स्क्रोफोलोसो 2/ Scrofoloso 2
Scrofoloso 2/ स्क्रोफोलोसो 2 या S2 प्रभाव प्रधान रूप से पित्ताशय, मूत्राशय , मूत्र द्वार , दूग्ध ग्रथियों , आमाशयिक ग्रंथियों , आंत्रिक ग्रंथियों , उपान्त्र, सिरस मेम्ब्रेन् , पसीना निकालने वाली ग्रंथियों , मस्तिष्क एवं आँखों की कनिनिका नामक पदे (cornea) पर है सामान्य रूप से वृक्क या तिल्लि, मूत्र वाहिकाएँ , स्त्री-पुरुष जननेन्द्रिय, जबड़ों एवं मसूढ़ों को भी यह प्रभावित करती है ।प्राकृतिक चिकित्सा में पित्त प्रकृति या स्थितियों और रक्त प्रकृति या स्थितियों के लिये यह अनुकूल पड़ती है । यह एक क्रियामिक, स्रावी, मूत्रल , कब्ज-नाशक , मल-मूत्र को साफ रखने वाली और पोषण करनेवाली औषधि है । रुग्णावस्था में प्रयोग करने पर यह विशेष रूप से वातदोष-नाशक और ग्रंथिदोष नाशक की तरह कार्य करती है ।
जहाँ S.1 रस को सशक्त करती है, वहाँ S.2 उसका पसिजाव करती है ।जहाँ S.1 का प्रभाव परोक्ष रूप से ही; किन्तु वात नाड़ियों पर पूर्ण रूप से है; वहाँ S.2 शरीर के समस्त थैली रूपी अवयवों की महौषधि है । कभी-कभी रक्त एवं पित्त प्रकृति के प्राणियों में S.1 के प्रयोग से आतों के रस सशक्त हो जाते हैं जिसके कारण कब्जियत हो जाती है । ऐसी स्थिति में S.2 के प्रयोग करने से कब्जियत ठीक हो जाती है; क्योंकि आंतों में रस के पसिजाव करके उनकी निःसरण क्रिया को भी यह नियमित करती है । पित्ताशय पर प्रभावी होने से पित्तदोष के कारण अपच, कड़वीडकारों का आना और पित्त की के या वमन होने पर S.2 की हल्की मात्राओं से अच्छा लाभ होता है।
No. | Plant Name | Part |
---|---|---|
1 | Cochlearia Officinalis | 5 |
2 | Hydrastis Canadensis | 15 |
3 | Matricaria Chamomilla | 10 |
4 | Lycopodium Clavatum | 5 |
5 | Scrophularia Nodosa | 25 |
6 | Smilax Medica | 15 |
7 | Nasturtium Officinate | 25 |
8 | Tussilago Farfara | 20 |
9 | Veronica Officinalis | 5 |