जोडों का दर्द, संधि शोथ, अर्थराइटिस (Arthritis) ,गठिया
जोडों का दर्द, संधि शोथ ,अर्थराइटिस ,गठिया यह रोग पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों को अधिक होता है पहले यह रोग वृद्धावस्था में अधिक होता था लेकिन वर्तमान समय में बच्चों युवकों में भी पाया जाता है।
रोग का मुख्य कारण
हमारे शरीर में दो तरल पदार्थ स्वास्थ्य बहते एक रक्त (Blood) है दूसरा लसिका (Lymph) रक्त शरीर को ताकत देता है और लसिका शरीर को सुरक्षा प्रदान करती है परंतु जब इनमें अशुद्धता आ जाती है तो यह स्वस्थ नहीं रहते जिसके कारण न हमारे शरीर को उचित ताकत मिलती है और न ही उचित सुरक्षा मिलती है । जिसके कारण हमारे शरीर में विभिन्न प्रकार के बैक्टीरिया वायरस फंगस आक्रमण कर अपना घर बनाने लगते हैं और रक्त का कंपोजिशन बिगड़ जाने के कारण अनावश्यक पदार्थ शरीर से निकल नहीं पाते वह शरीर में ही जमा होने लगते हैं जिसके कारण अनेक प्रकार के रोग शरीर में पैदा हो जाते हैं ।
यह एक या कई जोड़ों में सूजन व जकड़न होने के कारण , होने वाला दर्द है जो उम्र के साथ बढ़ता जाता है । यह कई प्रकार का होता है, हर प्रकार का कारण अलग होता है। वैसे तो यह रोग कई प्रकार का होता है
लेकिन मुख्य तौर पर दो प्रकार का होता है :-
(i) तीव्र संक्रामक (Acute infective )
(1) रूमेटिक
(2) स्टेप्टोकोकल
(3) स्टैफिलोकोकल
(4) गोनोकोकल
(5) सीरम सिकनेस
(6) स्कारलेट फीवर (लालबुखार) , डिसेंट्री , टाइफाइड युक्त संधि शोथ ।
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(ii) जीर्ण संक्रमण (Chronic infective)
यह शोथ प्राय: पहले शरीर के अंगों पर पहले होता है।
इसके कई कारण होते हैं:---
(1) जीर्ण पायरिया
(2) जीर्ण अपेंडिक्स
(3) जीर्ण पित्ताशय शोथ
(4) जीर्ण साइनोसाइटिस
(5) जीर्ण टॉन्सिलाइटिस
(6)जीर्ण फैरिंजाइटिस
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डायग्नोसिस
(i) लक्षण
(1) जोड़ो, उंगलियों , पीठ ,आदि की हड्डियों व मांसपेशियों में दर्द होना ।
(2) दर्द रुक रुक कर होना
(3) हिलने से दर्द होना
(4) जोड़ों में अकड़न होना ।
(5) दर्द के कारण नॉर्मल ढंग से चल न पाना।
(6) शरीर में थकान महसूस होना भूख कम हो जाना
(7) हल्का ज्वर महसूस होना।
(ii) चिन्ह
(1) हड्डियों का टेढ़ा हो जाना।
(2) शरीर में गांठें निकल आना ।
(3) जोड़ों में सूजन हो जाना।
(4) जीना चढने में काफी तकलीफ होना।
(5) चलते समय अधिक थकान के कारण पसीना निकल आना ।
(6) कुछ दूर चलने के बाद बैठ जाना ।
अल्ट्रासाउंड, एम आर आई, ब्लड और यूरिन की जांच से इस रोग की पहचान की जा सकती है।
इस रोग ने यूरिक एसिड और E S R बढा हो सकता है ।
उपचार
चूंकि यह रोग प्राचीन काल से है इसलिए आयुर्वेद और यूनानी में इसकी दवाएं उपलब्ध है।
एलोपैथ में भी इसकी दवाएं उपलब्ध है। होम्योपैथी और इलेक्ट्रो होम्योपैथी में भी इसकी दवाई उपलब्ध है। रोगी अपनी सुविधानुसार ट्रीटमेंट ले सकता है लेकिन व्यावहारिक तौर पर यह देखा गया है कि इलेक्ट्रो होम्योपैथी में इसकी दवाई बहुत अच्छी दवाएं है। इलेक्ट्रो होम्योपैथी में इसकी कई दवाएं है जो बहुत उपयोगी हैं उसमें C4, F1, F2, C11, RE, GE ,BE ,YE ,JN ,KK आदि दवाएं डायलूशन भेद (घटा- बढ़ाकर देने से) से बहुत अच्छा परिणाम देती है।
सेकाई
मेथी, सेंधा, नमक ,अजवाइन, बालू या मौरंग में डालकर पोटली बना ले उसे गर्म दर्द व सूजन वाले स्थान की सगाई करने से काफी राहत मिलती है।
इलेक्ट्रो होम्योपैथिक औषधियों का गर्म काम्प्रेस देने से भी काफी राहत मिलती है।
पथ्यापथ्य
पथ्य
भोजन की मात्रा कम कर देना चाहिए ,और सूखे मखाना का इस्तेमाल करना चाहिए।
लता में लगने वाली सब्जियों का प्रयोग करना चाहिए जैसे लौकी तरोई चिचिंडा सेम परवल टिन्डा आदि। हमेशा गर्म पानी का प्रयोग करें । (यह भी पढ़ें : Electro Homeopathy treatment of Gout
अपथ्य
भारी भोजन प्रोटीन स्टार्च आदि का प्रयोग कम कर देना चाहिए अर्थात आलू सूरन गोभी खट्टी चीजें मीट आदि का प्रयोग या तो बंद कर दें या फिर बहुत कम कर दें। फ्रिज का ठंडा पानी बिल्कुल न ले ।
कोई भी चिकित्सा चिकित्सक की देखरेख में लें अपने आप चिकित्सा लेने से भारी नुकसान हो सकता है।