औषधियां शरीर मे कार्य कैसे करती है?
इलेक्ट्रो होम्योपैथिक औषधियां शरीर में कैसे कार्य करती है। इसको जानने से पहले हमें यह जाना आवश्यक है कि शरीर में रोग कैसे होते हैं? हर पैथी में रोग होने के अलग-अलग कारण माने गए हैं लेकिन सारे रोग शरीर एक ही तरीके के होते हैं। एक ही तरीके के सभी को कष्ट होते हैं। इनकी दवाइयां अलग-अलग होती हैं लेकिन सभी दवाइयों का कार्य लगभग एक ही जैसा होता है।
औषधियां शरीर मे कार्य कैसे करती है? |
(1) आयुर्वेद के अनुसार रोग का कारण
आयुर्वेद के अनुसार शरीर में तीन रस दूषित हो जाते हैं तो शरीर रोगी हो जाता है।
(i) वात (भारीपन)
(ii) पित्त
(iii) कफ (श्लेष्मा)
आयुर्वेद के अनुसार शरीर में जब वात, पित्त, कफ या इनमें से कोई एक दो या एक दूषित हो जाता हैं तो शरीर में रोग उत्पन्न हो जाता है। रोग को दूर करने के लिए काम्प्लेक्स रूप में जड़ी-बूटी , खनिज पदार्थ आदि का प्रयोग किया जाता है। इससे यह संतुलित व स्वस्थ हो जाते हैं और रोग ठीक हो जाता है।
(2) यूनानी चिकित्सा के अनुसार रोग का कारण
यूनानी चिकित्सा पद्धति के अनुसार शरीर में चार चीजें गंदी हो जाते हैं तो शरीर में बीमारी लग जाती है।
(i) सोरा (काला पित्त)
(ii) सफ्रा (पित्त)
(iii) बलगम (कफ ,स्पूटम)
(iv) खून (रक्त)
यूनानी चिकित्सा पद्धति के अनुसार शरीर में पित्ताशय में उपस्थित पित्त, रक्त में उपस्थित पित्त , स्पूटम और रक्त का संगठन जब खराब हो जाता है तो शरीर रोगी हो जाता है । उसे भी जड़ी बूटी खनिज पदार्थ तथा अन्य पदार्थों को देकर ठीक किया जाता है।
(3) होम्योपैथी के अनुसार रोग का कारण
होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति के अनुसार तीन कारणों से शरीर रोगी होता है।
(i) सोरा (विष)
(ii) सिफीलिस (उपदंश)
(iii) साइकोसिस (मनोविक्षिप्त)
होम्योपैथी के अनुसार शरीर में सोरा विष , उपदंश और मनोस्थिति खराब होने से रोग उत्पन्न होते हैं। इनमें सूक्ष्म औषधियों को देने से यह सामान्य स्थिति में आ जाते हैं और रोगी ठीक हो जाता है।
(4) बायोकेमिक
बायोकेमिक चिकित्सा पद्धति में 12 साल्ट होते हैं। डॉक्टर शुसुलर का मानना था कि जब शरीर में 12 साल्ट असंतुलित हो जाते हैं तो शरीर बीमारियों से ग्रसित हो जाता है । जब तक यह साल्ट शरीर में संतुलित रहते है शरीर स्वस्थ रहता है।
(5) एलोपैथी
एलोपैथी के हिसाब से शरीर में बहने वाले तरल पदार्थ ब्लड ,लिम्फ ,नर्व ,बोन मैरो ,पित्त अम्ल तथा खनिज पदार्थों के कंपोजीशन में , शरीर के खाली अंगों के आयतन में, बॉडी में बहने वाले अन्य तरल पदार्थों में जब अस्थाई परिवर्तन काफी समय तक बना रहता है तो शरीर रोगी हो जाता है इसके अतिरिक्त शरीर में कट लग जाने शरीर के खुले हुए भागो से बैक्टीरिया प्रवेश कर जाने से भी शरीर रोगी हो जाता है।
एलोपैथी में इसके लिए एंटीबायोटिक व अन्य बहुत सारी दवाएं देकर शरीर को नार्मल करने का प्रयास किया जाता है अर्थात यहां भी असामान्य दशा से सामान्य दशा में लाने का प्रयास किया जाता है।
