कैटरेक्ट क्या है? कैटरेक्ट कैसे बनता है? उसका निवारण क्या है?

कैटरेक्ट क्या है? कैटरेक्ट कैसे बनता है? उसका निवारण क्या है?
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कैटरेक्ट कैसे बनता है उसका निवारण क्या है?

कैटरेक्ट या मोतियाबिंद में आंखों के लेंस धुंधले हो जाते हैं उसमें प्रोटीन के छोटे-छोटे कण अंदर चिपक जाते हैं जिससे रेटिना पर सही प्रकाश नहीं पहुंच पाता, जिसके कारण वस्तु की छबि धुंधली बनती है फल स्वरुप वस्तुएं हमें साफ नहीं दिखाई देती है। यदि रोशनी कम हो तो और भी दिक्कत बढ़ जाती है लेकिन ज्यादा रोशनी होने पर भी प्रॉब्लम होती।

अभी तक के अनुसंधान से पता चला है कैटरेक्ट निम्न मुख्य कारणों से बनता है:----

(१) आयु बढ़ने के कारण लेंस का लचीलापन कम होती जाती ।

(२) अनुवांशिक बीमारियों (डायबिटीज , ब्लड प्रेशर आदि) के कारण कैटरेक्ट बनता है।

(३) आंखों की कोई पुरानी बीमारी व सर्जरी के कारण भी मोतियाबिंद हो सकता है।

(४) वयस्कों में लंबे समय तक स्टेरायड  मेडिसिन लेने से भी कैटरेक्ट हो सकता है।

(५) अधिक धूम्रपान व नशीले पदार्थ सेवन करने से भी कैटरेक्ट हो सकता है।

(६) लेंस और रेटिना में चोट लगने के कारण भी कैटरेक्ट हो सकता है।

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  Catract Problem in Eye

कैटरेक्ट बनने की प्रक्रिया इतनी धीमी होती है कि लोगों को पता ही नहीं चलता कि कब उसने अपनी गिरफ्त में ले लिया।  35 - 40 की उम्र आते-आते  नजर कुछ कमजोर होने लगती है । कुछ वर्षों तक और काम करने पर यह महसूस करने लगते हैं कि उनकी नजर  कम हो रही है कुछ दिनों तक भी इस सोच विचार में रहते हैं कि नजर कम हो रही है या हमें केवल ऐसे ही लग रहा है। तब तक कुछ आयु और बढ़ जाती है फिर वही काम करने में परेशानी ज्यादा महसूस होने लगती है। इधर-उधर लोगों से बात करते हैं। तो लोग साधारण तौर पर चश्मे की सलाह दे देते हैं फिर  चश्मा लगा लेते हैं नजर ठीक हो जाती है उसके बाद चश्मा बदलते रहते हैं। काम चलता रहता है 60 वर्ष के बाद एक ऐसी स्थिति आ जाती है कि चश्मा बदलना भी संभव नहीं होता है। उस समय लगता है कि कहीं कैटरेक्ट नहीं  बन रहा है इस उमर में जब डॉक्टर से कांटेक्ट करते हैं तब उन्हें पता चलता है कि कैटरेक्ट बन गया है फिर भी लंबे खर्च के कारण  सलाह को डालते रहते हैं। जब बिल्कुल काम रुक जाता है तब तब गंभीरता से इस पर सोचते हैं।
ऐसी स्थिति में विभिन्न प्रकार के चिकित्सा विशेषज्ञ जो उनके आसपास होते हैं उनसे बात करते हैं कोई आयुर्वेदिक दवा बताता है, कोई  होम्योपैथी की दवा बताता है कोई और कुछ  बताता है। इस तरीके से वह दवाई खाते रहते हैं। लेकिन जब कोई सफलता नहीं मिलती तब वह ऑपरेशन की तरफ अपना विचार बनाते हैं। लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी होती है।

अभी तक के मेडिकल अनुसंधानों से यह पता चला है कि कैटरेक्ट की कोई किसी मान्य पैथी मे कारगर औषधि नहीं है।केवल ऑपरेशन उचित इलाज है।

कैटरेक्ट का ऑपरेशन

आज के 50 साल पहले कैटरेक्ट का ऑपरेशन करना बहुत कठिन था क्योंकि काफी लंबा समय लगता था आंख में टांके लगते थे और काफी परेशानी होती थी लेकिन आज के समय में ऑपरेशन कराना बहुत आसान हो गया है मात्र 20 -25 मिनट का समय लगता है और आप्रेशन के बाद लगभग 8 दिन में सब लगभग नार्मल हो जाता है। लेकिन सावधानी लगभग 1 महीने तक रखना चाहिए।

ऑपरेशन में एक बहुत छोटा सा छेद कर पुराना लेंस निकाल देते है और नया लेंस डाल देते हैं। यह सारी क्रिया कुछ मैनुअल और कुछ लेजर द्वारा होती है।

नया लेस होने के कारण उसमें कोई गंदगी नहीं होती आब्जेकट से निकलने वाली किरणें सीधे लेंस से होते हुए रेटिना पर पड़ती है और वहां अपना प्रतिबिंब बनाती है जिसे आप्टिक नर्व ब्रेन तक पहुंचा देती है । इस तरह हमें वस्त बिल्कुल साफ दिखाई देती है।

यहीं पर यदि आप दूसरी आंख से तुलना करेंगे तो आपको साफ नजर आएगा की नये लेंस से  जो हम देख रहे हैं वह पुराने की अपेक्षा बहुत साफ है।

अति संक्षेप में यदि कैटरेक्ट को समझना चाहे तो इस प्रकार से समझ सकते हो। जैसे एक लैम्प का शीशा हो और वह काफी पुराना हो गया तो उसे रोशनी बाहर नहीं निकलती चाहे जितना साफ करिए हमेशा रोशनी लाल दिखाई देती है लेकिन यदि उस शीशे को हटाकर नया शीशा लगा दे तो रोशनी बिल्कुल साफ दिखाई देने लगते बस यही हाल कैटरेक्ट या मोतियाबिंद में होता है।  

नोट:----यहां हमने मान्य चिकित्सा पद्धतियों में बताया है कि अभी तक इसका कोई औषधीय उपचार नहीं है । यदि उचित व ईमानदारी से अनुसंधान किया जाए तो हो सकता है इलेक्ट्रो होम्योपैथी में इसका कोई उपचार निकल सके।

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