सिफलिस क्या है? कैसे होता हैं
सिफलिस प्रजनन अंग से संबंधित रोग है। Syphilis को हिंदी भाषा में उपदंस के नाम से जाना जाता है। यदि कोई स्वस्थ व्यक्ति किसी भी उपदंश रोगी के साथ रति क्रिया (Inter-Course) करता है, तो उस स्वस्थ व्यक्ति के प्रजनन अंग पर भी घाव हो सकते हैं। इस प्रकार के घाव दो प्रकार के होते हैं- कठोर जठराग्नि और कोमल जठराग्नि।
कठोर जठराग्नि में रक्त विषैला होता है, जबकि मृदु वातग्रंथि में रक्त विषैला नहीं होता है।
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सिफलिस क्या है in hindi | सिफलिस का होम्योपैथिक इलाज |
यदि किसी स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में सिफलिस के विषाणु प्रवेश कर जाते हैं तो इसके लक्षण दिखने में लगभग 20 दिन का समय लग जाता है। ये विषाणु अंगार ही अन्दर फैलते रहते है लेकिन 20-२५ दिन दी इसका एहसास नही होता । इस अवस्था को 'इनक्यूबेटिंग पीरियड( Incubating period)' कहा जाता है। इस अवधि में पीड़ित व्यक्ति के शरीर पर उपदंश Syphilis के कोई लक्षण नहीं नहीं दिखाई देते हैं। इसके बाद जब लक्षण दिखना शुरू होते हैं उन्हें 3 Stage में विभाजित करते है
- प्राथमिक चरण Primary stage
- माध्यमिक चरण Secondary stage
- तृतीयक चरण Tertiary stage
Primary stage प्राथमिक चरण
Secondary stage माध्यमिक चरण
इस रोग की दूसरी अवस्था में घाव दिखने के 3-4 महीने बाद रोगी को बुखार आने लगता है, इसके साथ ही निम्न लक्षण दिखाई देते हैं
- शरीर कमजोर हो जाता है
- सिर में दर्द बना रहता है
- शरीर में खून की कमी हो जाती है
- गले और मुंह में घाव हो जाता है
- बाल गिरने लगते हैं
- जोड़ों में दर्द बना रहता है।
Tertiary stage तृतीयक चरण
Syphilis के विभिन्न लक्षणों के आधार होमियोपैथी औषधियों से उपचार | Homeopathy me Syphilis ki Dawa
Jacaranda Guyalandie
उपदंश के घाव विशेष रूप से आंखों और गले के बीच में दिखाई देने पर Jacaranda Guyalandie के मदर टिंचर की 5-5 बूंदों को रोजाना दिन में दो बार लेना चाहिए।
Solidego-verga
यदि रोगी को पेशाब कम आता है, पेशाब में दर्द होता है, मूत्राशय में दर्द होता है, पेशाब करते समय नीचे काले रंग का पदार्थ जमा हो जाता है और बिना कैथोर आदि के पेशाब करना असंभव हो जाता है, तो 3-4 बूंद पेशाब करें। इस औषधि का मदर टिंचर दिन में 3-4 बार लेना चाहिए।
पौरुष ग्रंथि का बढ़ना
वृद्ध लोगों में, यदि बढ़े हुए प्रोस्टेट के कारण बिना कैथोर के पेशाब करना असंभव हो जाता है, तो Sabal Serrulata Q की 5 से 10 बूंदों को दिन में दो बार लेना चाहिए।
Biscum-album
नींद न आना
विभिन्न औषधियों से इस रोग की प्राथमिक अवस्था का उपचार
Syphilinum
यह औषधि Syphilis की तीनों अवस्थाओं में बहुत उपयोगी होती है। पहले 2-3 महीने तक सप्ताह में एक बार Syphilinum देने से पखवाड़े (15 दिन) में एक बार देने से लाभ होता है। यदि रोगी को अधिक कठिनाई का सामना करना पड़ता है तो यह उसके लिए बहुत ही गुणकारी होता है।
Nitric-acid
Syphilis के रोगी ने यदि मरकरी ली हो, लेकिन वह फेल हो गया हो और घाव आदि के स्थान पर मस्से हो गए हों तो नाइट्रिक-एसिड औषधि की 30CH शक्ति का सेवन 4-4 घंटे के अंतराल पर करने से लाभ होता है।
Guacum
इस रोग की प्रारम्भिक अवस्था में यदि चेंकर ठीक होने में अधिक समय लेता है, चेंकर सख्त हो जाता है, लिंग के अग्र भाग में सूजन आ जाती है, आदि इस औषधि की 6x शक्ति या इसके मूलार्क की 6 शक्ति दी जा सकती है। रोगी को।
Syphilis की द्वितीय अवस्था का विभिन्न औषधियों से उपचार
Merc-sol
