स्पेजिरिक क्या है ? What is Spagyric? इलेक्ट्रो होम्योपैथी 2021 Electro Homeopathy Medicine

Please wait 0 seconds...
Scroll Down and click on Go to Link for destination
Congrats! Link is Generated

What is Spagyric? स्पेजिरिक क्या है ?

आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है यह कोई नई बात नहीं है यह पिछले लाखो वर्ष पहले से चली आ रही है जब वेदों की रचना हुई  तो उसकी आयुर्वेद शाखा में औषधियों के खोज इसी आधार पर की गई थी क्योंकि लोग बीमार होते थे और उन्हें स्वास्थ्य की आवश्यकता थी।

जब व्यक्ति स्वस्थ होता है तो उसे जीने के लिए बहुत सारी चीजों की आवश्यकता पडती है। इन आवश्यकता को पूरा करने के लिए उसे तरह-तरह की बहुत सारी चीजें रखनी पड़ती है।

वैसे तो मनुष्य के जीने के लिए मुख्य रूप से रोटी, कपड़ा और मकान चाहिए लेकिन इतने से उसका जीवन चलना संभव नहीं है। मनुष्य के शरीर में एक्टिव पांच इंद्रियां (नाक, कान, आंख, त्वचा, जीभ) होती है इनकी मांग पूरा करने में पूरी लाइफ चली जाती है इन पर तो किसी तरह तरीके से कंट्रोल किया जा सकता है लेकिन इनका सरदार मन पर हमारा कोई बस नहीं चलता है संसार में इसके चंगुल से कोई नहीं छूटा है चाहे वह राजा महाराजा हो या साधु सन्यासी हो


 संसार में जितने भी आविष्कार हुए हैं इसी मन के कारण हुए । जब सृष्टि की रचना हुई मनुष्य की उत्पत्ति हुई तो मनुष्य ने अपने जीवन के लिए बहुत सारी सुख सुविधाएं जुटाने का प्रयास किया और इसी प्रयास में उससे बीमारियों ने भी घेर लिया उनसे छुटकारा पाने के लिए वह तरह-तरह के उपाय करने लगा ऐसे उपायों बहुत सारे कार्य थे। जिसके लिए वह अनुसंधान करने लगा। 

यहां हम केवल पेड़ पौधों की शाखाओं का ही अध्ययन करेंगे।

किसी समय में भारत में देश-विदेश बहुत सारे लोग विद्या अध्ययन के लिए आया करते थे। विद्या अध्ययन कर अपने देश वापस चले जाते थे। जब वे अपने देश से जाते थे तोअपने साथ साहित्य भी ले जाते थे । ऐसे में बहुत सारे विदेशियों के नाम लिए जा सकते हैं । 

इनमें सबसे अधिक प्रसिद्धि पैरासेल्सस को प्राप्त हुई है  उसने जीवन की रक्षा के लिए जो   कार्य किया है वह सराहनीय है हालांकि उससे प्रभावित होकर बहुत सारे लोगों ने उस समय अन्य छोटे-छोटे कार्य किए हैं । जिनका आज बहुत महत्वपूर्ण स्थान है लेकिन का नाम चिकित्सा जगत में बहुत आदर से लिया जाता है।

पैरासेल्सस ने चिकित्सा के क्षेत्र में जो नीव रखी है उसे हिलाना बहुत कठिन है। असल में  शायद पैरासेल्सस ने कभी  सोचा भी नहीं होगा कि मेरे इस अनुसंधान के बाद मेरे कार्य से कितने लोगों को लाभ मिलेगा । 

आज पैरासिलसस के सिद्धांत पर कई पैथियां  (होम्योपैथी , इलेक्ट्रो होम्योपैथी, बैच फ्लावर आदि डेवलप हो गई है। हालांकि उसके मूल में आयुर्वेद ही है ।

पैरासिलसस पेड़ पौधों से विभिन्न तरीके से अर्क निकालता था । जिसे उस समय की भाषा में स्पेजिरिक (Alchemical) कहा जाता था।