(6) इलेक्ट्रो होम्योपैथी के अनुसार
इलेक्ट्रो होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति के अनुसार जब शरीर के दो तरल रक्त रस जब दूषित हो जाते हैं तो शरीर रोगी हो जाता है।
(i) रक्त (Blood)
(ii) रस (Lymph)
इलेक्ट्रो होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति के अनुसार शरीर में जब रक्त और रस दूषित हो जाते हैं तो शरीर बीमार हो जाता है । जब इनमें सुधार हो जाता है तो शरीर स्वस्थ हो जाता है। इनमे सुधार करने के लिए इलेक्ट्रो होम्योपैथिक औषधियां दी जाती है ।
यहां एक प्रश्न खड़ा होता है कि बीमारी चाहे जैसी हो चाहे पित्त बढ़ा हो, वात बढ़ा हो, सोरा हो, सिफलिस हो, रक्त हो रस हो। सभी में लगभग एक ऐसी तकलीफ होती है। एक ही तरीके से ठीक होती है।
सभी औषधियों के कार्य करने का तरीका
हमारे शरीर में विभिन्न प्रकार की लाखों रासायनिक क्रियाएं होती है। शरीर में जब तक ये क्रियाएं संतुलित रहती है तब तक शरीर स्वस्थ रहता है परंतु जब इन क्रियाओं में असंतुलन होता है। तब शरीर अस्वस्थ हो जाता है।
ऐसी स्थिति में (वात, पित्त, कफ ) (सोरा, सफ्रा, बलगम, खून )( सोरा ,सिफलिस साइकोसिस) (12साल्ट ) (रक्त रस) सब दूषित हो जाते हैं।
बीमारी की स्थिति में जब पैथालोजिकल जांच होती है तो वहां यह सब बिगड़ी हुई स्थिति में मिलते हैं लेकिन स्वस्थ शरीर में यह सब व्यवस्थित स्थित में मिलते हैं।
इसका अर्थ है कि शरीर में सारी दवाएं एक जैसी ही तरीके से काम करती हैं और वह काम है "शरीर के विभिन्न प्रकार की असंतुलित रासायनिक क्रियाओं को संतुलित करना"।
इन रासायनिक क्रियाओं को संतुलित करने के अलग-अलग तरीके होते हैं इन्हीं तरीकों को हम पैथी का नाम देते हैं
वैसे तो सभी लगभग औषधियों में एंजाइम विटामिन हार्मोन होते हैं लेकिन इनके अलग-अलग रूप होते हैं। जहां तक इलेक्ट्रो होम्योपैथी की औषधियों बात है। हम जानते हैं इलेक्ट्रो होम्योपैथिक औषधियां एंजाइमस, विटामिन हार्मोन के करीब होती हैं और यह शरीर में होने वाली रासायनिक अभिक्रिया को सीधे, आपेक्षाकृत तेजी से प्रभावित करती है। यदि शरीर को आवश्यकता है कि अभिक्रिया को तेज किया जाए तो तेज कर देंगी , यदि आवश्यकता है कि अभिक्रिया को धीमा किया जाए तो यह धीमा कर देगी। तेज व धीमी अभिक्रिया की दर पर ही रोग ठीक होते हैं या व्यक्ति बीमार होता है।
नोट :----
(i) शरीर के प्रत्येक भाग मे रक्त व रस भ्रमण करता है।
(ii) जब बॉडी में बहने वाले तरल पदार्थ का कंपोजीशन बिगड़ जाता है तो शरीर रोगी हो होता है या यूं कहिए कि बाडी फ्लूड जब सामान्य दशा (Homoeostate) से असामान्य दशा (Heterostate) में चला जाता है तो शरीर बीमार हो जाता है।
(iii) इसी बॉडी फूड को सभी पैथियां असामान्य ने दशा से सामान्य दशा में लाने का प्रयास करती हैं चाहे वह प्राकृतिक पैथी हो , एलोपैथी हो होम्योपैथी हो, आयुर्वेद हो, या अन्य कोई पैथी हो।