Merc-sol- को Syphilis की बहुत ही प्रभावशाली औषधि के रूप में जाना जाता है। यह कोमल जठराग्नि, बुबो और बुखार में बेहतर काम करता है। यदि रोगी में गले में खराश, रात में नींद न आना, घावों से बदबूदार स्राव निकलना, गैंग्रीन जैसे फोड़े जिसमें से खून बहता हो आदि लक्षण रोगी में पाए जाते हैं तो Merc Sol औषधि की 30CH शक्ति का सेवन करना लाभकारी होता है।
इसके अतिरिक्त Merc Proto Iod कठोर जठराग्नि, जिसमें दर्द और मवाद न हो, में अधिक अच्छा कार्य करती है। द्वितीयक अवस्था के घाव में यह औषधि बहुत गुणकारी होती है। यदि घाव अकर्मण्य अवस्था में हो, न कम हो न अधिक हो, उसी अवस्था में रहने पर मर्क-बिन आयोडाइड देना चाहिए। कण्ठमाला के रोगी को दूसरी और तीसरी अवस्था में Cinnabaris औषधि की 3x मात्रा दी जा सकती है। merc dulcis का उपयोग मुंह और गले के घावों को सड़ाने में और शिशु Syphilis के मामले में किया जा सकता है।
Arsenic-album
Syphilisरोग में Arsenic-album बहुत ही गुणकारी औषधि मानी जाती है। उपदंश के रोगी को सड़े हुए घाव में तेज दर्द हो तो इस औषधि की 30CH शक्ति रोगी को देना चाहिए।
Hepar-sulph
Syphilis के लक्षणों में घाव के बीच की जगह लाल हो जाती है, किनारे चौड़े हो जाते हैं, पानी जैसा मवाद निकलता है, ग्रन्थियों में मवाद बन जाता है, सूजन हो जाती है, रात में दर्द होता है, घाव नहीं हो पाता। छूना, बाल अधिक झड़ना आदि लक्षणों में रोगी को हेपर-सल्फ औषधि की 30CH शक्ति देनी चाहिए।
Nitric-acid
इस औषधि का प्रयोग उपदंश की द्वितीय अवस्था में किया जाता है। घावों का सड़ना, उनमें बड़ी संख्या में दाने निकलना, खून बहना, श्लेष्मा झिल्ली पर घाव के निशान, सिर और त्वचा में दर्द होना, आकारहीन घाव दिखाई देना आदि लक्षणों में रोगी को Nitric-acid 6x दे सकते हैं गले में पीले या भूरे रंग के निशान शरीर पर पड़ जाते हैं, ठंडी हवा आदि से रोग बढ़ जाता है।
Mezerium
Syphilis रोग में यह औषधि रोगी को रात के समय होने वाली परेशानियों को दूर करने के लिए बहुत प्रभावशाली मानी जाती है। यह पेरीओस्टेम के दर्द में भी बेहतर काम करता है। इस औषधि की 6 या 30CH शक्ति का सेवन रोगों को ठीक करने के लिए किया जा सकता है।
Carbo-animalis
यह औषधि अधिक पारा सेवन करने वालों में अधिक अच्छा कार्य करती है। त्वचा पर विशेषकर चेहरे, जांघ आदि पर पीतल के रंग के दाने निकलना आदि लक्षणों में रोगी को इस औषधि की 3x या 30CH शक्ति दी जा सकती है।
Thuja
लिंग के अग्र भाग पर मस्से हो गए हों तो सफेद घाव हो जाते हैं। रोगी के लिए Thuja औषधि की 30CH शक्ति देना लाभकारी होता है।
उपदंश की तृतीय अवस्था में विभिन्न औषधियों का प्रयोग
Phytolacca
इस औषधि का प्रयोग उपदंश के अनेक लक्षणों में किया जाता है। यदि वात रोग, जोड़ों का दर्द, मांसपेशियों का दर्द जो रात के समय और ठंड के मौसम में बढ़ जाता है आदि रोग हो तो ऐसे लक्षणों को समाप्त करने के लिए इस औषधि की 3x शक्ति का उपयोग करना चाहिए।
Kalli-Iodide
इस औषधि का सेवन उपदंश की तृतीय अवस्था में ही किया जा सकता है। रोगी की नाक और माथे की हड्डियों में कटन दर्द होने पर कैली-आयोडाइड औषधि की 3 शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है।
Auram-met
इसका उपयोग Syphilis की द्वितीयक एवं तृतीय अवस्था में किया जा सकता है। यदि पारे के अधिक सेवन से मुंह में छाले हो जाते हैं, नाक पर उपदंश का आक्रमण हो जाता है, नाक की हड्डियों में घाव हो जाते हैं; बदबूदार स्राव शुरू हो जाता है, चेहरे की हड्डियों में दर्द होने लगता है आदि लक्षण रोगी में पाए जाते हैं तो Auram-Met औषधि की 30CH शक्ति का सेवन किया जा सकता है।