और अर्क निकालने वालों को स्पेजिरिस्ट (कीमियागर या Alchemist) कहा जाता था । यह लोग पेड़ पौधों का अर्क निकालते थे उसे विभिन्न मात्रा में चखते, सूघते, धातुओं पर प्रतिक्रिया देखते । कई पौधों के रसों को आपस में मिला कर प्रतिक्रिया देखते , गर्म करते ,  इस तरीके से रसों को विभिन्न प्रकार के तापक्रम पर उसे गर्म करते ।

 भाप निकालते और उसे ठंडा कर फिर पानी में परिवर्तित करते। इस प्रकार पौधों के विभिन्न अंगों का एक साथ वह अलग अलग रसो का विभिन्न प्रकार से परीक्षण करते थे। इस क्रिया को कीमियागीरी (Alchemy) कहा जाता था

वास्तव में यह लोग सोना बनाना चाहते थे और उसी की खोज में लगे रहते थे। इन्हें सोना बनाने की विधि तो नहीं मिली , लेकिन दूसरी बहुत सारी चीजें प्राप्त हो गई। जो समाज के लिए बहुत उपयोगी थी। कई लोगों की बीमारियां इन्हीं रसों की खोज में ठीक हो गई थी। इस प्रकार उन्हें जानकारी हो गई कि इस बीमारी में इस पौधे का रस प्रयोग किया जा सकता है। इस तरह उन्हें बहुत सी वनस्पति के औषधीय गुणो की जानकारी हो गई  थी।

पहले यह काम अशिक्षित लोगों द्वारा किया जाता था लेकिन धीमे-धीमे यह काम शिक्षित लोग करने लगे और उसके रिकॉर्ड भी रखने लगे । इस तरह कीमियांगीरी उत्तरोत्तर प्रगति पर चलती गई। यह लोग पौधों के रस निम्न प्रकार से निकाले जाते थे:----

(1)  पत्तियों को हाथ से रगड़ कर

लोग जंगलों में जाते और पेड़ पौधों की पत्तियों को हाथ से लगाकर उसका रस निकालते , उसे चखते,सूघते, जख्मों पर लगाते , शरीर पर मलले , धातुओं पर लगाते  और उसका प्रभाव देखते थे ।

(2)  मोटे डंठलो को कुचलकर

जो शाखाएं मोटी होती जिनका रस हाथ से नहीं निकाला जा सकता था। उनसे  निकले हुए उत्सर्जी पदार्थ गोद, दूध (Letex) पानी का परीक्षण करते। मोटी मोटी डालों को कुचलकर उनका रस निकालते और विभिन्न तरीकों से परीक्षण करते थे ।

(3)  पौधे के अंगो को पानी में उबालकर 

पौधों के अंगों (जड तना पत्ती फल फूल) आदि को एक साथ या अलग अलग पानी में उबालकर उस का रस (Spagiric) निकालते और उसका परीक्षण करते ।

(4)  पौधे के अंगों को पानी में सड़ा कर 

पेड़ पौधों के भागों को ठंडे पानी और गर्म पानी में  अर्क निकालना और उसका परीक्षण करना ।

(5)  पौधों का भभका विधि से अर्क निकाल कर

पेड़ पौधों के अंगों का भभका विधि द्वारा अर्क निकालना और उसका परीक्षण करना।

नोट

(1) अलग अलग तरीके की स्पेजिरिक अलग अलग तरीके की पैथियों में प्रयोग की जाती है।

(2) स्पेजिरिक निर्माण की विधि पर स्पेजिरिक की गुणवत्ता अलग अलग हो जाती है ।

Dr.Ashok Kumar Maurya
Written By
Dr. Ashok kumar maurya
Electro homeopathic practitionar,  
Spagyric research lab (Regd.), Lucknow

1 comment

  1. बहुत सुन्दर excellent
Please donot enter any spam link in the comment box.
Oops!
It seems there is something wrong with your internet connection. Please connect to the internet and start browsing again.
AdBlock Detected!
We have detected that you are using adblocking plugin in your browser.
The revenue we earn by the advertisements is used to manage this website, we request you to whitelist our website in your adblocking plugin.
Site is Blocked
Sorry! This site is not available in your country.