डायलूशन बनाने के लिए सीजर मैटी किसी गोली का प्रयोग नहीं करते थे।
जो व्यक्ति किसी औषधि का निर्माण करता है वह अपने हिसाब से काम करता है । सीजर मैटी ने जिस समय इलेक्ट्रो होम्योपैथी की स्थापना की थी उस समय होम्योपैथी को न सरकारी मान्यता थी और न इस पर कोई सरकारी नियंत्रण था। भौतिक विज्ञान और रसायन विज्ञान की बड़ी-बड़ी थ्योरियों की भी लोगों को जानकारी नहीं थी । ज्यादातर लोग कीमिया गिरी के आधार पर काम करते थे जिसका वर्णन पुस्तकों में लिखा मिल जाता था । सीजर मैटी ने ऐसे ही काम शुरू किया था हालांकि उनके काम पर आयुर्वेद और होम्योपैथी की गहरी छाप पड़ी थी ।
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उस समय औषधियों के फार्मूले गुप्त रखने का प्रचलन था जैसे कि भारत के गांव में जो जड़ी बूटियों से लोग इलाज करते हैं वह इलाज तो कर देते है , पर कौन सी जड़ी बूटी देते इसका खुलासा नहीं करते हैं । डॉक्टर हैनीमैन के साथ भी यही हुआ था उन्होंने जो कार्य किया और लिटरेचर लिखा उसे उनके घर वालों ने सार्वजनिक करने से इंकार कर दिया था । बहुत मुश्किल से वह लिटरेचर बाहर आया जिससे होम्योपैथी डिवेलप हो सकी ।
लेकिन सीजर मैटी के साथ ऐसा नहीं हो सका , उन्होंने भी कुछ लिखा होगा, लेकिन उनका लिखा हुआ सार्वजनिक कुछ भी नहीं हो सका और जो जर्मन की आइसो कंपनी को प्राप्त हुआ वह वहां से सार्वजनिक नहीं हुआ हुआ।
(ISO जर्मन से जो भी सार्वजनिक हुआ है उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता है)।
कुछ लोगों का कहना है, कुछ लोगों ने पुस्तकों में लिखा भी है, कि सीजर मैटी गोलियों को पानी मे घोल कर प्रथम डायलूशन बनाते थे । उस तैयार प्रथम डायलूशनसे दूसरे डायलूशन तैयार करते थे। लेकिन उन लोगों ने इस बात का खुलासा कहीं नहीं किया कि वह गोली कितने नंबर की थी?
वास्तव में सीजर मैटी के द्वारा दवाएं किस रूप में बाहर भेजी जाती थी। इसका खुलासा किसी पुस्तक में नहीं हुआ है । लिक्विड में या ग़लियो में ? लेकिन जर्मनी की ISO कंपनी जो दवाएं बाहर भेजती थी उसके प्रमाण मिले है ।
जनवरी 1993 में हमनें ISO जर्मनी से पत्र व्यवहार किया था और एक्सपोर्ट प्राइस लिस्ट मंगवाया था। उस प्राइस लिस्ट के अनुसार ISO जर्मन तीन तरह की दवाइयां Original Pack में भेजता है।
(1) Globules
(2) Liquid Electricities
(3) Injection
अगर हम इंजेक्शंस की बात छोड़ दें तो जाहिर है कि वह इलेक्ट्रिसिटी के अतिरिक्त और मेडिसिन को लिक्विड में नहीं भेजता है । अब आप यहां एक सवाल उठा सकते हैं कि वह पहले भेजता था अब नहीं भेजता है । तो आप यह समझ ले कि वह पहले भी नहीं भेजता था।
कानपुर में डॉक्टर वाई. आई. खान एक मशहूर इलेक्ट्रो होम्योपैथ डॉक्टर हुआ करते थे उन्होंने जर्मनी की ISO कंपनी से जो दवा मंगाई हैं उनके Invoice हमारे पास है। उसमें भी S1, S2, S3 , C1, C2 ,Ven , A1 , A2 आदि अनेक दवाइयां है जो गोलियों के रूप में ही भेजी गई है।
लिक्विड के रूप में इलेक्ट्रिसिटी भेजी गई है। जिसमें है RE YE GE BE WE APP शामिल है । यह दवाइयां जर्मनी से 15 /12 / 1981 को भेजी गई है ।
अभी अगर थोड़ा दिमाग पर जोर देकर सोचें तो बात स्पष्ट समझ में आती है कि यह लोग जर्मनी से गोलियों के रूप में दवा मंगाते थे और भारत में अपने हिसाब से उसके डायलूशन बनाते थे। कोई सूखी गोली से बनाता था , कोई पानी में घोलकर बनाता था । कोई एक एक गोली से बनाता था। कोई दो गोलियों से बनाता था कोई तीन गोलियों से बनाता था । सबके तरीके अलग-अलग थे जो पुस्तकों में लिखे मिल जाएंगे आज के लोग इन्हीं की बात करते हैं ।
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लोग यह समझते थे कि जर्मनी से जो दवाएं आती हैं वह सीजर मैटी के द्वारा भेजी जाती हैं। इसलिए कुछ लोगों ने उन्हें सीजर मैटी की दवा मानकर मैटी का डाइल्यूशन फार्मूला लिख दिया है।
जिसके पास लिक्विड रूप में औषधि मौजूद होगी वह गोली से डायलूशन क्यों बनाएगा यह सोचने की बात है। सीजर मैटी स्वयं औषधियां बनाते थे । अतः उनके पास डाइल्यूशन बनाने के लिए लिक्विड औषधियां उपलब्ध थी वह गोली का क्यों प्रयोग करेंगे ?
क्रमशः...........