एन्जाइम या जैव उत्प्रेरक या अभिषव
इलेक्ट्रो होम्यो पैथिक औषधियां वनस्पति जगत से तैयार की जाती हैं जो पौधे के जैव उत्प्रेरक एंजाइम के करीब होती है। ऐसा I S O - WERK REGENSBURG Germany से छपी बुक जेसों कांम्प्लेक्स मूड ऑफ मेडिकल ट्रीटमेंट एंड इट्स मेडिकामेंट में भी लिखा है। इलेक्ट्रो होम्योपैथिक औषधियों को समझने के लिए यह आवश्यक है कि पहले एंजाइम को समझ लिया जाए ।
पौधों की कोशिकाओं (Cells) में उत्प्रेरक (Catalysis) उपस्थित रहते हैं । जो जटिल से जटिल कार्बनिक अभिक्रियाओं को सामान्य परिस्थितियों में संपन्न करते हैं । उन उत्प्रेरकों को जैव उत्प्रेरक (Boicatalysis) या एन्जाइम (Enzyme) कहा जाता है। यह एंजाइम प्रोटीन तथा कोलाइडी प्रकृति के होते हैं इनकी संरचना कई प्रकार के आयनो से होती है इन पर ताप ,क्षार तथा अम्लो का व्यापक प्रभाव पड़ता है। अधिकांश एंजाइम 38 डिग्री सेंटीग्रेड ताप और 7ph पर सबसे अधिक अभिक्रिया में उत्प्रेरक का कार्य करते हैं अर्थात सक्रिय रहते हैं । ताप तथा ph घटने बढ़ने पर अभिक्रिया प्रभावित होने लगती है।
You may want to read this post :
हमने पहले ही बताया है कि इलेक्ट्रो होम्यो पैथिक औषधियां एक प्रकार का एंजाइम ही होती हैं। इसलिए 38 डिग्री सेंटीग्रेड ताप और 7ph से अधिक अम्लीय और क्षारीय वातावरण में कार्य करना कम कर देती हैं यही कारण है कि जब रोगी को दवा दी जाती है तो उसे साधारण खाना खाने के लिए कहा जाता है । अधिक अम्लीय और क्षारीय भोजन से तथा उसे रोका जाता है। जब रोगी को ज्वर (Fever) होता है तो वास्तविक इलेक्ट्रो होम्योपैथिक औषधियां कम काम करती हैं क्योंकि शरीर का तापक्रम अधिक होता है । उस अवस्था में पहले स्पंजिग (साफ कपड़ा पानी में भिगोकर शरीर को पूछना चाहिए इसे स्पंजिंग कहते हैं) करना चाहिए फिर दवा देने से अधिक फायदा मिलता है।
एंजाइम दो प्रकार के मुख्य तौर पर होते हैं:-----
(1) सामान्य प्रोटीन (Simple Protein)
(2) संयुक्त प्रोटीन (Conjugated Protein)
एंजाइम्स का जलीय घोल 38 डिग्री सेंटीग्रेड तक गर्म करने पर एंजाइम बिना विखंडित (नष्ट) हुए वाष्पित हो जाता है और वाष्पित एंजाइम ठंडा होने पर पुनः पूर्ण गुण जैसा एन्जाइम प्राप्त हो जाता है।
एंजाइम की खोज जर्मन फिजिशियन विल्हेम कुहने (Wilhem Likhne) की थी जिनका जीवनकाल 1837 से 1900 तक रहा है ।
You may want to read this post :
इलेक्ट्रो होमियो पैथी चिकित्सा में रक्त और रस को शुद्ध रखने का सिद्धांत है। जो वास्तव में परोक्ष रूप से हमारे जीवन की ईकाई कोशिकाओं को पोषण पहुँचाते हैं। और उन्हें स्वच्छ और जीवित रखते हैं। -डॉ मोहम्मद साहिद, छपरा(बिहार)