Filariasis (फाईलेरिया) या हाथीपांव,
इस रोग में रोगी के पैर सूज कर हाथी के पैरों के समान हो जाते हैं। पैरों के अतिरिक्त रोगी के वृषण व अन्य अंगों में भी सूजन आ जाती है। सूजन के साथ -साथ पैरों में भी कठोरपन तथा चिकनापन भी आ जाता है।
रोगाणु का नाम
बाऊचेरिया बेन्क्रोफटी
क्रोनिक(Chronic)
रोगाणु का संवर्धन काल
8-16महीने
संक्रामक(Infectious)
Electro Homeopathic treatment of Filaria |
रोग का कारण
यह रोग फाईलेरिया बेंन्क्रफ्टी नामक परजीवी द्वारा उत्पन्न होता है । इस परजीवी के अण्डे रोगी व्यक्ति से स्वास्थ्य मनुष्यों में मच्छरों द्वारा पहुंचाऐ जाते हैं। फाईलेरिया के रोगाणु के जीवन चक्र मे मनुष्य तथा मच्छर दोनों ही होस्ट का काम करते हैं मनुष्य को इस रोग का संक्रमण तभी होता है । जब वह संक्रमित इलाके में 3-6 माह तक रह रहा हो । माईक्रोफाईलेरिया के किटाणु शरीर में प्रवेश करने के पश्चात 8 से 16 माह के बाद रोग के लक्षण प्रकट करते हैं ।
इस प्रकार फाईलेरिया के ये किटाणु मनुष्य के शरीर में बिना कोई लक्षण परिलक्षित किए हुए कई महीने तक रह सकते हैं
रोग की अवस्था
- फालेरियल ज्वर की अवस्था
- कंपकंपाहट के साथ उच्च शारिरीक तापमान अथवा कभी- कभी हल्के बुखार के साथ कंपकंपाहट।
- कुछ दिनों के पश्चात ज्वर समाप्त हो जाता है किंतु यह बुखार थोड़े-थोड़े अन्तराल के बाद पुनः आ सकता है।
तीव्र लिम्फैजाईटिस
- शरीर के विभिन्न लसीका ग्रन्थियों(गांठों) के आकार में वृद्धि होना तथा उसमें पीडा होना।
- कंपकंपाहट के साथ ज्वर आना
- त्वचा व अन्य अंगों में सूजन व पीडा होना
लिम्फैडिनाईटिस अवस्था
- लसीका ग्रन्थियों तथा इसिनोफिलिक कोशिकाओं में वृद्धि होना
- रक्त में एन्टीजन तथा एन्टीबाडी प्रतिक्रिया। यदि रक्त का परिक्षण रात्रि में किया जाऐ तो माईक्रोफाईलेरिया के किटाणु दिखाई पडते है
अवरोधक अवस्था
- इस अवस्था के लक्षण कई महीनों अथवा कई वर्षों के पश्चात दिखाई पडते हैं।
- फाईब्रोसिस से प्रभावित प्रमुख अंग हैं पैर, हाथ, स्तन ,जननांगों वृषण तथा पेट ।
- पुरुषों के फाईब्रोसिस का प्रभाव पैरों के अतिरिक्त अण्डकोष पर सबसे अधिक पडता है फलस्वरूप उनके आकार में वृद्धि हो जाती है इस अवस्था को हाईड्रोसील कहते हैं
ट्रापिकल इयोसिनोफिलीया की अवस्था
इस अवस्था में फाईलेरियल लारवा रक्त से गायब होकर विभिन्न लक्षण उत्पन्न करते हैं
इनमें से कुछ प्रमुख लक्षण हैं प्लीहा के आकार में वृद्धि ,खांसी आना तथा श्वास लेने में कठिनाई होना
लक्षण
- त्वचा पर पित्ती निकलना तथा श्वास लेने में कठिनाई
- कंपकंपाहट के साथ ज्वर चढना
- अण्डकोष में सूजन आना
- लिम्फनोड का बढना
- पैरों में सूजन आना तथा उसमें अंगुली से दबाने पर गड्ढा पड जाना
- रोगी के पैरों का हाथी के पैरों के समान मोटे व भारी हो जाना
- मूत्र का दूध के समान श्वेत पडना
- महिलाओं में लेविया वल्वा , स्तन तथा क्लाइटोरिस का बढ जाना
जांच Investigation
रक्त का जांच (इसिनोफिलिक)
मूत्र की जांच
लिम्फनोड का बढा होना
हाथी के पैरों के समान रोगी के पैर हो जाना
रोग मुक्त होने की सम्भावना
फाईलेरियल का रोग यदि दो साल पुराना हो जाऐ अथवा रोगी के पैर हाथी के समान हो जाऐं तो रोग मुक्त होने की सम्भावना कम होती है।
Diet Instructions पथ्य परहेज
इस रोग में कडवे खादय पदार्थ जैसे करेला , नीम के पत्ते तथा सहजन की फलियां प्रयोग करें
• कच्चा केला ,परवल ,बैंगन, पत्ता गोभी तथा फूल गोभी भी इस रोग के लिए उपयोगी है
• लहसुन तथा अदरक का सेवन रोग को कम करने में सहायक है
• बेल के पत्तों का सेवन भी इस रोग में उपयोगी है।
रोग से बचाव (Prophylaxis)
फाईलेरियल का रोग मच्छरों द्वारा फैलता है अतः अपने आसपास मच्छरों को नहीं पनपने देना है
• स्वयं को मच्छरों के काटने से बचाना है
सामान्य उपचार (Genral treatment)
प्रारंभिक लक्षणों के दिखाई देते ही फाईलेरियल का उचित उपचार करना चाहिए
• रोगी को पूर्ण विश्राम करना चाहिए तथा सूजे हुए पैर में गर्म सिंकाई करना चाहिए
• रोगी को वसा रहित भोजन दिया जाना चाहिए
इलेक्ट्रो होम्योपैथी उपचार
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