उत्प्रेरण या Catalaysis
उत्प्रेरण वह क्रिया होती हैं जिसमे उत्प्रेरक की अल्प मात्रा ही रासायनिक क्रिया को तेज या धीमी कर देती है।उत्प्रेरक स्वयं रासायनिक क्रिया में न परिवर्तित होता है न ही भाग लेता है। यह केवल प्रेरणा देने का काम करता है।
हमने एन्जाइम के विषय में पढ़ा था कि यह उत्प्रेरक का कार्य करते है। यह भी पढ़ा था कि इलेक्ट्रो होम्यो पैथीक औषधियां जैव एंजाइम ही होती हैं। इसलिए इनकी थोड़ी सी मात्रा ही शरीर में होने वाली जैव रासायनिक अभिक्रियाओं को परिवर्तित कर देती है।
यहां आपको बताते चलें कि हमारे शरीर के अंदर लगभग 60-70 हजार एंजाइम्स पाए जाते हैं। हमारा शरीर जब कोई काम करता है उस बायो कैमिकल रिएक्शन या जैव प्रतिक्रियाएं होती हैं। बिना प्रक्रियाओं के हमारा शरीर चल नहीं सकता । बल्कि यूं कहिए मृत्यु के बाद भी शरीर में प्रतिक्रियाएं होती रहती हैं । जिनके कारण ही शरीर डिस्ट्रॉय होता है।
इसी तरह जब हमारा शरीर रोगी बनता है तो उसने बहुत सारी रासायनिक क्रियाएं होती हैं। शरीर के एन्जाइम उत्प्रेरक के रूप में कार्य करते हैं। जब हमारा रोगी शरीर स्वस्थ होता है तब भी बहुत सी रासायनिक क्रियाएं होती हैं जिनमें इलेक्ट्रो होम्योपैथिक औषधियां उत्प्रेरक का कार्य करती है।
उत्प्रेरक दो प्रकार के होते हैं:-----
(1) धनात्मक उत्प्रेरक Passitive Catalysis
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यह वह उत्प्रेरक होते हैं जो जैव रासायनिक अभिक्रिया की दर बढ़ा देते हैं।
(2) ऋणात्मक उत्प्रेरक Negative Catalysis
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यह वह प्रेरक होते हैं जो जैव रासायनिक अभिक्रिया को धीमा कर देते हैं।
उदाहरण के लिए जब शरीर में कालरा का इंफेक्शन होता है तो कालरा का बैक्टीरिया जैव एन्जाइम्स छोडता है जिससे शरीर की रासायनिक क्रिया तेज हो जाती है जिससे कोशिकाओं से पानी छोड़ने की गति तेज हो जाती है । जिससे शरीर की कोशिकाओं का पानी तेजी से बाहर आकर अमाशय में जमा हो जाता है। जिससे Vomiting व दस्त शुरू हो जाते है।
ऐसी स्थित में जब रोगी को Vomiting व दस्त बंद करने के लिए S11 व S10 दवा दी जाती है तो शरीर के अंदर जाकर इन तेज अभिक्रियाओं को धीमा कर देती है। जिससे कोशिकाओं से पानी निकलना बंद हो जाता है जिसके फलस्वरूप दस्त और उल्टी बंद हो जाती। और शरीर नॉर्मल स्थिति मे बीच आ जाता है।
यहां ध्यान देने की बात है जब रोगी को एलोपैथिक दवा दी जाती है तो यह कहा जाता है कि लक्षण समाप्त होने पर दवा बंद कर देना। पूछने पर डॉक्टर बताता है कि अधिक दवा जाने पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। एलोपैथिक में जो दवाएं दी जाती हैं उनमें कुछ दवाएं ऐसी होती हैं जो बैक्टीरिया को मारती है। कुछ ऐसी होती हैं जो पेरीस्टाल्टिक मूमेंट को कम करती हैं। कुछ दवाए ऐसी होती हैं जो शरीर में होने वाली अब क्रियाओं को नियंत्रित करती है । इसलिए एलोपैथिक दवा शीघ्रता से काम करती है लेकिन इस दवा के दुष्परिणाम भी होते हैं क्योंकि यह दवा शीघ्रता से काम करती है।
यदि होम्योपैथिक दवा दी जाती है तो आर्सेनिक एल्बम इसकी मुख्य दवा है। इसके साथ में अन्य दवाएं Synonyms के आधार पर दी जाती हैं लेकिन इन दवाओं में खनिज और एल्केलाइडस भी होते हैं जो कभी-कभी बॉडी को सूट नहीं करते और दवा एग्रीवेट कर जाती है।
लेकिन यदि इलेक्ट्रो होम्यो पैथिक दवाकोहोबेशन मेथड से बनी है जो स्वास्थ शरीर पर काम नहीं करती है । जैसे ही शरीर पूर्णता स्वस्थ हो जाएगा दवा काम करना अपने आप बंद कर देगी।शेष दवा बॉडी में ही न्यूट्रल हो जाएगी उसका कोई दुष्प्रभाव शरीर पर नहीं पड़ेगा।
उत्प्रेरक के लक्षण:-----
(1) रासायनिक क्रिया में भाग लेने पर उत्प्रेरक के भार और रासायनिक संरचना में कोई परिवर्तन नहीं होता है परंतु उनकी आकृति में भौतिक परिवर्तन हो सकता है ।
(2) उत्प्रेरक अभिक्रिया को आरंभ नहीं करते वे केवल अभिक्रिया की गति में परिवर्तन करते हैं।
नोट:----
जब हमारे शरीर में किसी बैक्टीरिया का इंफेक्शन होता है या कोई शरीर में अन्य एब्नॉर्मल्टीज होती है। तो शरीर पहले स्वेता: उसे ठीक करने का प्रयास करता है। उसके लिए विभिन्न प्रकार की रासायनिक अभिक्रिया करता है परंतु बैक्टीरिया या दूसरी एब्नार्मल्टीज के कारण उसकी रासायनिक अभिक्रियाएं प्रभावशाली नहीं हो पाती है और शरीर रोगी हो जाता है।
ऐसी स्थिति में जब इलेक्ट्रो होम्यो पैथिक दवा दी जाती है तो कमजोर अभिक्रियाएं तेज हो जाती हैं और जो पहले से तेज अभिक्रियाएं थी वह धीमी हो जाती हैं या कमजोर हो जाती है और रोगी स्वस्थ हो जाता है।
क्रमशः