दवाओं के कहीं परिणाम मिलते हैं कहीं नहीं ऐसा क्यों?

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अधिकांश चिकित्सकों का कहना है कि फलां फार्मेसी की दवाएं कभी काम करती हैं कभी नहीं करती है। इसके  कारण क्या हो सकते हैं आज इसी पर विचार करते हैं।

उपरोक्त विषय पर विचार करने से पहले हम यह समझ लेते हैं कि दवाइयां किस फार्म में लोगों पर काम करती है। मोटे तौर पर दवाइयां दो फार्म  में लोगों पर काम करती है।
 

(१) स्थूल फॉर्म

जैसे आयुर्वेद यूनानी और एलोपैथी की दवाएं।

(२) सूक्ष्म फार्म

जैसे होम्योपैथी बायोकेमिक बैच फ्लावर और इलेक्ट्रो होम्योपैथी की दवाएं।

Nature
  Electro Homeopathic Medicine

यह दवाएं जब शरीर में डाली जाती है तो यह शरीर में होने वाली एब्नार्मल रासायनिक अभिक्रिया को नार्मल करती है। जिसके कारण रोग ठीक होता है।

संसार में जितने व्यक्ति हैं उतने टेंपरामेंट होते हैं जैसे संसार की दो चलती हुई घडियों की सुई कभी एक जैसी नहीं हो सकती है उसी तरह किन्हीं दो व्यक्तियों के टेंपरामेंट एक जैसे नहीं होते हैं।

कुछ टेंपरामेंट ऐसे होते हैं जिसमें स्थूल दवाएं अधिक फायदा करती है कुछ ऐसे होते हैं जिस में सूक्ष्म दवाई अधिक फायदा करती कुछ ऐसे टेंपरामेंट होते हैं जिनमें दोनों दवाएं न्यूनाधिक फायदा करती है।

चिकित्साकों के लिए टेंपरामेंट की पहचान करना बहुत कठिन होता है। टेंपरामेंट को लोगों ने सुविधा के लिए कई भागों में बांटा है फिर भी पहचान करना बहुत कठिन होता है।

औषधियों का सटीक काम करना कई बातों पर निर्भर करता है यदि हम इससे चूक गए तो औषधियां सही काम नहीं कर पाती है :-----

(१) रोग की उचित डायग्नोसिस करना (संभव है)

(२) रोगी की उचित मेडिसिन का सिलेक्ट करना (संभव है)

(३) रोगी के उचित टेंपरामेंट का चुनाव करना (असंभव है)

ऐसी स्थिति में चिकित्सक को क्या करना चाहिए?

(१)  चिकित्सकों को धैर्य के साथ एक स्थान पर लंबे समय तक प्रैक्टिस करना चाहिए ताकि ऐसे लोगों को सेलेक्ट किया जा सके जिन पर आप की दवाई काम करती हैं।

(२) ऐसे रोगों का चुनाव करना जिन पर आपकी दवाएं ज्यादा इफेक्टिव है।

परंतु कभी-कभी यह देखा जाता है कि एक ही व्यक्ति पर एक ही बीमारी होने पर कभी कोई दवा सफल हो जाती है अभी नहीं सफल होती है यही चिकित्सकों की मुख्य समस्या होती है। इसका मुख्य उपरोक्त तीनों बातें होती है। चिकित्सक यह चाहता है कि वह रोगी को १००%  क्योर करें इस अपेक्षा में वह कई फर्मो की दवाएं अपने पास रखता है और प्रयोग करता है। वह चाहता है कि हमसे कोई रोगी बिना ठीक हुए न जाए ।
यहीं पर सबसे बड़ी भूल हो जाती इलेक्ट्रो होम्योपैथी में प्रत्येक फर्म की मेडिसिन अलग-अलग होती है इसमें एक्यूरेसी नहीं होती होती। जितनी मेडिसिन होंगी उतने तरीके की उसमें पावर होगी । क्योंकि सब का तरीका अलग अलग है। जब कोई चिकित्सक नई मेडिसिन का प्रयोग करता है या नए पेशियन्ट पर प्रयोग करता है। तो उसे समझने में काफी समय लगता है। तब तक पेशियन्ट हाथ से निकल जाता है। 
इसके लिए आवश्यक है कि चिकित्सक एक ही फार्म की औषधियों का प्रयोग करें तो उसे सफलता मिल सकती लेकिन या दूसरा सवाल यह उठता है कि फर्मो में भी औषधियों का निर्माण ठीक हो रहा है इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं होती। इसीलिए चिकित्सक अच्छी-अच्छी औषधियों का चुनाव कर अपने क्लीनिक में रखना चाहता  । क्रमशः


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