रोग और उनके लक्षण
बहुत से लक्षण ऐसे होते हैं जिनमें बीमारी का भ्रम हो जाता और लोग लक्षण का इलाज करना शुरू कर देते हैं । फल स्वरूप बीमारी ठीक नहीं होती है । ऐसा अधिकतर उन लोगों के द्वारा होता है । जिन्हें एनाटॉमी फिजियोलॉजी का ज्ञान नहीं होता है ।
प्रैक्टिस आफ मेडिसिन की स्टडी नहीं होती है । बहुत सी पुस्तकों में भी लक्षणो को बीमारी के रूप में लिखा हुआ है इसलिए आज लक्षण और बीमारी पर भी चर्चा करेगे ।
(1) बीमारी (रोग/ डिजीज)
जब शरीर होम्यो स्टेट (समांगदशा) से हेटरो स्टेट (असमांग दशा ) मे अस्थाई रूप से चला जाता है और लंबे समय तक उसी स्थिति बना रहता है तो इसे बीमारी (रोग ) कहा जाता है। शरीर के होम्यो स्टेट में जाने का कोई न कोई कारण होता है। जब तक कारण रिमूव नहीं होता अब तक हो उसी स्टेज में बना रहता है।
(2) लक्षण (सिम्टेम)
शरीर जब एक दशा से दूसरी दशा में परिवर्तित होता है तो हमें पता नहीं चलता है लेकिन जब कोई लक्षण व चिन्ह प्रकट होते हैं तब उसको पता चलता है । जिसके जिसके शरीर की दशा में परिवर्तन हुआ है।
(1) जोन्डिस
जॉन्डिस होने पर शरीर में बाइल (पित्त) की मात्रा बढ़ जाती है और शरीर पीला होने लगता है । ऐसी स्थित मे लोग जॉन्डिस का उपचार करना शुरू कर देते हैं जिसमें हैं । कभी इसमें सफलता मिलती है कभी नहीं मिलती है वास्तव में जॉन्डिस एक लक्षण है लेकिन बीमारी दूसरी जगह होती है
पित्त की थैली में पथरी होने पर कैंसर होने पर डिलीवर में कैंसर होने पर ,पाचक जूस का कंपोजीशन बिगड़ने पर किसी बैक्टीरिया वायरस का इंफेक्शन होने पर आदि अनेक कारण होते हैं जिससे पित्त संतुलित मात्रा में लीवर से नहीं निकल पाता है ।
इस तरह हम देखते हैं की बीमारी लीवर में थी और ट्रीटमेंट हम जॉन्डिस का कर रहे थे । जब तक लीवर का ट्रीटमेंट नहीं होगा जॉन्डिस कभी सही नहीं हो सकता आपने देखा होगा की पित्ताशय में पथरी होने पर जोन्डिस हो जाता है और कितनी भी प्रयास किया जाए जब तक पथरी रिमूव नहीं होंगी जान्डिस कभी सही नहीं होता है । इस तरह जौंडिस कोई रोग नहीं है रोग का लक्षण है।
(2) पाइल्स
हिंदी में इसे बवासीर कहते हैं। इसके कई कारण होते हैं जैसे पाचन जूस का संतुलित मात्रा में न बनाना आंतों में कीड़े होना, मलाशय में गंदगी का एकत्र होते रहना आदि अनेक कारण होते हैं। जिसके कारण मलाशय के अंतिम भाग की शिराएं फूल जाती हैं। उनमें रक्त भर जाता है। और मलद्वार सकरा हो जाता है। ऐसी स्थिति में अधिक जोर लगाने पर शिराओं की फूट जाती है। जिससे रक्त आने लगता है। हम इसी का ट्रीटमेंट करना शुरू कर देते। जबकि इससे संबंधित प्रॉब्लम कहीं और होती है ।
(3) दमा
आम बोलचाल की भाषा में इसे सांस फूलना कहते है इसमें रोगी थोड़ा चलने या परिश्रम करने पर आपने हांफने लगता है। सांस लेने में दिक्कत होने लगती है । आमतौर पर लोग इसी का ट्रीटमेंट करना शुरू कर देते जबकि प्रॉब्लम कहीं और होती।
जब फेफड़े कमजोर हो जाते हैं तो वह स्वास को सही ढंग से पूरी मात्रा में न खींच पाते हैं न छोड़ पाते हैं इसके कारण प्रॉब्लम होती है । इसी तरह फेफड़े टाइट होने पर भी सांस लेने में दिक्कत आती है। फेफड़ों में सूजन इंफेक्शन और दूसरे तमाम कारणों से सांस लेने और छोड़ने में दिक्कत होती है। फेफड़े और नासिका को जोड़ने वाली Trkia में सूजन बलगम इंफेक्शन आदि होने पर भी सांस लेने में दिक्कत होने लगती है ।
कभी-कभी अधिक कमजोरी और होमो ग्लोबिन के असंतुलित होने के कारण भी सांस लेने में दिक्कत होती।
(4) ज्वर
शरीर का एक निश्चित तापक्रम होता है । इससे कम ज्यादा होने पर शरीर अनकंम्फरटेबल महसूस करता है। यह तापक्रम विभिन्न प्रकार के वायरस और बैक्टीरिया के शरीर में प्रवेश करने से घटता बढ़ता रहता है। शरीर में कहीं चोट लगने से भी थकान लगने से भी बढ़ता है।
तापक्रम को प्रभावित करने वाले कई प्रकार के बैक्टीरिया होते हैं और हर बैक्टीरिया अपने अलग प्रकार से तापक्रम को प्रभावित करता है इसलिए हर प्रकार के तापक्रम को नियंत्रित करने के लिए अलग-अलग प्रकार की औषधियों का निर्माण किया गया है ।
आमतौर पर ऐसा देखा गया है जैसे ही तापक्रम बढ़ता है लोग औषधियां देना शुरू कर देते हैं लेकिन तापक्रम प्रभावित होने का मुख्य कारण क्या है इसको पता करके यदि और सही का प्रयोग किया जाए तो शीघ्रता से लाभ प्राप्त किया जा सकता है उदाहरण के लिए यदि मानव शरीर बैक्टीरिया वायरस का इंफेक्शन हुआ है तो जब तक उसे दूर नहीं किया जाएगा तो तापक्रम कम नहीं होगा। इसी तरीके से शरीर के किसी भाग से ट्यूमर कैंसर आदि है तो जब तक उसका इलाज नहीं होगा तब तक टेंपरेचर नियंत्रण में नहीं आएगा क्योंकि टेंपरेचर का मुख्य कारण ही वही है ।
प्रश्नोत्तरी: इलेक्ट्रो होम्योपैथिक मेडिसिन Slass (SL) शब्द का क्या अर्थ है? और क्या काम है? कमेंट में बताएं। !
(5) पैरालिसिस
सामान्य भाषा में इसे लकवा या फालिज कहा जाता है इसके कई कारण होते हैं जैसे
○ ब्रेन में क्लाट फस जाना
○ किसी नर्व का टूट जाना
○ नर्व में संक्रमण हो जाना ।
○ या किसी भी कारण से नर्व सप्लाई बंद हो जाना ।
ऐसी स्थिति में संबंधित अंग कार्य करना बंद कर देता तो हम अधिकतर संबंधित अंग का ही ट्रीटमेंट करना शुरू कर देते हैं जबकि उसका कारण कहीं दूसरी जगह होता है यह हमें केवल लक्षण दिखाई देता है और रोग को हम नहीं देख पाते हमें रोगों की डायग्नोसिस करनी चाहिए ।