता है लेकिन बाजारों में आजकल मिलावट बहुतायत की जा रही है जिसमें इसकी छाल के स्थान पर अन्य छाल का प्रयोग कर दिया जाता है।